Chandil (Dilip Kumar) : चांडिल अनुमंडल क्षेत्र में ईद उल अजहा यानि बकरीद का त्योहार धूमधाम के साथ मनाई जा रही है. इस अवसर पर लोगों ने सुबह बकरीद की विशेष नमाज पढ़ी. क्षेत्र के अलग-अलग मस्जिदों में नमाज पढ़ने के लिए समय निर्धारित किया गया था. मस्जिदों और ईदगाहों में नमाज पढ़ने के बाद लोग एक-दूसरे के गले मिले और बकरीद की बधाई दी. ईद उल फित्र के बाद ईद उल अजहा मुस्लमानों का दूसरा सबसे बड़ा त्योहार है. अनुमंडल क्षेत्र के कपाली, चांडिल, चौड़ा, गौरांगकोचा, आमड़ा, तिरूलडीह, सिंदुरपुर समेत अन्य स्थानों में बकरीद की धूम है. त्योहार को लेकर पूरे क्षेत्र में सुरक्षा व्यवस्था पुख्ता की गई है.
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जगह-जगह पुलिस बल तैनात किए गए हैं
जगह-जगह दंडाधिकारी के साथ पुलिस बल तैनात किए गए हैं. चांडिल अंचल के पुलिस निरीक्षक रविवार सुबह कपाली क्षेत्र में सुरक्षा व्यवस्था का जायजा लेने पहुंचे थे. तिरुलडीह स्थित नूरी मस्जिद में पेश इमाम कारी समीउल्लाह ने लोगों को नमाज अदा कराई. मौके पर उन्होंने ईद-उल-अजहा मनाने के पीछे की कहानी बताई. इसके बाद लोगों ने एक-दूसरे से गले मिलकर बकरीद की मुबारकबाद दी.
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दी जाती है कुर्बानी
ईद उल फित्र में जहां खीर व लच्छा बनाने का रिवाज है, वहीं बकरीद में कुर्बानी देने की परंपरा है. पैगंबर इब्राहिम की परंपरा का पालन करते हुए मुस्लमान जानवरों की कुर्बानी देते हैं. कुर्बानी का उद्देश्य ना केवल जानवर की बलि देना है बल्कि अपने आप को दान के कार्यो के लिए समर्पित करना है. बकरीद के दिन कुर्बानी के गोश्त को तीन हिस्सों में बांटा जाता है. एक स्वयं के लिए एक सगे संबंधियों के लिए और एक हिस्सा गरीबों को दिया जाता है.
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ऐसे शुरू हुई कर्बानी की परंपरा
इस्लाम धर्म के हिसाब से हजरत इब्राहिम 80 साल की उम्र में पिता बने थे. उनके बेटे का नाम इस्माइल था. हजरत इब्राहिम अपने बेटे इस्माइल को बहुत प्यार करते थे. एक दिन हजरत इब्राहिम को ख्वाब आया कि अपनी सबसे प्यारी चीज को कुर्बान कीजिए. इस्लामिक जानकार बताते हैं कि ये अल्लाह का हुक्म था और हजरत इब्राहिम ने अपने प्यारे बेटे को कुर्बान करने का फैसला लिया. हजरत इब्राहिम ने अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली और बेटे इस्माइल की गर्दन पर छुरी रख दी. लेकिन इस्माइल की जगह एक बकरा आ गया. जब हजरत इब्राहिम ने अपनी आंखों से पट्टी हटाई तो उनके बेटे इस्माइल सही-सलामत खड़े हुए थे. कहा जाता है कि ये महज एक इम्तेहान था. हजरत इब्राहिम अल्लाह के हुकुम पर अपनी वफादारी दिखाने के लिए बेटे इस्माइल की कुर्बानी देने को तैयार हो गए थे. इस तरह जानवरों की कुर्बानी की यह परंपरा शुरू हुई.