का पानी पहुंच गया पाताल, ग्राउंड वाटर लेवल पहुंचा 18 मीटर नीचे
कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए निर्धारित राशि घटायी
यह मामला उत्तरी कर्णपुरा कोल ब्लॉक तथा पश्चिमी सिंहभूम जिले में एकीकृत वन्य प्राणी प्रबंधन योजना (integrated wild life management plan) बनाने में कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए निर्धारित राशि को जनबूझकर कम किये जाने का है. भारत सरकार के वन पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग ने हजारीबाग जिले में एनटीपीसी की कोयला खनन परियोजना के लिए मंजूरी देते हुए शर्त रखी थी कि नॉर्थ कर्णपुरा कोल ब्लॉक एरिया में खनन की अनुमति पाने वाली सभी निजी कंपनियां और सेंट्रल कोलफील्ड्स लिमिटेड (सीसीएल) कोयला खनन से वन्य प्राणियों और वनस्पति पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव से निपटने के लिए बनाये जानेवाले integrated wild life management plan (IWMP) में अंशदान करेंगे. शर्त के अनुसार NTPC को इस एकीकृत प्लान बनाने में होनेवाला पूरा खर्च वहन करना था. नॉर्थ कर्णपुरा कोल ब्लॉक के क्षेत्र में हजारीबाग, चतरा, लातेहार, रामगढ़ और रांची जिले शामिल हैं. इसके साथ ही केंद्रीय वन मंत्रालय ने स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया की चिड़िया खदान के लिए फॉरेस्ट क्लीयरेंस देते हुए सारंडा के विश्व प्रसिद्ध साल वन में खनन से होनेवाले दुष्प्रभावों से निबटने के लिए integrated wild life management plan बनाने की शर्त रखी थी.सरकार ने श्रीवास्तव की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय कमेटी बनायी
झारखंड सरकार ने 2011 में 3 सदस्यों की समिति गठित की, जिसका काम नॉर्थ कर्णपुरा कोल ब्लॉक और पश्चिमी सिंहभूम के लिए integrated wild life management plan तैयार करना था. रांची विश्वविद्यालय में प्राणी शास्त्र के प्रोफेसर डॉ डीएस श्रीवास्तव को इस समिति का चेयरमैन बनाया गया. उनके साथ डॉ पीएस ईशा, जो KFRI में वाइल्डलाइफ विंग के हेड थे तथा रिटायर आइएफएस एधिकारी जेबी जौहर को इसका सदस्य बनाया गया. इनके द्वारा तैयार योजना को वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (WII), देहरादून से मूल्यांकन कराना था और सक्षम प्राधिकार द्वारा इसका अनुमोदन किया जाना था. श्रीवास्तव की अध्यक्षतावाली कमेटी ने उत्तरी कर्णपुरा कोल ब्लॉक के लिए तैयार IWMP को 15 दिसंबर 2015 को पीसीसीएफ वाइल्ड लाइफ के माध्यम से WII को अग्रसारित किया.15 इस IWMP का प्रस्तावित आउटले 2050 करोड़ रुपये का था. WII ने इस IWMP की समीक्षा की और 6 अक्टूबर 2016 को इस सुझाव के साथ पीसीसीएफ कार्यालय भेजा कि पलामू टाइगर रिजर्व से कोडरमा वाइल्ड लाइफ सेंचुरी तक का वन्यजीव कॉरिडोर अक्षुण्ण रखा जाये और इसमें किसी तरह की छेड़छाड़ न की जाये. WII ने नॉर्थ कर्णपुरा कोल ब्लॉक को लेकर श्रीवास्तव कमेटी के एकीकृत वाइल्डलाइफ मैनेजमेंट प्लान पर कोई टिप्पणी नहीं की. इसे भी पढ़ें- बाबूलाल">https://lagatar.in/babulal-marandis-case-of-defection-high-court-will-decide-on-thursday/10408/">बाबूलालमरांडी के दल बदल का मामला, हाईकोर्ट गुरूवार को सुनाएगा फैसला
डॉ डीएस श्रीवास्तव और रत्नाकर सिंह ने गठजोड़ बनाया
WII के सुझाव के बाद डॉ डीएस श्रीवास्तव ने 2017 में एक पुनरीक्षित इंटीग्रेटेड मैनेजमेंट प्लान जमा किया. उस समय लाल रत्नाकर सिंह पीसीसीएफ (वाइल्ड लाइफ) के पद पर आसीन थे. शिकायत में कहा गया है कि डॉ श्रीवास्तव और लाल रत्नाकर सिंह ने एक नापाक गठजोड़ बनाया और नॉर्थ कर्णपुरा क्षेत्र में कोल ब्लॉक पानेवाली निजी कंपनियों से 50 करोड़ की घूस लेकर प्रस्तावित आउटले को 2050 करोड़ से घटाकर 250 करोड़ कर दिया. यानी इन दोनों अधिकारियों ने साजिशन 1825 करोड़ रुपये कम कर कंपनियों को फायदा पहुंचाया. शिकायत के अनुसार पीसीसीएफ (वाइल्ड लाइफ) लाल रत्नाकर सिंह और श्रीवास्तव ने जानबूझकर 2015 में बनाये गये मूल प्लान को ही पीसीसीएफ (वाइल्ड लाइफ) कार्यालय से हटा दिया. लाल रत्नाकर सिंह ने 23 नवंबर 2017 को 225 करोड़ के घटाये हुए प्लान को वरीय अधिकारियों के अनुमोदन के लिए फॉरवर्ड कर दिया. इसके बाद पीके वर्मा ने लाल रत्नाकर सिंह से पीसीसीएफ (वाइल्ड लाइफ) का चार्ज लिया. सरकार ने उन्हें इस मामले की जांच के लिए कहा. उन्होंने भी लाल रत्नाकर सिंह और डीएस श्रीवास्तव से हाथ मिला लिया और निजी कोल कंपनियों से 20 करोड़ की रिश्वत लेकर एक नया इंटीग्रेटेड वाइल्ड लाइफ प्लान बनाया. नये प्लान की लागत 1120.50 करोड़ थी, जबकि मूल प्लान 2050 करोड़ रुपये का था. इस तरह से वर्मा ने कोल कंपनियों को 929.50 करोड़ का फायदा पहुंचाया. लेकिन तत्कालीन पीसीसीएफ (एचओएफएफ) संजय कुमार ने इस साजिश की गंध सूंध ली और सरकार को इस मामले की जांच के लिए लिख दिया. जांच से घबराए पीसीसीएफ (वाइल्डलाइफ) पीके वर्मा ने अपनी रिपोर्ट को तत्काल संशोधित करते हुए प्लान आउटले को 2089.80 करोड़ कर दिया.झारखंड सरकार ने मामले की जांच के लिए कमेटी बनायी
इसके बाद झारखंड सरकार ने इस पूरे मामले की जांच के लिए पीसीसीएफ (बंजर भूमि विकास बोर्ड) शशि नंदकुलियार की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित कर दी. इस कमेटी ने सरकार को सौंपी अपनी रिपोर्ट में लाल रत्नाकर सिंह और डीएस श्रीवास्तव को दोषी पाया. पीके वर्मा संदेह का लाभ पाकर बरी होने में सफल रहे और 20 करोड़ डकार गये. तब तक संजय कुमार झारखंड छोड़ कर जा चुके थे और भारत सरकार के वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय में डायरेक्टर जनरल (फॉरेस्ट) का पद संभाल चुके थे. इसे भी पढ़ें- नौकरी">https://lagatar.in/irb-jawan-decides-to-leave-his-wife-and-get-married-as-soon-as-he-gets-a-job-know-the-whole-matter/10403/">नौकरीलगते ही IRB जवान ने पत्नी को छोड़ दूसरी शादी का लिया फैसला, जानें पूरा मामला