पुलवामा आतंकवादी हमले के कारण केंद्र सरकार को जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाने के लिए विवश होना पड़ा
New Delhi : सुप्रीम कोर्ट में आर्टिकल 370 हटाने के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई के क्रम में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पुलवामा का जिक्र करते हुए कहा कि फरवरी 2019 को हुए आतंकवादी हमले के कारण केंद्र सरकार को जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाने के लिए विवश होना पड़ा.
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चीफ जस्टिस भी सहमत हैं कि आर्टिकल 35ए भेदभाव करने वाला था
साथ ही कहा कि इस फैसले से जम्मू-कश्मीर का देश के शेष हिस्से के साथ पूर्ण विलय हुआ है. इस क्रम में सॉलिसिटर जनरल आर्टिकल 35ए का भी जिक्र किया. नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी के आरोपों का जवाब देते हुए कहा कि आर्टिकल 35ए के कारण जम्मू-कश्मीर के लोगों के साथ भेदभाव होता था.
वहां रहने वाले लाखों लोग वोट डालने, पढ़ाई करने और रोजगार के समान अवसर जैसे मूल अधिकार से वंचित थे. उन्होंने कहा कि इस बात से तो चीफ जस्टिस भी सहमत हैं कि आर्टिकल 35ए लोगों से भेदभाव करने वाला होता था
5 अगस्त, 2019 के फैसले को सही मानते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि इसके बाद ऐसा कोई निर्णय नहीं हुआ है, जिससे संविधान का उल्लंघन होता हो.
धारा 370 हटाये जाने से राज्य की स्वायत्तता छिन गयी है
जान लें कि नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी ने भी केंद्र के फैसले (धारा 370 हटाने) के खिलाफ अपील दायर की है. दोनों दलों ने दलील दी है कि धारा 370 हटाये जाने से राज्य की स्वायत्तता छिन गयी है. इस पर केंद्र सरकार ने जवाब दिया कि आर्टिकल 370 हटने से पहले लोग कई मूल अधिकारों से वंचित थे.
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी लोगों को भ्रमित करती रही है. कहा कि हमेशा जम्मू-कश्मीर के प्राइड के नाम पर लोगों को उनके अधिकारों से वंचित किया गया है.
सॉलिसिटर जनरल ने पंजाब के पुनर्गठन का उदाहरण दिया
जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाने और राज्य के पुनर्गठन के लिए गलत प्रक्रिया अपनाने के आरोपों पर केंद्र सरकार ने पंजाब के पुनर्गठन का जिक्र किया. मेहता ने कहा कि 1966 में पंजाब के पुनर्गठन के लिए जो प्रक्रिया अपनायी गयी थी, वही प्रक्रिया जम्मू-कश्मीर को लेकर भी अमल में लायी गयी है. कहा कि 1966 में ही पंजाब का पुनर्गठन हुआ और हरियाणा एवं चंडीगढ़ का गठन किया गया था. उस समय पंजाब में भी जम्मू-कश्मीर की ही तरह राष्ट्रपति शासन था.