- अनुमंडल क्षेत्र में मची है बाहा बोंगा की धूम
- पारंपरिक बाहा नृत्य पर थिरक रहा संथाल समाज
Chandil (Dilip Kumar) : चांडिल अनुमंडल क्षेत्र के संथाल आदिवासी बहुल गांवों में इन दिनों बाहा पर्व के उपलक्ष्य पर प्रकृति का पूजन-वंदन किया जा रहा है. गांव-गांव में बाहा बोंगा का आयोजन किया जा रहा है. चारों ओर उल्लास का माहौल है, लोग परंपरागत वेशभूषा में नाचते-गाते नजर आ रहे हैं. इस त्योहार में जाहेर आयो, लिटा गोडेत, मोड़े क और तुरूय क (आराध्य देव व देवी) की पूजा-अर्चना सारजोम बाहा और मातकम गेले यानि साल का फूल और महुआ का फूल से करने की परंपरा है.
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दरअसल बाहा बोंगा प्रकृति के प्रति कृतज्ञता जताने का महापर्व है. मानव और प्रकृति के बीच अटूट संबंध का त्योहार है. जब प्रकृति अपना श्रृंगार अनुपम उपहारों से करती हैं, जब चारों ओर रंग-बिरंगे फूल खिलते हैं, जब पेड़-पौधों में नए पत्ते व फल-फूल लगते हैं, तब हर्षोल्लास के साथ बाहा बोंगा मनाया जाता है. बाहा बोंगा के बाद ही संथाल समाज के लोग पेड़ों में लगे नए पत्ते और नया अन्न का उपयोग करते हैं. बाहा पर्व के दौरान बाहा एनेज यानि बाहा नाच के साथ सिंगराय सांस्कृतिक नृत्य किया जाता है.
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तीन दोना चढ़ाया जाता है हंड़िया
बाहा बोंगा के अवसर पर गांव के नायके बाबा जाहेरथान में अपने आराध्यदेव की पूजा-अर्चना करते हैं. इष्टदेव को सारजोम बाहा और मातकम गेले यानि साल का फूल और महुआ का फूल अर्पित करने के बाद तीन दोना हंड़िया चढ़ाया जाता है. इसके बाद मुर्गी की बलि देकर लोगों के सुख-समृद्धि, रोग मुक्त समाज, पशु-पक्षियों की आबादी बढ़ने, मौसम के समयानुसार आगमन, किसानों के उपज में वृद्धि, आपसी भाईचारा आदि की कामना करते हें. अपनी मनोकामना पूर्ण होने वाले लोग भी पूजा के दौरान मुर्गा-मुर्गी की बलि देते हैं. पूजा-अर्चना के बाद नायके बाबा उपस्थित लोगों को प्रसाद स्वरूप साल का फूल देते हैं. जिसे महिलाएं अपने जुड़े में और पुरुष अपने कान में लगाते हैं.
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बलि दिए गए मुर्गा व मुर्गी की खिचड़ी प्रसाद बनाया जाता है. इस प्रसाद को समाज के पुरुष वर्ग ही सामूहिक रूप से ग्रहण करते हैं. इसे महिलाएं नहीं ग्रहण करती हैं. पूजा-अर्चना के पूर्व समाज के लोग नायके बाबा के आंगन में एकत्रित होते हैं और पारंपरिक वाद्ययंत्रों की धुन पर नाचते-गाते उन्हें जाहेरथान तक पहुंचाते हैं. बाहा परब के दौरान देर शाम तक बाहा गीतों और मांदर, नगाड़ा व अन्य पारंपरिक वाद्ययंत्रों के धुन पर महिला-पुरुष नृत्य करते हैं.
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पोड़का में बाहा पर्व पर होगा पारंपरिक जादूर नृत्य
चांडिल प्रखंड के पोड़का में श्रीश्री सार्वजनिक आदिवासी नव युवक जन कल्याण सरहुल पूजा समिति की ओर से 29 मार्च को बाहा पर्व का आयोजन किया गया है. इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में धरती आबा बिरसा मुंडा के पोते सुखराम मुंडा, विशिष्ट अतिथि के रूप में पद्मश्री राम दयाल मुंडा के पुत्र गुंजल इकिर मुंडा के अलावा सरना धर्म सोतो समिति, खूंटी के केंद्रीय सलाहकार महादेव मुंडा शामिल होंगे. तय काय्रक्रम के अनुसार 27 मार्च को हाई काड़कोम, 28 मार्च को बाहा कटाव और 29 मार्च शुक्रवार को सरहुल पूजा व पुष्प, प्रसाद वितरण किया जाएगा.
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इसके बाद पारंपरिक जादूर नृत्य-संगीत का आयोजन किया जाएगा. पारंपरिक जरदूर नृत्य में शामिल होने के लिए आदिवासी महिला सांस्कृतिक समूह पोड़का, युवा सांस्कृतिक कला मंच हाथीकोचा, उरमाल, आदिवासी सारना समिति काजीबारु, हुमटा, आबुआ आदिवासी आखडा डिमरा, पुंडीदिरी और बारुहातु संगम गट सुगुंग दुरांग पार्टी, बारुहातू, बुंडू के दल को आमंत्रित किया गया है.