DR. Pramod pathak
10 मार्च को उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों के चुनाव परिणाम घोषित होंगे. तमाम नजरें इन चुनावों के नतीजों पर टिकी हैं क्योंकि इन्हें बहुत से लोग 2024 के लोकसभा चुनाव से जोड़कर देख रहे हैं. यानी इन नतीजों से 2 साल बाद होने वाले लोकसभा चुनाव की तस्वीर पर खासी रोशनी पड़ने की उम्मीद है. यह सही भी है क्योंकि ये चुनाव विपक्ष की रणनीति का बहुत हद तक निर्धारण करेंगे. वर्तमान राजनीतिक परिस्थिति में सबसे बड़ी गुत्थी इस बात की है कि विकल्प कहां है, तो इन पांच विधानसभा चुनावों का इस लिहाज से बड़ा महत्त्व है. आज देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था का सबसे बड़ा यक्ष प्रश्न है कि आखिर जनता के सामने भाजपा का क्या विकल्प है? विपक्ष की धुरी किस पार्टी या किस नेता के इर्द-गिर्द बनेगी, यह मूल मुद्दा है. बहुत सी राजनीतिक पार्टियां और बहुत से राजनैतिक पर्यवेक्षक इसी प्रश्न को लेकर परेशान हैं.
इसलिए राहुल निशाने पर : राजनीति के कई विशेषज्ञ कांग्रेस को इस स्थिति में नहीं मानते की वह विपक्ष का नेतृत्व कर सकती है. भाजपा की रणनीति भी यही है कि कांग्रेस को लोगों की नजर में ज्यादा से ज्यादा कमजोर साबित कर सके और विशेष रुप से राहुल गांधी को अक्षम दिखाना उनकी राजनीति का मूल हिस्सा है. उनकी सोशल मीडिया की पूरी टीम इस प्रयास में रहती है की राहुल गांधी को किसी भी तरह का राजनैतिक लाभ नहीं लेने दिया जाए और लोगों की नजर में उनके कद को न बढ़ने दिया जाए. लेकिन, वस्तुस्थिति यह है कि आज भी देश के स्तर पर भाजपा का विकल्प बनने की क्षमता यदि किसी पार्टी में है, तो वह कांग्रेस है. यही आज एकमात्र पार्टी है, जिस की मौजूदगी देश के हर कोने में है. मगर कांग्रेस को यह साबित करने के लिए एड़ी – चोटी का जोर लगाना पड़ेगा. भाजपा इस बात को जानती है और कांग्रेस पर प्रहार करने का कोई भी अवसर नहीं चूकती. उन्हें मालूम है कि यदि कांग्रेस यह साबित कर सके कि अखिल भारतीय स्तर पर वही पार्टी भाजपा का सामना कर सकती है, तो 2024 के लोकसभा चुनाव की कहानी कुछ और होगी. इसी आलोक में उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों में हो रहे चुनावों को समझना होगा. यहां यह जानना आवश्यक है की उत्तर प्रदेश भले ही सबसे अहम मसला है लेकिन पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर भी महत्व रखते हैं. वह इसलिए की यह राज्य कांग्रेस को वह संजीवनी दे सकते हैं, जिसकी आज उसे आवश्यकता है. उत्तर प्रदेश में अखिलेश के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी कड़ी टक्कर भले ही दे रही है लेकिन उसके लिए अकेले बहुमत लाना आसान नहीं दिख रहा. यदि भाजपा को चुनौती देनी है, तो गैर भाजपा पार्टियों को यह समझना होगा कि वर्तमान परिस्थिति में एकता चलो रे की रणनीति प्रभावी नहीं होगी. यह ठीक है कि कांग्रेस का वोट प्रतिशत और सीटों की संख्या पिछले विधानसभा चुनाव में काफी कम थी लेकिन हमारे देश में चुनावों में वोट प्रतिशत और सीट के बीच का संबंध थोड़ा जटिल है और एक – दो प्रतिशत का उलटफेर भी नतीजों को प्रभावित करता है. इस लिहाज से उत्तर प्रदेश के परिणाम काफी महत्वपूर्ण होंगे. रही बात पंजाब, उत्तराखंड और गोवा की तो वहां के परिणाम यह साबित करेंगे कि राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा को चुनौती देने में कांग्रेस किस स्थिति में है. पंजाब और उत्तराखंड में अरविंद केजरीवाल की आप पार्टी अपने को मजबूती से लड़ाकर राष्ट्रीय राजनीति में अपनी पैठ और पहुंच साबित करने की कोशिश मैं है. यदि यहां आप पार्टी कांग्रेस को कड़ी चुनौती देती है तो कांग्रेस के लिए अस्तित्व का संकट बढ़ जाएगा. संभवत भाजपा के खेल का यह एक हिस्सा हो. मणिपुर के परिणाम आत्मसंतोष के लिए ज्यादा महत्वपूर्ण हैं.
बीजेपी के खिलाफ सब एक हों तब बात बने : खंडित विपक्ष ही भाजपा की सबसे बड़ी ताकत है. राष्ट्रीय स्तर पर सबल विपक्ष का अभाव आज की राजनीति की सबसे बड़ी विडंबना है. जाहिर है, भाजपा बार-बार यही सवाल खड़ा करती है कि विपक्ष का नेतृत्व कौन करेगा. यहां यह भी समझ लेना आवश्यक है कि नरेंद्र मोदी को इसका सबसे ज्यादा फायदा मिलता है. यदि उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों के परिणाम यह दर्शाते हैं कि भाजपा की स्थिति अपेक्षाकृत कमजोर हुई है तो विपक्ष को यह साबित करने में आसानी होगी कि भाजपा को आगामी लोकसभा चुनाव में मजबूत चुनौती दी जा सकती है. यहां कुछ बुनियादी सवाल खड़े होते हैं. पहला तो यह है कि उत्तर प्रदेश में भाजपा को पिछले चुनाव की अपेक्षा कितनी सीटें मिलती हैं. सिर्फ बहुमत ही काफी नहीं है. बड़ी बहुमत भाजपा को 2024 के चुनाव में मजबूती प्रदान करेगी. यदि उत्तर प्रदेश में उनकी सीटें ज्यादा घट जाती हैं, तो उसकी दिक्कत बढ़ सकती है. यही भाजपा की दुविधा है. अंदरूनी राजनीति की मांग कुछ और है और राष्ट्रीय राजनीति की मांग कुछ और. शेष राज्यों में यदि भाजपा बनाम कांग्रेस ही लड़ाई का प्रमुख हिस्सा बनती है तो राष्ट्रीय राजनीति में कांग्रेस को लाभ मिलेगा. यदि आप पार्टी संघर्ष में मजबूती से उभरती है तो यह कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी होगी. कुल मिलाकर इन पांच राज्यों के चुनाव का देश के राजनैतिक भविष्य पर बड़ा असर पड़ने वाला है. प्रश्न एक उपयुक्त विकल्प का है और यह इस बार के पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के परिणाम तय करेंगे. किंतु वस्तुनिष्ठ राजनीतिक विश्लेषण के आधार पर राष्ट्रीय स्तर पर अभी कांग्रेस को खारिज नहीं किया जा सकता. इसीलिए शायद मीडिया के कई तबकों में नरेंद्र मोदी के बाद राहुल गांधी की बात होती है. और भाजपा की तरफ से भी सबसे आक्रामक हमला कांग्रेस और राहुल गांधी पर होता है. यह रणनीति का हिस्सा है क्योंकि यदि विकल्प का प्रश्न उठता है तो राष्ट्रीय स्तर पर फिलहाल कांग्रेस ही नजर आती है . भले ही कितना भी पीछे हो. एक चीज और भी समझनी होगी कि किसी भी मोर्चाबंदी में कांग्रेस का होना जरूरी होगा. राष्ट्रीय स्तर पर आप पार्टी या तृणमूल कांग्रेस अभी अपनी पहचान उस स्तर तक नहीं बना पाई है. कुल मिलाकर आगे की राजनीति क्या करवट लेगी, यह इन चुनावों से तय होगा. { लेखक आई आई टी -आई एस एम, धनबाद के रिटायर्ड प्रोफेसर हैं। यह उनके निजी विचार हैं . }