एयरफोर्स फ्लाइंग ऑफिसर की ट्रेनिंग पूरी कर राष्ट्रपति से पाया सम्मान
एनसीसी स्पेशल एंट्री में भारतीय वायु सेना की मेरिट लिस्ट में दूसरा स्थान
Vijay Sharma
Tandwa (Chatra) : चतरा स्थित टंडवा के धनगड्डा रोल निवासी शुभम बादल के सपनों को नया पंख मिल गया है. चतरा जिले से पहला फ्लाइंग ऑफिसर बनने की अपनी ट्रेनिंग पूरी कर ली है. इसके साथ ही भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के हाथों से सम्मान प्राप्त किया है. शुभम बादल एनसीसी स्पेशल एंट्री में भारतीय वायु सेना की मेरिट लिस्ट में दूसरा स्थान प्राप्त किया था. साथ ही तटरक्षक जनरल की ड्यूटी की दूसरी सूची में प्रथम स्थान प्राप्त कर चतरा जिला समेत पूरे झारखंड का मान बढ़ा चुका है. शुभम बादल झारखंड और बिहार के ऐसे इकलौते शख्स हैं. उनके चाचा सुधीर कुमार ने बताया कि उसने अपनी दादी देवमंती देवी और दादा नरेश प्रसाद सिंह के आशीर्वाद से यह सफलता हासिल की. शुभम बादल के पिता सुशील कुमार हैं.
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कामयाबी की कहानी, शुभम बादल की जुबानी
शुभम बादल ने बताया कि वर्ष 2016 से एसएसबी की परीक्षा दे रहे थे. उन्होंने एनडीए, एएफसीएटी और सीडीएस रक्षा विभाग की सभी लिखित परीक्षाएं दीं. अंत में एनसीसी विशेष प्रविष्टि के माध्यम से 30 जुलाई 2021 को एएफएसबी देहरादून से वायु सेना (उड़ान शाखा) के लिए अपने नौवें प्रयास में एसएसबी की मेरिट लिस्ट में आए. सहायक के लिए 10वें प्रयास में सफलता पायी. तब तटरक्षक बल में कमांडेंट बने. सशस्त्र बलों में शामिल होने की उनकी प्रेरणा साहसिक जीवन शैली, वर्दी और समाज में सम्मान रहा. उनकी प्रेरणा तब और दृढ़ हो गई, जब 12वीं के बाद कोयंबटूर में नेवी टेक के लिए अपने पहले एसएसबी में भाग लिया था. फिर वह एयर स्क्वाड्रन एनसीसी रांची में एनसीसी एयर विंग में शामिल हो गए. उन्होंने विभिन्न राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय शिविरों में भाग लिया. वहां वह अखिल भारतीय तीसरा सर्वश्रेष्ठ कैडेट थे और वाईएपी कजाकिस्तान में भारत का प्रतिनिधित्व भी किया. वह एक अच्छे निशानेबाज भी हैं. वह परिवार को आर्थिक रूप से मदद करने के लिए होम ट्यूशन देते थे. उन्होंने पूरे दिन कठिन और व्यस्त दिनचर्या का पालन धैर्य के साथ किया. वह विभिन्न एनजीओ का भी हिस्सा रहे हैं. उन्हें हर संभव लोगों की मदद करना पसंद है.
आसान नहीं थी जीवन यात्रा, संघर्ष से पायी मंजिल
शुभम बादल ने बताया कि जीवन यात्रा इतनी आसान नहीं थी. काफी उतार-चढ़ाव और संघर्ष से मंजिल पायी. संघर्ष के दौर में आर्थिक, चिकित्सकीय, भावनात्मक रूप से आगे बढ़ते हुए विपरीत परिस्थितियों का सामना करना पड़ा, लेकिन कभी हार नहीं मानी. उनके परिवार और दोस्त निरंतर समर्थन का स्रोत बने रहे. अब परिवार, दोस्तों, समाज, गांव और अपनी मातृभूमि का कर्ज चुकाने का वक्त आ गया है.
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