Patna : प्रत्येक एक हजार बच्चों में से एक बच्चा पैदायशी तौर पर सुनने की क्षमता नहीं रखता है, जिस कारण वह बोलना भी नहीं सीख पाता. ऐसे बच्चे सारी उम्र मूक-बधिर इंसान के तौर पर छोटी-छोटी चीजों को लेकर संघर्ष करते हुआ आश्रित जीवन गुजारते हैं. जो पैदायशी सुन नहीं सकते, ऐसे बच्चों का जल्द -से -जल्द हियरिंग रिहैब ज़रूरी है. ऐसे बच्चों का यदि कॉक्लियर इम्प्लांट सर्जरी हो जाए तो वह आम बच्चों की तरह ही सामान्य जीवन जी सकता है. ऐसे बच्चों के लिए मेडिकल साइंस का यह बहुत बड़ा वरदान है. यह कहना है पटना के जानेमाने ईएनटी सर्जन/ऑटोलॉजिस्ट डॉ.अभिनीत लाल का.
गौरतलब है कि 3 मार्च को डब्ल्यूएचओ की ओर से वर्ल्ड हियरिंग डे मनाया जाता है. वर्ष 2023 का थीम- इयर एंड हियरिंग केयर फॉर ऑल रखा गया है.
लाईफ लांग होता है कॉक्लियर इम्प्लांट
डॉ. अभिनीत लाल के अनुसार एक बार टेस्ट के जरिए पता चल जाए कि बच्चे में सुनने की क्षमता नहीं है, तो फिर उसके लिए कॉक्लियर इम्पलांट सर्जरी की अनुशंसा की जाती है. यह एक ऐसा हियरिंग डिवाइस है, जिसका एक पार्ट कान की हड्डी में सर्जरी के द्वारा फिट किया जाता है, जिसे इम्प्लांट कहते हैं. दूसरा पार्ट स्पीक प्रोसेसर को कान के बाहरी हिस्से में फिट किया जाता है, जिसकी देखरेख करनी पड़ती है. बैट्री वगैरह चेंज किया जाता है. यह इम्पलांट लाइफ लांग होती है.
जन्मजात न सुनना मेडिकल इमरजेंसी
ईएनटी सर्जन डॉ. अभिनीत लाल के अनुसार कोई बच्चा अगर जन्म से सुन नहीं पा रहा है तो यह एक मेडिकल इमरजेंसी है. जरूरी है कि ऐसे बच्चों का जल्द से जल्द टेस्ट के बाद ट्रीटमेंट शुरू किया जाना. क्योंकि अच्छे परिणाम के लिए चार वर्ष से पहले बच्चे का कॉक्लियर हियरिंग डिवाइस इम्पलांट हो जाना चाहिए.
बेरा और ओएई टेस्ट बताता है हियरिंग प्रॉब्लम
आमतौर पर कुछ दिन से ही बच्चा झुनझुने जैसे खिलौने या किसी की आवाज पर रिस्पांस करने लगता है. लेकिन अगर बच्चा ऐसी आवाजों की तरफ ध्यान नहीं देता हो या मुड़ कर न देख रहा हो तो मां-बाप को सचेत हो जाना चाहिए. एक वर्ष के अंदर छोटे-छोटे शब्द न बोल पाए, डेढ़ वर्ष तक छोटे सेंटेंस न बोल पाए तो फौरन ही बेरा एंड ओएई टेस्ट करवाया जाना चाहिए. बिहार के प्रत्येक जिले में ऐसे टेस्ट करवाने की सुविधा मौजूद है.
कॉक्लियर इम्प्लांट सर्जरी पूरी तरह मुफ्त
ईएनटी सर्जन डॉ. अभिनीत लाल के अनुसार बच्चे मूक-बधिर न हों, इसलिए भारत सरकार नि:शुल्क यह ऑपरेशन करवाती है. बिहार में भारत सरकार (एडीआईपी स्कीम) के साथ-साथ दॉ हंस फाउंडेशन मिल कर यह सर्जरी करवा रही है. दॉ हंस फाउंडेशन बिहार में एकमात्र संस्था है, जो कॉक्लियर इम्प्लांट करवा रही है. हियरिंग डिवाइस की कीमत छह लाख है. जबकि सर्जरी में करीबन एक से डेढ़ लाख का खर्च आता है. इसका पूरा खर्च भारत सरकार और हंस फाउंडेशन उठाती है.
एनआईसीयू, आईसीयू में रहे बच्चों का टेस्ट जरूरी
डॉ. अभिनीत के अनुसार आमतौर पर बच्चों में हियरिंग प्रॉब्लम जन्मजात होती है, लेकिन कुछ अन्य कारण भी है, जिससे यह समस्या पैदा हो सकती है. अगर जन्म के फौरन बाद बच्चे को एनआईसीयू या आईसीयू में रखा गया हो, बच्चे को एंटीबायोटिक चला हो या फिर जॉन्डिस हो गया हो. साथ ही यदि मां को डिलीवरी के बाद किसी तरह इंफेक्शन जैसे रूबैला, मिजिल्स या मम्स वगैरह हुआ हो तो बच्चों को जल्द से जल्द बेरा एंड ओएई टेस्ट कराना जरूरी है.
बिहार सरकार हियरिंग टेस्ट जरूरी करे : डॉ. अभिनीत
डॉ. अभिनीत लाल ने बताया कि विश्व भर में बहुत सारे ऐसे देश हैं, जहां जन्म के फौरन बाद हियरिंग टेस्ट वैसे ही ज़रूरी है जैसे विभिन्न तरह के टीके लगवाना. हमारे देश में भी इसकी शुरुआत हो गई है. केरल में यह टेस्ट जरूरी है. वहीं मुंबई म्युनिसिपल ने भी इसे ज़रूरी कर दिया है. डॉ अभिनीत लाल ने बिहार सरकार से नवजात बच्चों का हियरिंग टेस्ट जरूरी करने की अपील की है. ताकि शुरुआत में ही बच्चों का इलाज संभव हो सके.
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