DR. Pramod Pathak
दुनिया को कोरोना की चपेट में आए 2 वर्ष से ज्यादा बीत चुके हैं. पहली लहर, दूसरी लहर और अब तीसरी लहर. लेकिन, कुछ भी स्पष्ट नहीं है. न तो बीमारी और न उसका इलाज. इस महामारी को समझना थोड़ा जटिल है. मानव समाज प्राचीन काल से महामारी का प्रकोप झेलता आया है. उसके अनुभव और उससे मिली सीख उसे महामारी को समझने में सहायक हो सकती है. पुरानी बोध कथाएं ऐसे ही अनुभवों पर आधारित होती हैं. प्रस्तुत है यहां ऐसी ही दो बोध कथाएं जो आज के इस कोरोना काल के कुछ अनकहे पहलू पर रोशनी डालती हैं.
पहली कथा है डरपोक खरगोश : कहानी है कि एक जंगल में एक खरगोश रहता था. उसे हमेशा यह भय रहता था कि आसमान गिरेगा तो क्या होगा ? गर्मी की एक दोपहर वह खरगोश नारियल के एक बड़े पेड़ के नीचे सो रहा था. अचानक बड़े जोरों की आवाज के साथ एक बड़ा सा नारियल उसके पीछे की तरफ गिरा. खरगोश उछला और यह चिल्लाता हुआ दौड़ा कि भागो आसमान गिर रहा है. सामने से एक दूसरा खरगोश आ रहा था. इसे देखकर वह भी भागने लगा. दोनों चिल्ला रहे थे – आसमान गिर रहा है. थोड़ा आगे एक कुत्ता मिला. इन्हें देखकर वह भी भागने लगा. सभी चिल्ला रहे थे – आसमान गिर रहा है. धीरे-धीरे सारे जानवर भागने लगे. सभी चिल्ला रहे थे भागो, आसमान गिर रहा है. इस शोर-शराबे से शेर अपनी मांद से बाहर निकला. भगदड़ में आगे जो जानवर मिला उसके सामने गुर्रा कर बोला – क्यों भाग रहे हो? सामने वाले जानवर ने कहा, हुजूर आप भी भागो आसमान गिर रहा है. शेर ने डांट कर पूछा – कहां आसमान गिर रहा है, दिखाओ. उस जानवर ने अपने पीछे वाले जानवर की तरफ इशारा करते हुए कहा कि इसे मालूम है. शेर ने उससे पूछा. उसने अपने पीछे वाले जानवर की तरफ इशारा किया और कहा – इसे मालूम है. इस तरह आखिरकार शेर उस पहले खरगोश तक पहुंचाऔर फिर उससे पूछा कि आसमान कहां गिर रहा है. खरगोश शेर को उस नारियल के पेड़ के पास ले गया और इशारा करते हुए बताना ही चाह रहा था कि तब तक जोर की आवाज साथ एक और नारियल गिरा.
खरगोश फिर से उछला और भागने की कोशिश करने लगा. शेर ने गुर्राकर उसे रोका और गिरे हुए नारियल की ओर इशारा कर डांटते हुए कहा कि देखो कहां आसमान गिर रहा है. कोरोना काल की भगदड़ और अफरा-तफरी पर यह कहानी सटीक टिप्पणी है.
दूसरी कहानी का शीर्षक है मृत्यु का देवता: कहानी यह है कि एक गांव के बाहर एक योगी झोपड़ी बनाकर अकेला रहता था. एक दिन रात को योगी ने एक बड़े से काले साये को गांव की तरफ बढ़ते हुए देखा. उसे संदेह हुआ कि आखिर क्या बात है. उसने हिम्मत जुटाकर उस साये को रोका और पूछा कि वह कौन है और गांव की तरफ क्यों जा रहा है? साये ने कहा कि वह मृत्यु का देवता है और गांव की तरफ इसलिए जा रहा है क्योंकि गांव में एक महामारी आने वाली है, जिसमें एक हजार लोगों को मरना है. कुछ दिनों बाद योगी को पता चला कि महामारी के चलते दस हजार लोग मारे गए. योगी को लगा कि मृत्यु के देवता ने उससे झूठ बोला था. उसने सोचा कि यह सवाल वह मृत्यु के देवता से जरूर करेगा कि आखिर उसने झूठ क्यों बोला? महामारी के बाद जब मृत्यु का देवता लौट रहा था, तो योगी ने रोक कर उससे पूछा कि उसने झूठ क्यों बोला? मृत्यु के देवता ने जवाब दिया कि उसने झूठ नहीं कहा था. महामारी के कारण तो एक हजार लोग ही मरे थे. शेष नौ हजार तो भय के कारण मरे थे. यह कथा भी कोरोना काल में जो कुछ हुआ और जो हो रहा है, उस पर सटीक टिप्पणी करती है. कोरोना महामारी में समस्या को बिगाड़ने में संक्रमण से ज्यादा मानसिक स्थिति ज़िम्मेदार रहा है. भय और भ्रम की स्थिति सूचना विस्फोट के चलते और बिगड़ी. अवैज्ञानिक सोच, अपुष्ट खबरों के चलते जितना नुकसान हुआ, उतना वायरस से नहीं हुआ. आज जरूरत है सही आंकलन कर ठोस कदम उठाने की. खास कर इसलिए कि वैश्विक स्तर पर कुछ ऐसे तत्व हैं, जिनकी रुचि है कि कोरोना चलता रहे. कोरोना आसानी से नहीं जाएगा. इसे भगाना होगा. हिम्मत और सावधानी के साथ. { लेखक आई आई टी – आई एस एम, धनबाद के रिटायर्ड प्रोफेसर हैं }