दो वर्षों से विस्थापितों के लिए नहीं हुआ स्थल का चयन, सिर्फ मिलता रहा शिफ्टिंग का आश्वासन
विस्थापितों के गांवों में खुशियां और हरियाली की जगह छाई है मायूसी
Tandwa (Chatra) : टंडवा मगध कोयलांचल की परियोजना के विस्थापितों गांवों में बसे ग्रामीण आदिवासी व दलितों के परिवार इन दिनों दहशत के साये में जीने को मजबूर हैं. ग्रामीण जिस स्थान पर रहे हैं, वहां देवलगड्डा गांव के आंगनबाड़ी केंद्र हैं. इस केंद्र में दर्जनों आदिवासी बच्चे पढ़ते हैं. उससे महज 15 मीटर की दूरी पर मगध की ओपनकास्ट माइनिंग चल रहा है. हेवी ब्लास्टिंग और उत्खनन कार्य में लगी मशीनों की वजह से आंगनबाड़ी केंद्र और घरों में कंपन शुरू हो जाता है.
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विस्थापितों को नहीं मिला लाभ, दो साल से देख रहे आस
लोगों का आरोप है कि सीसीएल का मगध प्रबंधन उन्हें उजाड़ने पर आमादा है. आदिवासी इसका पुरजोर विरोध भी कर रहे हैं. विरोध के बाद प्रबंधन यहां बसे आदिवासी ग्रामीणों को दो सालों से दूसरे स्थान पर शिफ्ट करा देने की बात भी कह रहे हैं, पर प्रबंधन सिर्फ अरबों का मुनाफा कमाने में व्यस्त है. दो साल बीत जाने के बाद भी आदिवासियों को विस्थापन का लाभ नहीं मिल सका और दूसरे स्थान पर शिफ्ट कराने का स्थल चयन नहीं हो सका.
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आंगनबाड़ी केंद्र के बच्चों पर बनी रहती है अनहोनी की आशंका
सीसीएल की मगध परियोजना के देवलगड्डा गांव के महज 15 मीटर की दूरी पर ही ग्रामीण बसे हैं. हेवी ब्लास्टिंग और कोयले के उत्खनन के कारण इन ग्रामीणों का जीना मुहाल हो चुका है. आंगनबाड़ी केंद्र में बच्चों को पढ़ते समय किसी अनहोनी की आशंका सताती रहती है. यहां रहने वाली महिलाओं का कहना है कि हेवी ब्लास्टिंग और उत्खनन कार्य के कारण घर की दीवारों में कंपन होने लग जाता है. आंगनबाड़ी व समुदाय स्वास्थ्य केंद्र में अनहोनी की आशंका बनी रहती है. देवकी देवी ने कहा कि मशीनों के चलने से घर में कंपन होता है. इससे हमेशा खतरा बना रहता है. वहीं स्थानीय युवाओं ने भी इस मामले पर प्रबंधन का विरोध जताया है. इस संबंध में जब मगध परियोजना के जीएम केके सिन्हा को पक्ष लेने के लिए फोन लगाया गया, तो उन्होंने मोबाइल रिसीव नहीं किया.