LagatarDesk : आज चैत्र नवरात्रि का दूसरा दिन है. नवरात्र के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है. ब्रह्मचारिणी में ‘ब्रह्म’ का अर्थ होता है ‘तपस्या’ और ‘चारिणी’ का अर्थ ‘आचरण’ करने वाली है. इस तरह दोनों अर्थों को मिलाने पर ब्रह्मचारिणी का अर्थ तप का आचरण करने वाली होता है.
घी या दूध से बने पदार्थों का लगाये भोग
ऐसी मान्यता है कि मां दुर्गा के दूसरे स्वरूप की पूजा करने से तप, त्याग, सदाचार और संयम में वृद्धि होती है. मां की पूजा करने से शत्रुओं को पराजित कर उन पर विजय प्राप्त किया जा सकता है. मां की व्रत कथा करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. माता को प्रसन्न करने के लिए घी या दूध से बने पदार्थों का भोग लगाना चाहिए.
ऐसा है मां ब्रह्मचारिणी का स्वरूप
माता ब्रह्मचारिणी इस लोक के समस्त चर और अचर जगत की विद्याओं की ज्ञाता हैं. मां सफेद रंग के वस्त्र पहनती हैं. इनके एक हाथ में अष्टदल की माला और दूसरे हाथ में कमंडल होता है. ब्रह्मचारिणी का स्वरूप बहुत ही सादा और भव्य है. अन्य देवियों की तुलना में वह अतिसौम्य, क्रोध रहित और तुरंत वरदान देने वाली देवी हैं.
भगवान शंकर को पाने के लिए की थी कठोर तपस्या
पूर्वजन्म में मां ब्रह्मचारिणी पर्वतराज हिमालय की पुत्री थी. भगवान शंकर को पति रूप में पाने के लिए मां ब्रह्मचारिणी कठोर तपस्या की थी. इसीलिए इन्हें ब्रह्मचारिणी कहा जाता है. शास्त्रों के अनुसार, मां ब्रह्मचारिणी ने एक हजार वर्ष तक फल-फूल खाया. मां ने सौ सालों तक जमीन पर जीवन बिताया.
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कठोर तपस्या करने के कारण मां का नाम अपर्णा पड़ा
शास्त्रों की मानें तो माता ब्रह्मचारिणी ने बेल पत्र खाकर भोले नाथ की अराधना की. उनकी कठिन तपस्या के बाद भी जब महादेव प्रसन्न नहीं हुए तो माता ने कई हजार सालों तक निर्जल और निराहार रहकर तपस्या की. जब मां ने पत्ते खाने भी छोड़ दिये तो इनका नाम अपर्णा पड़ गया.