Ranchi : झारखंड में कुरमी समुदाय के लोग एसटी वर्ग में शामिल करने के लिए आंदोलनरत हैं. पिछले कुछ दिनों से इसको लेकर आंदोलन चलाया गया. कई जगहों पर ट्रेनें रोकी गईं. कुरमी को एसटी वर्ग में शामिल किया जाना चाहिए या नहीं, इस पर पक्ष-विपक्ष में कई तर्क दिया जा रहा है.
कुरमी आंदोलन आदिवासियों की जमीन हड़पने की कोशिश- इमिल वाल्टर कांडुलना
सामाजिक कार्यकर्ता वाल्टर कांडुलना कहते हैं कि राज्य में सरना और ईसाई समुदाय के बीच सोची समझी साजिश के तहत विभेद करने का प्रयास लंबे समय तक किया जाता रहा है.
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भाजपा ने कुरमी को किया आगे- कांडुलाना
उन्होंने कहा कि हाल के दिनों में सरना और ईसाई समुदाय के बीच विभेद कम हुआ है. उसी प्रकार 1932 का खतियान लागू होने की घोषणा के बाद आदिवासी और मूलवासी समुदाय एकजुट होने लगे थे. इसी एकता को तोड़ने के लिए भारतीय जनता पार्टी ने कुर्मी समुदाय को आगे किया है. कुरमी गैर वजिब मांग करने लगे हैं. अब यह मांग सीधे तौर पर आदिवासियों की जमीन हड़कने की चाह में किया जा रहा है. राज्य में सीएनटी एसपीटी एक्ट लागू रहने के बाद भी आदिवासियों की हजारों, लाखों एकड़ भूमि को बाहरी लोगों के साथ साथ यहां के मूलवासियों ने भी छल प्रपंच के साथ कब्जा कर रखा है. अब आदिवासियों में कुरमी जाति को शामिल करने पर उन जमीनों को वैध कर दिया जायेगा. साथ ही आदिवासियों की पूरी जमीन हड़पी जायेगी. कुरमी जाति को आदिवासियों में शामिल करने की मांग की जा रही है, जो गैरवाजिब है. इसकी आवश्यकता नहीं थी. खतियान आधारित स्थानीय नीति लागू होने से सबसे अधिक फायदा मूलवासी समुदाय में कुरमी जाति को होता, लेकिन यह आंदोलन उसे भी कमजोर कर रहा है.
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कल भी थे, आज भी हैं और कल भी जनजाति रहेंगे-थानेश्वर महतो
वहीं कुरमी विकास युवा मोर्चा के अध्यक्ष थानेश्वर महतो कुरमी को एसटी में शामिल करने का समर्थन किया है. उन्होंने कहा कि टोटेमिक कुरमी /कुड़मी जनजाति देश की आजादी से पहले आदिम जनजाति की सुची मे सूचीबद्ध था. 6 सितम्बर 1950 को कुरमियों के लिए काला दिन रहा. लेकिन जब 1950 में अनुसूचित जनजाति का सूची तैयार हुआ तो कुरमी जनजाति को छोडकर बाकी आदिम जनजातियो को शामिल कर लिया गय. आज कुरमी समाज हाशिये पर चला गया है.
बिल लाएं नहीं तो उग्र आंदोलन- थानेश्वर महतो
72 वर्षो से अपनी मांगों को लेकर संघर्ष कर रहे हैं. कुरमी जनजाति को अनुसूचित जनजाति में शामिल नहीं की जाती है तो उनका आंदोलन जारी रहेगा. छोटानागपुर और संथाल परगना के कुरमी का अपनी भाषा, अपनी संस्कृति, अपना परब, अपनी नेगाचारी है. कुड़मी के बारह मासे तेरह परब है, जिस पर कुरमियों को गर्व है. हम कल भी जनजाति थे, आज भी हैं और कल भी जनजाति रहेंगे. हमारा संवैधानिक अधिकार है और हम इसे लेकर रहेंगे. शीतकालीन सत्र मे बिल नही लाया गया तो उग्र आन्दोलन होगा. इसके लिए जिम्मेवार केन्द्र सरकार होगी.