Ranchi : राज्य के वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग में कुछ आइएफएस अधिकारियों ने महज एक रिपोर्ट बना कर सरकारी राजस्व को 2000 करोड़ से अधिक का चूना लगाने की कोशिश की. यही नहीं, उन्होंने 40 से अधिक कोयला तथा आयरन ओर कंपनियों को गलत तरीके से लाभ पहुंचाया तथा इसके एवज में 100 करोड़ से अधिक की राशि का गबन किया. इसे झारखंड का सबसे बड़ा घोटाला बताते हुए लोकायुक्त से इसकी शिकायत की गयी है. शिकायत में भारतीय वन सेवा के दो अधिकारियों, लाल रत्नाकर सिंह और पीके वर्मा को इस घोटाले का मास्टर माइंड बताया गया है. पीके वर्मा अभी झारखंड के प्रधान मुख्य वन संरक्षक और झारखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के चेयरमैन हैं. शिकायत की प्रति केंद्रीय सतर्कता आयुक्त को भी भेजी गयी है.
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कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए निर्धारित राशि घटायी
यह मामला उत्तरी कर्णपुरा कोल ब्लॉक तथा पश्चिमी सिंहभूम जिले में एकीकृत वन्य प्राणी प्रबंधन योजना (integrated wild life management plan) बनाने में कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए निर्धारित राशि को जनबूझकर कम किये जाने का है. भारत सरकार के वन पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग ने हजारीबाग जिले में एनटीपीसी की कोयला खनन परियोजना के लिए मंजूरी देते हुए शर्त रखी थी कि नॉर्थ कर्णपुरा कोल ब्लॉक एरिया में खनन की अनुमति पाने वाली सभी निजी कंपनियां और सेंट्रल कोलफील्ड्स लिमिटेड (सीसीएल) कोयला खनन से वन्य प्राणियों और वनस्पति पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव से निपटने के लिए बनाये जानेवाले integrated wild life management plan (IWMP) में अंशदान करेंगे. शर्त के अनुसार NTPC को इस एकीकृत प्लान बनाने में होनेवाला पूरा खर्च वहन करना था. नॉर्थ कर्णपुरा कोल ब्लॉक के क्षेत्र में हजारीबाग, चतरा, लातेहार, रामगढ़ और रांची जिले शामिल हैं. इसके साथ ही केंद्रीय वन मंत्रालय ने स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया की चिड़िया खदान के लिए फॉरेस्ट क्लीयरेंस देते हुए सारंडा के विश्व प्रसिद्ध साल वन में खनन से होनेवाले दुष्प्रभावों से निबटने के लिए integrated wild life management plan बनाने की शर्त रखी थी.
सरकार ने श्रीवास्तव की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय कमेटी बनायी
झारखंड सरकार ने 2011 में 3 सदस्यों की समिति गठित की, जिसका काम नॉर्थ कर्णपुरा कोल ब्लॉक और पश्चिमी सिंहभूम के लिए integrated wild life management plan तैयार करना था. रांची विश्वविद्यालय में प्राणी शास्त्र के प्रोफेसर डॉ डीएस श्रीवास्तव को इस समिति का चेयरमैन बनाया गया. उनके साथ डॉ पीएस ईशा, जो KFRI में वाइल्डलाइफ विंग के हेड थे तथा रिटायर आइएफएस एधिकारी जेबी जौहर को इसका सदस्य बनाया गया. इनके द्वारा तैयार योजना को वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (WII), देहरादून से मूल्यांकन कराना था और सक्षम प्राधिकार द्वारा इसका अनुमोदन किया जाना था. श्रीवास्तव की अध्यक्षतावाली कमेटी ने उत्तरी कर्णपुरा कोल ब्लॉक के लिए तैयार IWMP को 15 दिसंबर 2015 को पीसीसीएफ वाइल्ड लाइफ के माध्यम से WII को अग्रसारित किया.15 इस IWMP का प्रस्तावित आउटले 2050 करोड़ रुपये का था. WII ने इस IWMP की समीक्षा की और 6 अक्टूबर 2016 को इस सुझाव के साथ पीसीसीएफ कार्यालय भेजा कि पलामू टाइगर रिजर्व से कोडरमा वाइल्ड लाइफ सेंचुरी तक का वन्यजीव कॉरिडोर अक्षुण्ण रखा जाये और इसमें किसी तरह की छेड़छाड़ न की जाये. WII ने नॉर्थ कर्णपुरा कोल ब्लॉक को लेकर श्रीवास्तव कमेटी के एकीकृत वाइल्डलाइफ मैनेजमेंट प्लान पर कोई टिप्पणी नहीं की.
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डॉ डीएस श्रीवास्तव और रत्नाकर सिंह ने गठजोड़ बनाया
WII के सुझाव के बाद डॉ डीएस श्रीवास्तव ने 2017 में एक पुनरीक्षित इंटीग्रेटेड मैनेजमेंट प्लान जमा किया. उस समय लाल रत्नाकर सिंह पीसीसीएफ (वाइल्ड लाइफ) के पद पर आसीन थे. शिकायत में कहा गया है कि डॉ श्रीवास्तव और लाल रत्नाकर सिंह ने एक नापाक गठजोड़ बनाया और नॉर्थ कर्णपुरा क्षेत्र में कोल ब्लॉक पानेवाली निजी कंपनियों से 50 करोड़ की घूस लेकर प्रस्तावित आउटले को 2050 करोड़ से घटाकर 250 करोड़ कर दिया. यानी इन दोनों अधिकारियों ने साजिशन 1825 करोड़ रुपये कम कर कंपनियों को फायदा पहुंचाया. शिकायत के अनुसार पीसीसीएफ (वाइल्ड लाइफ) लाल रत्नाकर सिंह और श्रीवास्तव ने जानबूझकर 2015 में बनाये गये मूल प्लान को ही पीसीसीएफ (वाइल्ड लाइफ) कार्यालय से हटा दिया. लाल रत्नाकर सिंह ने 23 नवंबर 2017 को 225 करोड़ के घटाये हुए प्लान को वरीय अधिकारियों के अनुमोदन के लिए फॉरवर्ड कर दिया. इसके बाद पीके वर्मा ने लाल रत्नाकर सिंह से पीसीसीएफ (वाइल्ड लाइफ) का चार्ज लिया. सरकार ने उन्हें इस मामले की जांच के लिए कहा. उन्होंने भी लाल रत्नाकर सिंह और डीएस श्रीवास्तव से हाथ मिला लिया और निजी कोल कंपनियों से 20 करोड़ की रिश्वत लेकर एक नया इंटीग्रेटेड वाइल्ड लाइफ प्लान बनाया. नये प्लान की लागत 1120.50 करोड़ थी, जबकि मूल प्लान 2050 करोड़ रुपये का था. इस तरह से वर्मा ने कोल कंपनियों को 929.50 करोड़ का फायदा पहुंचाया. लेकिन तत्कालीन पीसीसीएफ (एचओएफएफ) संजय कुमार ने इस साजिश की गंध सूंध ली और सरकार को इस मामले की जांच के लिए लिख दिया. जांच से घबराए पीसीसीएफ (वाइल्डलाइफ) पीके वर्मा ने अपनी रिपोर्ट को तत्काल संशोधित करते हुए प्लान आउटले को 2089.80 करोड़ कर दिया.
झारखंड सरकार ने मामले की जांच के लिए कमेटी बनायी
इसके बाद झारखंड सरकार ने इस पूरे मामले की जांच के लिए पीसीसीएफ (बंजर भूमि विकास बोर्ड) शशि नंदकुलियार की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित कर दी. इस कमेटी ने सरकार को सौंपी अपनी रिपोर्ट में लाल रत्नाकर सिंह और डीएस श्रीवास्तव को दोषी पाया. पीके वर्मा संदेह का लाभ पाकर बरी होने में सफल रहे और 20 करोड़ डकार गये. तब तक संजय कुमार झारखंड छोड़ कर जा चुके थे और भारत सरकार के वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय में डायरेक्टर जनरल (फॉरेस्ट) का पद संभाल चुके थे.
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वर्मा की नियुक्ति का मामला कोर्ट और सदन तक पहुंचा
शिकायतकर्ता का आरोप है कि पीके वर्मा ने इन 20 करोड़ रुपयों को राज्य का पीसीसीएफ (एचओएफएफ) और झारखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का अध्यक्ष बनने के लिए इस्तेमाल किया. पीके वर्मा की उम्मीदवारी को कभी सेलेक्शन कमेटी की मंजूरी नहीं मिली थी. उनकी नियुक्ति को केंद्रीय प्रशासनिक ट्रिब्यूनल (CAT) में चुनौती भी दी गयी. यही नहीं, प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड के अध्यक्ष के रूप में वर्मा की नियुक्ति को भी रांची हाइकोर्ट में चुनौती दी गयी है. जमशेदपुर के विधायक और राज्य के पूर्व मंत्री सरयू राय भी इस मुद्दे को झारखंड विधानसभा में उठा चुके हैं, लेकिन पैसे के दम पर वर्मा अपने पद पर बने हुए हैं. इस मामले में लाल रत्नाकर सिंह से स्पष्टीकरण मांगा गया, लेकिन उन्होंने जवाब नहीं दिया और 30 अप्रैल 2020 को रिटायर हो गये. उन्हें रिटायरमेंट के बाद सारे लाभ मिल गये और कोई कार्यवाही नहीं हुई. डीएस श्रीवास्तव को राज्य सरकार की सभी वाइल्डलाइफ कमेटियों से हटा दिया गया, लेकिन रत्नाकर सिंह और पीके वर्मा के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई और वह अपने खिलाफ उठने वाली हर आवाज को दबाने में कामयाब रहे.
सारंडा प्लान में भी श्रीवास्तव, सिंह और वर्मा की तिकड़ी ने किया खेल
शिकायत में कहा गया है कि ठीक यही प्रक्रिया सिंहभूम जिले के इंटीग्रेटेड वाइल्डलाइफ मैनेजमेंट प्लान बनाते वक्त भी अपनायी गयी. एक्सपर्ट कमेटी ने 2014 में इंटीग्रेटेड वाइल्ड लाइफ प्लान बना कर दिया, जिसकी समीक्षा वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया देहरादून ने की. यह पूरा प्लान 271.26 करोड़ का था, जिसके तहत 9186.94 हेक्टेयर क्षेत्र को उपयोग में लाना था. इसके हिसाब से प्रति हेक्टेयर की दर 2.96 लाख रुपये प्रस्तावित की गयी थी. इस प्लान की भी नयी दिल्ली में मल्टीडिसीप्लिनरी एक्सपर्ट कमिटी ने समीक्षा की थी, लेकिन अचानक लाल रत्नाकर सिंह और पीके वर्मा ने डीएस श्रीवास्तव के साथ मिलकर प्रति हेक्टेयर कंट्रीब्यूशन राशि को घटाकर 1.238 लाख कर दिया और एरिया को 9186.94 से बढ़ा कर 17501.026 हेक्टेयर कर दिया. सारंडा वन क्षेत्र में आनेवाली सभी लौह अयस्क खदानें निजी क्षेत्र की हैं, जिन्हें शाह कमीशन ने अवैध खनन का दोषी पाया था. लाल रत्नाकर सिंह और पीके वर्मा दोनों ने निजी आयरन ओर कंपनियों से 20 करोड़ रिश्वत के रूप में लिये. शिकायतकर्ता ने अपने आवेदन के साथ 40 पेज के दस्तावेज प्रमाण के रूप में संलग्न करते हुए लोकायुक्त से इसकी गहन जांच कराने की मांग की है.
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