Amit Singh
Ranchi : सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड की मानें तो रांची में बड़ी ही तेजी से भूमिगत जल(ग्राउंड वाटर) का स्तर नीचे जा रहा है. अगर यही स्थिति रही तो आने वाले 10 वर्षो में रांची सहित कई प्रमुख शहरों का ग्राउंड वाटर पाताल में पहुंच जायेगा. हर साल ग्राउंड वाटर के लेवल में औसतन पांच से सात फीट की गिरावट हो रही है. पिछले 10 सालों में 15 मीटर से ज्यादा नीचे ग्राउंड वाटर का लेवल चला गया है.पिछले साल की तुलना में इस साल रांची शहर में तीन मीटर तक वाटर लेवल नीचे जाने का आंकड़ा दर्ज हुआ है. यानी अब रांची शहर का ग्राउंड वाटर लेवल औसतन 18 मीटर तक नीचे चला गया है.
सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड के जल विशेषज्ञ गौतम राय का कहना है कि ग्राउंड वाटर लेवल का लगातार नीचे जाना बेहद चिंता का विषय है. ग्राउंड वाटर एक्सपर्ट एसएलएस जागेस्वर के अनुसार, बोरिंग के माध्यम से जितने पानी का दोहन हो रहा है, उतने पानी का 10 प्रतिशत हिस्सा भी भूगर्भ जल भंडार में मॉनसून के दौरान जमा नहीं हो पा रहा है.
कांके रोड, हरमू, हटिया, डोरंडा और अब स्मार्ट सिटी के नजदीक स्थिति भयावह है. यहां मॉनसून के पहले डीप बोरिंग में करीब 29 मीटर बिलो ग्राउंड लेवल दर्ज हुआ. जबकि मॉनसून के बाद ये करीब 17 मीटर दर्ज हुआ. राज्यभर में अब मात्र 500 मिलियन क्यूबिक मीटर (एमसीएम) भूगर्भ जल भंडार है.
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प्रदेशभर के मॉनिटरिंग की रिपोर्ट सरकार को भेजेगा बोर्ड
सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड प्रदेश भर में मॉनसून के बाद डीप एक्यूफर्स और डग वेल्स की मॉनिटरिंग, यानी उसके लेवल की जांच करेगा. नवंबर 2020 में मॉनिटरिंग का काम शुरू हुआ.
पहले चरण में रांची का ग्राउंड वाटर लेवल जांचा गया. 24 जिलों में जांच कार्य पूरा होने के बाद रिपोर्ट कंपाईल कर, सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड द्वारा सरकार को भेजा जायेगा.
रांची के ग्राउंड वाटर में तेजी से देखी जा रही है गिरावट
नवंबर में दर्ज ताजा रिकॉर्ड के अनुसार, रांची शहर के कई प्रमुख इलाकों में भूजल स्तर 17 मीटर या उससे अधिक नीचे चला गया है. कहें तो इस मॉनसून के बाद ग्राउंड वाटर लेवल 18 मीटर तक नीचे गिर गया है. सेंट्रल ग्राउंड वाटर की रिपोर्ट के मुताबिक, 2018 में रांची शहरी क्षेत्र में 12 डीप एक्यूफर्स (डीप बोर) की मॉनिटरिंग हुई थी. जिनके जलस्तर में 10-12 मीटर तक की गिरावट दर्ज की गयी थी. इस साल गिरावट में और तेजी देखने को मिल रही है.
10 साल में कई जिले हो जायेंगे ड्राई जोन घोषित
सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड के सीनियर हाइड्रोलोजिस्ट टीबीएन सिंह के अनुसार, झारखंड पठारी इलाका होने के कारण प्रदेश में होने वाली बारिश का ज्यादातर हिस्सा बह जाता है. औसतन हर साल राज्य में 1400 मिमी बारिश होती है. जिसमें से 80% बारिश का पानी बह जाता है. राजधानी में पानी के दोहन के प्रतिशत के हिसाब से महज 4.50% बारिश का पानी ही रिचार्ज, जमीन के अंदर स्टॉक हो पाता है.
यानी बारिश का ज्यादातर पानी बर्बाद हो जा रहा है. भू-गर्भ जल का भंडारण बहुत कम मात्रा में हो पा रहा है. जिस वजह से ग्राउंड वाटर लेवल में तेजी से गिरावट आ रही है. यह बेहद गंभीर और चिंता का विषय है. झारखंड में नहीं रुका भू-गर्भ जल का दोहन, तो 10 साल में कई जिले ड्राई जोन की श्रेणी में आ जायेंगे.
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दो बार होती है डीप एक्यूफर्स के वाटर लेवल की जांच
सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड हर साल मानसून के पहले और मानसून के बाद डीप एक्यूफर्स(डीप बोर) का वाटर लेवल जांचता है. नवंबर 2020 में रांची सहित प्रदेशभर में डीप बोर के वाटर लेवल की जांच शुरू की गयी. प्रदेशभर में बोर्ड 250 डीप एक्यूफर्स और 500 से ज्यादा डग वेल्स की मॉनिटरिंग करता है. जिन्हें जिले का वाटर क्वालिटी मॉनिटरिंग स्टेशन के नाम से जाना जाता है.
रांची के प्रमुख स्थानों का ग्राउंड वाटर लेवल इतना गया नीचे
जामचुआं, टाटा रोड में 11 मी., निफ्ट,हटिया 13मी., एचईसी, सेक्टर-2 15मी., हवाईनगर में 10मी., जेवीएम श्यामली 17मी, एसई ऑफिस, एचएचसी, हरमू में 18मी., हाई कांके 17.70मी., मिलिट्री कैंप,नामकुम 13मी., फॉरेस्ट नर्सरी, नामकुम 18 मी. मिला है.
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