Chandil (Dilip Kumar) : चांडिल अनुमंडल क्षेत्र के ईचागढ़ प्रखंड अंतर्गत देवलटांड़ स्थित प्राचीन जैन मंदिर में जैन धर्मावलंबी दशलक्षण धर्म पर्व मना रहे हैं. जैन धर्मावलंबी जीवन में सुख-शांति के लिए उत्तम क्षमा, मार्दव, आर्जव, सत्य, शौच, संयम, तप, त्याग, अकिंचन और ब्रह्मचर्य आदि दशलक्षण धर्मों का पालन सुनिश्चित करने के लिए महापर्व मनाते हैं. देवलटांड़ जैन मंदिर में 10 दिनों तक चलने वाली दशलक्षण महापर्व पर्युषण के आखिरी दिन मंगलवार को नमोकार महामंत्र का पाठ करने के पूर्व सुबह पूजा-पाठ, जैन धर्म ग्रंथों पर प्रवचन व आरती की जाएगी. इसके साथ ही मंगलवार को सुबह 9 बजे दसलक्षण धर्म समापन और उत्तम क्षमावाणी की मधुर बेला पर आदिनाथ भगवान की नगरी देवलटांड़ में भगवान शांतिनाथ की भव्य ग्राम शोभायात्रा का आयोजन किया गया है. धर्म पर्व में देवलटांड ग्रामवासी के साथ बड़ी संख्या में धर्मावलंबी शामिल हो रहे हैं. अनुष्ठान का आयोजन श्री आदिनाथ भगवान दशलक्षण समिति, देवलटांड की ओर से किया जा रहा है.
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बढ़-चढ़कर शामिल हो रहे लोग
दशलक्षण धर्म पर्व के दौरान रोज सुबह भगवान का अभिषेक करने के बाद पूजा-पाठ व धर्मग्रंथों का पाठ किया जा रहा है. शाम को आरती के साथ भजन-कीर्तन किया जा रहा है. दशलक्षण धर्म पर्व के लिए देशभर से जैन साधक देवलटांड पहुंचे हैं. देवलटांड़ पहुंचने वालों में पुणे से बाल ब्रह्मचारी हिमांशु भैया, ब्रह्मचारिणी प्रन्या दीदी, आशीष जैन, विवेक जैन, जबलपुर से ब्रह्मचारी गौरव जैन, औरंगाबाद से ब्रह्मचारी विकास भैया, गुणा से अर्चना जैन, इंदौर से संदेश जैन समेत अन्य कई जैन धर्मगुरु शामिल हैं. देवलटांड़ स्थित दिगंबर जैन मंदिर के अध्यक्ष भुवनेश्वर माझी, सचिव अजित माझी व संजीत माझी ने बताया कि जैन धर्म में कुल 24 तीर्थंकर हुए हैं. जैन संस्कृति में जितने भी पर्व व त्योहार मनाए जाते हैं, लगभग सभी में तप एवं साधना का विशेष महत्व है. जैनों का सर्वाधिक महत्वपूर्ण पर्व है पर्युषण पर्व. पर्युषण पर्व का शाब्दिक अर्थ है आत्मा में अवस्थित होना. इस पर्व के दौरान महिला पुरुष सभी समान रूप से भागीदारी निभाते हैं.
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साल में तीन बार मनाया जाता है दशलक्षण पर्व
दशलक्षण पर्व साल में तीन बार मनाया जाता है, लेकिन मुख्य रूप से यह पर्व भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी से लेकर चतुर्दशी तक मनाया जाता है. दशलक्षण पर्व में जैन धर्म के जातक अपने मुख्य दस लक्षणों को जागृत करने की कोशिश करते हैं. जैन धर्मानुसार दस लक्षणों का पालन करने से मनुष्य को इस संसार से मुक्ति मिल सकती है. संयम और आत्मशुद्धि के इस पवित्र त्योहार पर श्रद्धालु श्रद्धापूर्वक व्रत रखते हैं. इस दौरान जैन व्रती कठिन नियमों का पालन भी करते हैं. पर्युषण पर्व की समाप्ति पर जैन धर्मावलंबी अपने यहां पर क्षमा की विजय पताका फहराते हैं और फिर उसी मार्ग पर चलकर अपने अगले भव को सुधारने का प्रयत्न करते हैं. दशलक्षण धर्म पर्व को लेकर देवलटांड़ में उत्साह का माहौल है. पुजारी प्रफुल्य माझी व मदन माझी अनुयायियों की विधि-विधान से पूजा करा रहे हैं. सहयोगियों के रूप में सुरेंद्रनाथ माझी व दिवाकर माझी ने अपना सहयोग दे रहे हैं.
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