Chandil (Dilip Kumar) : आखाईन जातरा के साथ झारखंडी समाज का नया साल सोमवार से शुरू हो गया. पहला माघ आखाइन जातरा के रूप में मनाया जाता है. साल की शुरुआत मानकर इस दिन से ही सारे शुभ कार्य शुरू किये जाते हैं. जनजातीय परंपरा में इस दिन से ही खेत में पहला हल चलाकर खेती की शुरुआत की जाती है, जिसे हाल पुन्हा कहते हैं. साल के पहले दिन क्षेत्र के किसान हल चलाकर कृषि व मांगलिक कार्य शुरू किए. खेत में हल चलाकर घर लौटने पर महिलाओं ने हल समेत बैलों का चुमावन किया. बैलों को धान खिलाया गया और हल जोतने वाले का पैर धोकर स्वागत किया गया. इसके साथ ही किसान नजदीकी तलाब से तीन कुदाल मिट्टी काटकर निकाले. मान्यता है कि इससे जलाशय का आकार और गहराई बना रहेगा. गोबर एकत्र कर रखे जाने वाले स्थान में भी कुदाल से तीन बार चोट मारकर कृषि कार्य सांकेतिक रूप से शुरू किया गया. मौके पर घर में परिवार के सभी सदस्य एक साथ चूड़ा, दही और गुड़ खाए.
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वर-वधू की तलाश शुरू हुई
कोई भी नया काम आखाइन जातरा के दिन करना अति शुभ माना जाता है जैसे कि कोई दुकान का शुभारंभ, कोई व्यवसाय, कोई महत्वपूर्ण काम, घर की नींव डालना, नए घर में प्रवेश एवं विवाह योग लड़कों के लिए लड़की देखने का प्रारंभ भी आज ही से होता है. एक माह से बंद सभी प्रकार के मांगलिक कार्य माघ माह के पहले दिन से ही फिर से शुरू हो गया है. किसान परिवार पौष माह में किसी प्रकार का मांगलिक कार्य नहीं करते हैं. आखाईन जातरा के दिन से मांगलिक कार्य शुरू होते ही विवाह योग्य युवक-युवतियों के लिए वर-वधू की तलाश शुरू हो गई. कई परिवारों में विवाह की तिथि भी निश्चित की गई.
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दी जाती है चिड़ि दाग
मान्यता अनुसार आखाइन जातरा के दिन छोटे बच्चे और बड़ों को पेट में हंसुआ या लोहे के रोड़ जो चार चोंच वाले डिजाइन से बना होता है को गर्म करके पेट में नाभि के आस-पास दागा जाता है, कहा जाता है कि इससे बच्चे को पेट दर्द का शिकायत कम होता हैे. यह चिड़ी दागना वर्तमान समय में भी कहीं-कहीं देखने को मिलता है पर अधिकांश जगह यह बंद भी हो गया है. इसके अलावा आज के दिन से ही गाय-बैलों को भी दागा जाता है. गाय बैलों के मामले में कुछ नियम अलग भी है हर गुसटि वाले के गाय-बैलों को अलग-अलग प्रकार के निशान लगाए जाते हैं, ताकि कोई भी निशान देखकर उसकी पहचान कर सके कि यह किस गाव और किस गुसटि का मवेशी है.
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