Chaibasa (Ramendra Kumar Sinha) : आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में लोग ढिबरी और लालटेन जला कर अपने घर में उजाला करते है. परंपरागत रूप से ढिबरी तथा सब्जियों में पानी पटाने के लिए झरना सहित अन्य सामानों का निर्माण कई ग्रामीण क्षेत्रों में किया जाता है. सोहराय किस्पोट्टा पिछले 25 वर्षों से इन सामानों को तैयार करते आ रहे हैं. ग्रामीण क्षेत्र में आज बिजली पहुंच गई है. ऐसे में उनके द्वारा तैयार किए गए सामानों की बिक्री में कमी आई है.
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अब 30 से 35 रुपये तक की ही होती है बिक्री
उन्होंने बताया कि पहले हर मंगलवार को मंगला बाजार में दो सौ से ढाई सौ तक ढिबरी और झरना बिकते थे पर अब उतनी बिक्री नहीं होती है. अब 30 से 35 रुपये तक की बिक्री से पूरे सप्ताह का कार्य चलता है. इसी में परिवार को चलाना भी पड़ता है और इसे बनाने के लिए सामान की भी खरीदारी करनी पड़ती है. उन्होंने बताया कि यह बहुत ही पेचीदा काम है. देखने में तो छोटा है पर बहुत ही पेचीदा काम है. इस कारण घर का कोई अन्य सदस्य इस कार्य को करने में रुचि नहीं लेता, और यही स्थिति रही तो आने वाले समय में इसका निर्माण कार्य देखते-देखते बंद हो जाएगा. यह घर की शोभा की वस्तु बनकर रह जाएगी.
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