Vishmay Alankar
Hazaribagh : हज़ारीबाग़ और चतरा के सीमावर्ती क्षेत्रों में अफीम की खेती जोरों पर है. पहले जहां टमाटर की खेती की जाती थी उन खेतों में अफीम उगाया जा रहा है. पहली बार झारखंड में अफीम की कॉन्ट्रेक्ट खेती भी शुरू हुई है. कॉन्ट्रेक्ट पर अफीम की खेती इस इलाके में पहली दफा किया जा रहा है, जो काफी चौंकाने वाला है. कॉन्ट्रैक्ट खेती के गंभीर परिणाम होंगे इसकी आशंका भी जताई जा रही है .
क्या होती है अफीम की कॉन्ट्रेक्ट खेती ?
कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग में सामान्यता बड़ी कंपनियां किसानों से एक कॉन्ट्रेक्ट करती हैं, जिसमे वो किसानों को बीज, खाद और कृषि कार्य में लगने वाले पैसे का भुगतान करती है. इसके एवज में किसानों से उनकी पूरी फसलें खरीद लेती है .अब कुछ इसी अंदाज में अफीम के लिए पंजाब और हरियाणा के कारोबारी पैसे लगा रहे हैं. चतरा और हजारीबाग के युवक ज्यादा पैसे कमाने की लालच में इस दलदल में फंस रहे हैं. नशे के कारोबारी जो मुख्यतः दिल्ली, हरियाणा, पंजाब और महाराष्ट्र से आते हैं, स्थानीय स्तर पर एक युवक को मैनेजर नियुक्त करते हैं. उसे एक मोटी रकम देते हैं, जिसका काम आसपास के गांव के लोगों से अफीम की खेती करवाते हैं. देखरेख करने की भी जिम्मेदारी होती है. इसके एवज में उन्हें बड़ी रकम दी जाती है.
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कॉन्ट्रेक्ट खेती के दलदल में बर्बाद हो रहे है युवा
अनुमान है कि हजारीबाग के चौपारण प्रखंड में लगभग 500 एकड़ से अधिक में पोस्ते की फसल लहलहा रही है. ये पूरी तरह कॉन्ट्रेक्ट खेती पर आधारित है. खेती के लिए जमीन भी गैरमजरूआ और जंगल विभाग की होती है केवल 20 फीसदी जमीन रैयती होती है. वन विभाग या सरकारी जमीन होने पर किसी व्यक्ति विशेष पर केस होने का डर भी नहीं होता. रैयती जमीन होने पर पुलिस उसके मालिक को अभियुक्त बनाते हैं. पकड़े जाने पर पहले कई बार पुलिस जिस रैयती जमीन पर खेती हो रही होती है उसके मालिक को अभियुक्त बनाते हैं. इससे बचने के लिए कारोबारियों ने नया जुगाड़ निकाल लिया है. अफीम की खेती के लिए अब किसान जंगल और गैरमजरूआ जमीन पर फसलों को उगाते हैं. और आसपास के ग्रामीणों को रकम देकर इसकी पूरी निगरानी करवाते हैं.
नशे का व्यापार अब 200 करोड़ का
पूरा कारोबार लगभग 200 करोड़ का है. अक्टूबर के अंत और नवंबर की शुरुआत के समय इसकी बुवाई शुरू हो जाती है. अफीम के बीज को भी नशे के कारोबारियों द्वारा ही स्थानीय लोगों को उपलब्ध कराया जाता है. 3 से 4 महीने में यह फसल तैयार हो जाती है. मजदूर रात में फलों पर चीरा लगाते हैं और सुबह उससे निकलने वाले लाल रंग के गाढ़े अफीम को एकत्र कर लेते हैं. फूल के बाहरी छिलकों का इस्तेमाल डोडा के रूप में किया जाता है. डोडे में भी आंशिक रूप से नशा होता है. पहले इस इलाके से केवल अफीम की ही तस्करी होती थी लेकिन तस्करी में सुविधा और अधिक मुनाफा हो, इसके लिए कारोबारियों ने अफीम का प्रोसेसिंग यूनिट भी लगाया है. यहां अफीम को प्रोसेस कर चरस बनाया जाता है.
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एक एकड़ की फसल देती है लाखों की कमाई
एक एकड़ जमीन में 60 से 70 किलोग्राम अफीम की पैदावार होती है. बाजार में एक लाख रुपये किलो तक इसकी कीमत होती है. अफीम के फल से निकलने वाला पोस्ता दाना बाजार में हजार रुपये किलोग्राम से अधिक में बिकता है. फल का छिलका, इसका पेड़ का कुछ भाग जो डोडा के रूप में जाना जाता है, वो भी हजार रुपये प्रति किलो बिक जाता है.
पंजाब और महाराष्ट्र की मंडियों तक पहुंचाई जाती ही अफीम
पंजाब, राजस्थान और महाराष्ट् की मंडियों तक अफीम पहुंचाई जाती है. वहां से माल देश के बाहर भी भेजा जाता है. 10 साल पहले चतरा से शुरू हुआ कारोबार 200 करोड़ तक पहुंच गया. 60 किलो अफीम की पैदावार एक एकड़ जमीन में होती है. भारत मे अफीम 50 -60 हजार रुपए किलो तक बिकता है, जबकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी कीमत लाखों में होती हैं.
मैनेज से लेकर फायरिंग तक करवाते हैं तस्कर
नारकोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सब्सटेंस रूल्स- 1985 के नियम 8 के तहत अफीम की खेती के लिए लाइसेंस जरूरी होता है. अब इस इलाके से चरस की भी तस्करी की जाने लगी है. इस पूरे काम में सफेदपोश भी शामिल हैं. वन विभाग के पदाधिकारियों के बिना मिलीभगत के वन भूमि के सैकड़ों एकड़ में खुले आम खेती मुश्किल है. सब को बंधी बंधाई रकम का हिस्सा दे दिया जाता है. दिखावे के लिए कभी-कभी नष्ट करने की कार्रवाई चलती है, लेकिन बड़ी कार्रवाई विरले ही होती है. जो भी इनके कार्य मे बाधक या अड़ंगा बनने की कोशिश करते हैं उन्हें डराने धमकाने से भी ये लोग बाज नहीं आते. अभी हाल ही में चौपारण के एक स्थानीय पत्रकार के दुकान में इसी उद्देश्य से 7 राउंड फायरिंग भी की गयी थी.
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मामले पर क्या कहते हैं एसपी ?
इस पूरे मामले पर हजारीबाग के पुलिस अधीक्षक मनोज रतन चौथे ने बताया कि उन्हें इस कॉन्ट्रेक्ट खेती की जानकारी हुई है. इसे नष्ट करने के प्रयास प्रारंभ कर दिए गए हैं. इसी क्रम में हाल ही में 75 एकड़ में लगी अफीम की फसल को ट्रैक्टर और जेसीबी की सहायता से नष्ट किया गया है. जो अब तक इस ज़िले का रिकॉर्ड है. इसके साथ ही अभी कई छिटपुट जगहों पर हो रहे पोस्ते की खेती को भी खत्म किया गया है. कई बार काफी सुदूर जंगलों के बीच दुरूह स्थल पर पहुंचने में भले कठिनाई होती है, लेकिन अब इसके लिए स्पेशल नीति बनाई गई है. इसके तहत सूचना मिलते ही फौरी कार्रवाई की जा रही है.