Amarnath Pathak
Hazaribagh : हजारीबाग में मेडिकल, इंजीनियरिंग और विभिन्न आयोगों की प्रतियोगिता परीक्षाओं में सफलता के लिए खूब ख्वाब दिखाए जा रहे हैं. हालांकि कामयाबी दो-चार प्रतिभागियों को ही नसीब हो पाती है, लेकिन पैकेज के नाम पर कोचिंग संस्थान कोई रियायत नहीं बरतते हैं. इसके लिए प्रति छात्र कम-से-कम 50 हजार रुपए पैकेज वसूले जाते हैं. पहले प्रतिभागियों को सफलता के सब्जबाग दिखाए जाते हैं. फिर कमाई के लिए कोचिंग संस्थान तरह-तरह के गुणा-भाग करते हैं. यही वक्त है जब विद्यार्थियों को संभलने का मौका है. झांसे में फंसकर विद्यार्थी अपनी पूरी जिंदगी बर्बाद कर लेते हैं. अधिकांश कोचिंग संस्थानों के संचालक इसी मौके की तलाश में रहते हैं. चूंकि बच्चे कच्ची उम्र के होते हैं. सहपाठियों के साथ ग्रुप में उनमें कंपीटिशन की भावना दिलोदिमाग में रहती है. एक-दूसरे से प्रतियोगिता, नकल अथवा साथ-साथ पढ़ने की चाहत में अक्सर दिग्भ्रमित हो जाते हैं. ऐसे में कुछ ऐसे कोचिंग संस्थानों की फेर में फंस जाते हैं, जहां भंवर में उलझते ही चले जाते हैं.
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प्रतिभागी और अभिभावक खुद को ठगा महसूस करते
जब करियर के प्रति संजीदगी का अहसास होता है, तो संभलते-संभलते काफी वक्त बीत चुका होता है. मेडिकल-इंजीनियरिंग की परीक्षा में बैठने की उनकी उम्र सीमा खत्म हो जाती है या फिर चांस गवां बैठते हैं. उसके बाद उनके पास कोई विकल्प नहीं बचा रहता है. ऐसे में विद्यार्थियों के साथ उनके अभिभावक भी खुद को ठगा महसूस करते हैं. आर्थिक रूप से भी ऐसे अभिभावक ढीले पड़ जाते हैं. कोचिंग संस्थानों का नतीजे खंगालने पर यह बातें स्पष्ट हो जाती हैं. अभी हाल ही में जेईई मेंस के रिजल्ट आए. उसी से हजारीबाग के कोचिंगों में पढ़ाई का हाल समझा जा सकता है. जिन दो-तीन संस्थानों ने बच्चों के रिजल्ट दिखाए, उसमें भी काफी झोल है. जरा सा भी संपर्क या संबंध है, तो कामयाब प्रतिभागियों को अपने कोचिंग का प्रतिभागी बताकर दिग्भ्रमित करते हैं. ईमानदारी, निष्पक्ष और पूरी पारदर्शिता से पड़ताल हो, तो सब बात सामने आ जाती है.
जांच-परख कर करें संस्थान का चयन, फिर लें एडमिशन : पंचानन प्रसाद सिन्हा
प्रधानाचार्य के पद से सेवानिवृत्त नुरा निवासी पंचानन प्रसाद सिन्हा कहते हैं कि जांच-परख कर संस्थान का चयन करने की जरूरत है. उसके बाद ही उस कोचिंग में एडमिशन लें, अन्यथा भावी पीढ़ी का भविष्य खराब होने से कोई नहीं बचा पाएगा. करियर में संभलने के लिए 16 से 25 वर्ष की उम्र काफी महत्वपूर्ण है. ऐसे में दिशा भटकेंगे, तो उसकी भरपाई संभव नहीं है. कोचिंग का स्टैंडर्ड, वहां के विषय विशेषज्ञ, माहौल सबकुछ परखना होता है. कोचिंग संस्थानों में बच्चों के एडिमशन के पहले खुद अभिभावकों को स्थल पर जाकर इन बातों को परखने की जरूरत है.
पढ़ाई को बिजनेस नहीं बनाएं, बच्चों का करियर संवारें : राजरानी सिन्हा
सेवानिवृत्त प्रधानाध्यापिका राजरानी सिन्हा कहती हैं कि अधिकांश कोचिंग संस्थानों ने पढ़ाई को बिजनेस बना लिया है. बच्चों को मंजिल तक पहुंचाने और समर्पण के भाव खत्म हो रहे हैं. बच्चों का करियर संवारने की जगह बस भीड़ बढ़ाने की जोर रहती है. चूंकि उसी से कोचिंग संस्थानों से पैसे आते हैं. कोचिंग के संचालक यह नहीं समझते कि अगर 10 बच्चे कोचिंग संस्थान में हैं और प्रतियोगिता परीक्षा में सभी कामयाब हो गए, तो उनके संस्थानों में एडमिशन के लिए ऐसे ही भीड़ बढ़ जाएगी. उन्हें जबरन बच्चों को लाने के लिए एजेंट रखने की जरूरत नहीं पड़ेगी. लेकिन ऐसा होता नहीं है. हजारीबाग के कोचिंग संस्थानों में सफलता दो-चार होती है और पैकेज 50 हजार की होती है.
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आकर्षित करनेवाले नाम, बड़े-बड़े बैनर-पोस्टर से बनाते हैं पहचान
हजारीबाग में औसतन हर गली-मुहल्लों में एकाध कोचिंग संस्थान और ट्यूशन सेंटर मिल जाएंगे. शहर में दो दर्जन से अधिक कोचिंग संस्थान हैं, जहां मेडिकल और इंजीनियरिंग की तैयारी कराई जाती है. कोचिंग संस्थानों के नाम भी चुनकर रखे जाते हैं ताकि प्रतिभागियों और उनके अभिभावकों को लुभाने में आसानी हो. कोई सक्सेस, तो कोई सुपर, तो कोई लक्ष्य, तो कोई विजन जैसे नाम रखते हैं. शहर में बड़े-बड़े पोस्टर-बैनर लगाकर पहचान बनाने की फिराक में रहते हैं. अखबारों में बड़े-बड़े विज्ञापन छपवाते हैं. इतना ही नहीं छोटी-छोटी प्रतियोगिता कराकर नामचीन हस्तियों के हाथों पुरस्कार वितरण कराते हैं. नए कोचिंग संस्थान में भी ऐसी ही शख्सियत के कर कमलों से फीता कटवाकर लोगों की जेहन में यह घर कराने की कोशिश करते हैं कि उनका कोचिंग स्तरीय और सबसे अलग है.
खुद हो नहीं पाए कामयाब, अब बने हैं विषय विशेषज्ञ
अधिकांश कोचिंग संस्थानों में पढ़ानेवाले शिक्षक खुद को विषय विशेषज्ञ कहते हैं. सच खंगालने पर यह बात प्रकाश में आया है कि खुद अपने विषय में कभी कामयाब नहीं हो पाए, लेकिन स्वयं को सब्जेक्स्ट स्पेशलिस्ट के रूप में प्रचारित कराने में कभी पीछे नहीं रहते. जब प्रेस विज्ञप्ति जारी होती है, तो यह दावा किया जाता है कि उनके संस्थान में संबंधित विषयों के विशेषज्ञ और मार्गदर्शक मौजूद हैं.
फीस पर कोई लगाम नहीं, इनकम टैक्स देने का काम नहीं
हजारीबाग शहर के अधिकांश कोचिंग संस्थानों का फीस पर कोई लगाम नहीं है. प्रतिभागियों से अनाप-शनाप शुल्क वसूली की जाती है. एक संस्थान के संचालक ही बताते हैं कि मेडिकल-इंजीनियरिंग के लिए 50 हजार से लेकर 80 हजार तक फीस लेते हैं. यह तैयारी कराने का पैकेज है. वहीं लोक सेवा आयोग के लिए सर्वाधिक फीस वसूल की जाती है. सालभर का खर्च जोड़ेंगे, तो डेढ़ लाख से अधिक शुल्क लिए जाते हैं. जेपीएससी, बीपीएससी के भी करीब 70 हजार और इससे थोड़ा कम 40 हजार रुपए में एसएससी और अन्य कलेरिकल व शिक्षक आदि प्रतियोगिताओं की तैयारियों के लिए शुल्क लिए जाते हैं. दिलचस्प बात यह कि अधिकांश कोचिंग संस्थानों से इनकम टैक्स तक जमा नहीं किए जाते. सीए से मिलकर फॉर्म-16 भर दिए जाते हैं और उसी में भारी-भरकम कमाई की खपत दिखा दी जाती है.
न अग्निशमन, न शौचालय, तंगहाल कमरे में तैयारी
शहर के दो-चार चुनिंदे कोचिंग संस्थानों को छोड़ दिया जाए, तो उनमें न अग्निशमन यंत्र की व्यवस्था है और न ही ढंग के छात्र-छात्राओं के लिए अलग-अलग शौचालय उपलब्ध हैं. तंगहाल और अंधेर कमरे में बैठकर तैयारी कराई जाती है. कोचिंग संस्थानों में प्रवेश और निकासी के एक ही रास्ते हैं. हाल ही में डीडीसी सह नगर निगम की आयुक्त प्रेरणा दीक्षित ने सभी कोचिंग संस्थानों को निर्देश दिया है कि वे अग्निशमन यंत्र लगाएं. वहीं सरकार की ओर से शिक्षण संस्थानों के लिए जारी प्रावधान का पूरी तरह अनुपालन करें. चूंकि हादसा बोलकर नहीं आता है, तो उसका अनायास सामना करने के लिए सजग, सतर्क और पूरी तरह तैयार रहें.