- गंगानारायण सिंह के विद्रोह के कारण ब्रिटिश हुकूमत को वापस लेना पड़ा था कानून
- भूमिज विद्रोह के महानायक गंगानारायण सिंह की जयंती 25 अप्रैल पर विशेष
Chandil (Dilip Kumar) : ईचागढ़ विधानसभा क्षेत्र की वीर माटी अपने अंदर कई इतिहास छुपाए हुए है. देश की आजादी का दौर हो या झारखंड अलग राज्य का आंदोलन, इस माटी के वीर सपूत हर जगह अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज कराएं हैं. इनमें कई वीर सपूतों को इतिहास में स्थान नहीं मिला. जिन्हें मिला वे युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत बने हैं. इसी वीर माटी का एक वीर सपूत हैं ””भूमिज विद्रोह”” के महानायक स्वतंत्रता संग्रामी अमर शहीद गंगानारायण सिंह. गंगानारायण सिंह का जन्म सरायकेला-खरसावां जिला अंतर्गत नीमडीह प्रखंड के बांधडीह गांव में 25 अप्रैल 1790 में हुआ था. ””लिख रहा हूं मैं अंजाम, जिसका कल आगाज आएगा, मेरे लहू का हर एक कतरा इंकलाब लाएगा””. दिल में ऐसे अरमां लेकर भारत माता के वीर पुत्र गंगानारायण सिंह ने अंग्रेजी हुकुमत के खिलाफ लोहा लिया था. उन्होंने ब्रिटिश शासन व्यवस्था से 1832 में लोहा लिया और 1857 के सिपाही विद्रोह इसका परिणाम के रूप में देखा गया. भारतीय इतिहास में 1767 से 1833 तक, 60 से ज्यादा वर्षों में भूमिजों द्वारा अंग्रेजों के विरूद्ध किए गए विद्रोह को भूमिज विद्रोह कहा गया है.
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लोगों को एकजुट कर शुरू किया विद्रोह
पराधीन भारत के जंगल महल में देशप्रेमी गंगानारायण ने जंगल महल के बहुसंख्यक भूमिज समुदाय को देशभक्ति के पाठ पढ़ाकर ब्रिटिश शासन के खिलाफ एकजुट किया. उन्होंने क्षेत्र के भौगोलिक बनावट का लाभ उठाते हुए जनवरी 1832 से अंग्रेजों के विरुद्ध संग्राम का बिगुल फूंका. गंगानारायण सिंह ने भूमिज संग्रामियों को गुरिल्ला युद्ध नीति का विशेष प्रशिक्षण दिया. 12 मई 1832 की रात ब्रिटिश सेनापति रासेल की सेनावाहिनी के उपर संग्रामियों ने हमला कर दिया. 13 मई को बराबाजार में अंग्रेज समर्थकों के घर में आग लगाकर आतंक का वातावरण बना दिया. भूमिज सेना के डर से मेदनीपुर के कमिश्नर डी ओइली ने अपनी सीमा की सुरक्षा के लिए कोलकाता हाईकमान से सामरिक वाहिनी का मांग की. फिरंगी सरकार ने बैरकपुर छावनी से कर्नल कपूर के नेतृत्व व रासेल के दिशानिर्देश में जंगल महल में विशाल अंग्रेज सैन्य दल तैनात किया. दो जून को मार्टिन ने सभी सैन्यवाहिनी के साथ बांधडीह गांव में गंगनारायण को घेरने का अभियान शुरू किया. 60 भूमिज विद्रोही ने शीतल घटवाल के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना के उपर जोरदार हमला कर दिया.
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अंग्रेजों को वापस लेना पड़ा था कानून
गंगनारायण की सेना से भयभीत होकर मार्टिन ने वार्ता का प्रस्ताव भेजा था. गंगा सेना के राष्ट्रभक्त विद्रोही वार्ता के लिए तैयार नहीं हुए और जंग जारी रखा. विद्रोहियों के उग्र रूप देखकर मार्टिन के सेना इस क्षेत्र से भाग गया. गंगानारायण सिंह को आसपास के दर्जनों राजा-महाराजाओं का समर्थन मिला. जिससे उनके सैन्यशक्ति में वृद्धि हुई. अगस्त 1832 से लेकर फरवरी 1833 तक पूरा जंगल महल, बंगाल के पुरूलिया, बांकुडा के वर्धमान और मेदिनीपुर, ओडिशा के मयूरभंज, क्योंझर और सुंदरगढ़ क्षेत्र में विद्रोह चल रहा था. अंग्रेजों ने गंगा नारायण सिंह का दमन करने के लिए हर तरह से कोशिश किया, लेकिन गंगा नारायण सिंह की चतुरता और युद्ध कौशल के सामने अंग्रेज टिक नहीं सके. इन क्षेत्रों के आयुक्त गंगा नारायण सिंह से परास्त होकर अपनी जान बचाकर भाग निकले थे. इस प्रकार संघर्ष इतना तेज और प्रभावशाली था कि अंग्रेज बाध्य होकर जमीन विक्रय कानून, उत्तराधिकारी कानून, लाह पर एक्साईज ड्यूटी, नमक का कानून, जंगल कानून वापस लेने के लिए विवश हो गए. ””भूमिज सेना”” के विद्रोह के कारण एक विशाल भू-भाग में अंग्रेजी शासन नींव नहीं डाल सकी.
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अंतिम सांस तक किया संघर्ष
गंगानारायण सिंह और भूमिज सेना को दमन करने के लिए बांकुड़ा के कलेक्टर रासेल विशाल सेनावाहिनी के साथ जंगल महल में प्रवेश किया. भूमिज सेना ने रासेल के सेना को चारों ओर से घेर कर मार डाला, लेकिन रासेल किसी तरह भागने में सफल रहा. इस तरह गंगनारायन सेना निरंतर अंग्रेजों के दांत खट्टे करते रहे. जनवरी 1933 में कोल विद्रोहियों से सहयोग लेने के लिए गंगनारायन सिंह सिंहभूम रवाना हुए. सात फरवरी 1833 को गंगा नारायण सिंह कोल (हो) जनजातियों को लेकर खरसावां के ठाकुर चेतन सिंह जो अंग्रेजों के साथ मिलकर शासन चला रहे थे, के हिंदशहर थाने पर हमला किया, लेकिन दुर्भाग्यवश उसी दिन वीरगति को प्राप्त किए. इस प्रकार सात फरवरी 1833 को एक सशक्त, शक्तिशाली योद्धा अंग्रेजों के विरूद्ध लोहा लेने वाला ””भूमिज विद्रोह”” के महानायक वीर गंगा नारायण सिंह अपना अमिट छाप छोडकर अमर हो गए. उन्होंने जीवन के अंतिम सांस तक अंग्रेजी हुकुमत के खिलाफ संघर्ष किया. स्थानीय लोगों को इस बात का दु:ख है कि भारत के वीर सपुत गंगनारायन सिंह को स्वतंत्रता सेनानी के राष्ट्रीय स्तर का सरकारी सम्मान नहीं मिला है.