Surjit Singh
पेट्रोल-डीजल की कीमत ऑल टाईम हाई है. लोग परेशान हैं. मीडिल क्लास सबसे अधिक प्रभावित है. पर चुप है. क्यों? समझा जा सकता है. शायद बोलने के लायक नहीं बचे. मोदी सरकार साफ-साफ कह चुकी है कि पेट्रोल-डीजल की कीमत बाजार तय करता है. सरकार का इस पर कंट्रोल नहीं है. सच यह नहीं है. मोदी सरकार चाहे तो तुरंत कीमतों में कमी करके लोगों को राहत दे सकती है. क्योंकि मोदी सरकार ने पिछले सात साल में पेट्रोल पर टैक्स में 3.47 गुणा की बढ़ोतरी की है. जबकि राज्यों की सरकारों ने 1.81 गुणा. यह आंकड़ा दिल्ली का है. बाकी राज्यों की स्थिति भी कमोबेश यही है.
कल हजारीबाग के सांसद जयंत सिन्हा ने कहा कि देश की अर्थव्यवस्था बढ़ रही है, इसलिये तेल के दाम बढ़ रहे हैं. क्या वह सच बोल रहे हैं. शायद नहीं. दो दिन पहले ही रिपोर्ट आयी है कि तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के मामले में भारत दुनिया के 193 देशों में 164वें रैंक पर है. यह तथ्य जयंत सिन्हा की बातों को सही नहीं बता रहा.
जयंत सिन्हा ने यह भी कहा कि राज्य सरकार चाहे तो तेल के दाम तुरंत कम हो सकते हैं. जबकि तथ्य यह है कि तोल पर जो टैक्स लग रहा है, उसमें राज्य का टैक्स कम है, जबकि केंद्र सरकार का टैक्स बहुत ज्यादा. सात साल पहले से तूलना करें, तो साफ दिखता है कि मोदी सरकार तेल पर टैक्स लेने के मामले में आम लोगों को चूस रही है.
वर्ष केंद्र का टैक्स राज्य का टैक्स
2014 9.48 रुपये 10.98 रुपये
2015 19.06 रुपये 12.14 रुपये
2017 19.48 रुपये 20.04 रुपये
2019 17.98 रुपये 20.24 रुपये
2020 32.98 रुपये 19.92 रुपये
2021 32.98 रुपये 19.92 रुपये
आंकड़े पर गौर करें, तो समझ में आता है कि केंद्र सरकार कैसे पेट्रोल-डीजल को सस्ता कर सकती है. वर्ष 2014 में केंद्र सरकार पेट्रोल पर 9.48 पैसे का टैक्स लेती थी, जबकि राज्य सरकार 10.98 रुपये. वर्ष 2015 में मोदी सरकार ने केंद्र का टैक्स बढ़ा कर 19.06 रुपया कर दिया, जबकि राज्यों की सरकार का टैक्स सिर्फ 12.14 रुपया ही रहा. वर्ष 2017 में केंद्र का टैक्स 19.48 रुपया था, जबकि राज्य का 20.04 रुपया.
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वर्ष 2019 में चुनाव होने थे. लिहाजा मोदी सरकार ने पेट्रोल-डीजल के दामों में कमी लाने के लिये केंद्र का टैक्स कम करके 17.98 रुपया कर दिया. चुनाव समाप्त होने के बाद वर्ष 2020 में मोदी सरकार ने केंद्र का टैक्स बढ़ा कर 32.98 रुपये कर दिया. लेकिन राज्य का टैक्स 19.92 रुपया ही रहा. एक फरवरी 2021 को भी स्थिति यही है. एक लीटर पेट्रोल पर केंद्र सरकार 32.98 रुपये का टैक्स वसूल रही है, जबकि राज्य सरकार का टैक्स 19.92 रुपया है. यह आंकड़ा इंडियन ऑयल कारपोरेशन की साइट पर कोई भी देख सकता है.
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आंकड़े से स्पष्ट है कि मोदी सरकार से पहले पेट्रोल-डीजल पर केंद्र का टैक्स कम होता था और राज्य का ज्यादा. मतलब केंद्र सरकार को कम आमदनी होती थी और राज्य सरकार को ज्यादा. मोदी सरकार में सबकुछ उल्टा हो गया. कीमत कम करने के फेर में राज्यों की आर्थिक स्थिति खराब होती जा रही और केंद्र मौज करने में लगा हुआ है. जीएसटी के बाद तो राज्यों की स्थिति कटोरा लेकर खड़े होने जैसी हो गयी है. जनता बस टुकुर-टुकुर देख रही है. वह तो कभी हिन्दु-मुसलमान, कभी एनआरसी, कभी राम मंदिर तो कभी पाकिस्तान का नाम लेकर ही खुश है.
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पिछले तीन-चार दिनों में सोशल मीडिया पर एक अभियान चल रहा है. पेट्रोल-डीजल के दाम में बढ़ोतरी के लिये राज्य सरकार को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है. ऐसे लोग कह रहे हैं कि राज्य सरकार के टैक्स की वजह से कीमत आसमान छू रही है. कुछ लोग राज्य सरकार का टैक्स 40 रुपये प्रति लीटर तक बता रहे हैं. पर, क्या यही सच है. नहीं, असल में पिछले सात सालों में मोदी सरकार ने पेट्रोल-डीजल पर लगने वाले केंद्रीय टैक्स में ऑल टाईम हाई बढ़ोतरी कर दी है. इसके कारण पेट्रोल-डीजल महंगा हुआ है. अगर केंद्र सरकार अपना टैक्स राज्य के बराबर भी कर दे, तो तत्काल पेट्रोल-डीजल के दामों में 13-10 रुपये की कमी आ जायेगी. पर, सरकार ऐसा करेगी नहीं. उसे पता है, विरोध करने वाला मीडिल क्लास मर जायेगा, लेकिन मोदी सरकार के खिलाफ मुंह नहीं खोलेगा.
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