Vijay Shankar Singh
दुनिया भर के देशों ने पेगासस जासूसी के खुलासे पर अपनी प्रतिक्रिया देनी शुरू कर दी है. पर भारत इसे विपक्ष की साज़िश बता कर इस जासूसी के खिलाफ अभी कुछ नहीं कर रहा है. क्या जांच की आंच सरकार को झुलसा सकती है.
– पेगासस जासूसी मामले में इजरायल ने जांच का टास्क फोर्स बना दिया.
– फ्रांस ने न्यूज वेबसाइट मीडियापार्ट की शिकायत के बाद पेगासस जासूसी की जांच शुरु कर दी है.
– अमेरिका में बाइडेन प्रशासन ने पेगासस जासूसी कांड की निंदा की है.
– whatsapp के प्रमुख ने सरकारों व कंपनियों से पेगासस सॉफ्टवेयर बनाने वाली कंपनी NSO पर कार्रवाई की मांग की है.
– मैक्सिको ने NSO से किये गये कॉन्ट्रैक्ट को खत्म करने फैसला लिया है.
अमेजन ने NSO से जुड़े सभी एकाउंट को बंद कर दिया.
और भारत में क्या चल रहा है. पत्रकारों, नेताओं, संवैधानिक संस्थाओं के लोगों, सोशल एक्टिविस्टों के फोन की जासूसी के खुलासे के बाद लोकसभा-राज्यसभा में हंगामा है. विपक्ष आरोप लगा रहा है और सरकार डिफेंड कर रही है. बस इतना ही. सरकार यह मानती है कि जांच की जरूरत ही नहीं है.
जबकि कुछ सवाल सबके सामने हैं. जिनके जवाब देश के लोगों को चाहिए ही. सरकार को भी खुद को पाक-साफ साबित करने के लिए सवालों के जवाब के लिए कदम उठाने ही चाहिये. मसलनः-
– केंद्र सरकार ने पेगासस स्पाइवेयर खरीदा या नहीं खरीदा.
– यदि खरीदा है, तो क्या इस स्पाइवेयर से विपक्षी नेताओं, पत्रकारों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, सुप्रीम कोर्ट के जजों और कर्मचारियों की निगरानी की गयी है या नहीं ?
– यदि निगरानी की गयी है तो क्या सरकार के पास उनकी निगरानी के लिये पर्याप्त कारण थे?
– यदि सरकार ने पेगासस स्पाइवेयर नहीं खरीदा, तो फिर किसने खरीदा और तमाम लोगों की निगरानी किसने की है ?
जैसा कि देश के गृह मंत्री अमित शाह कहते हैं: ये खुलासे देश के खिलाफ षडयंत्र हैं. ये खुलासे किसी षडयंत्र के तहत सरकार को अस्थिर करने के लिए हुए हैं, तो भी मोदी सरकार को मजबूती के साथ कार्रवाई करनी चाहिए. यह तभी हो सकती है जब मोदी सरकार जरूरी जांच कराये.
पेगासस एक व्यावसायिक कंपनी है. जो पेगासस स्पाइवेयर बना कर उसे सरकारों को बेचती है. इसकी कुछ शर्तें होती हैं और कुछ प्रतिबंध भी. जासूसी करने की यह तकनीक इतनी महंगी है कि इसे सरकारें ही खरीद सकती हैं. यह स्पाइवेयर आतंकी घटनाओं को रोकने के लिए आतंकी समूहों की निगरानी के लिये बनाया गया है. सरकार ने यदि यह स्पाइवेयर खरीदा है तो उसे इसका इस्तेमाल आतंकी संगठनों की गतिविधियों की निगरानी के लिये करना चाहिए था. पर इस खुलासे में निगरानी में रखे गए नाम, जो विपक्षी नेताओं, सुप्रीम कोर्ट के जजों, पत्रकारों, और अन्य लोगों के हैं, उसे सरकार को स्पष्ट करना चाहिए.
फ्रांसीसी अखबार ला मोंड ने लिखा है कि नरेंद्र मोदी जब जुलाई 2017 में इजरायल गये थे, तब वहां के तत्कालीन राष्ट्रपति बेंजामिन नेतान्याहू से उनकी लंबी मुलाकात हुई थी. इसके बाद पेगासस स्पाईवेयर का भारत में इस्तेमाल शुरू हुआ, जो आतंकवाद और अपराध से लड़ने के लिए 70 लाख डॉलर में खरीदा गया था. पूर्व केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने यह कहा है कि दुनिया के 45 से ज़्यादा देशों में इसका इस्तेमाल होता है, फिर भारत पर ही निशाना क्यों?
अगर सरकार ने यह स्पाइवेयर नहीं खरीदा है और न ही उसने निगरानी की है तो, फिर इन लोगों की निगरानी किसने की है और किन उद्देश्य से की है, यह सवाल और भी महत्वपूर्ण हो जाता है. अगर किसी विदेशी एजेंसी ने यह निगरानी की है तो, यह मामला और भी संवेदनशील और चिंतित करने वाला है.
सरकार फोन टेप करती हैं, उन्हें सुनती हैं, सर्विलांस पर भी रखती हैं, फिजिकली भी जासूसी कराती हैं, यह सब सरकार के काम के अंग हैं. इसीलिए इंटेलिजेंस ब्यूरो, रॉ, अभिसूचना विभाग जैसे खुफिया संगठन बनाये गए हैं और इनको अच्छा खासा धन भी सीक्रेट मनी के नाम पर मिलता है. पर यह जासूसी, या अभिसूचना संकलन, किसी देशविरोधी या आपराधिक गतिविधियों की सूचना पर होती है और यह सरकार के ही बनाये नियमों के अंतर्गत होती है. राज्य हित के लिए की गयी निगरानी और सत्ता हित के लिये किये गए निगरानी में अंतर है. इस अंतर के ही परिपेक्ष्य में सरकार को अपनी बात देश के सामने स्पष्टता से रखनी होगी.
पेगासस जासूसी यदि सरकार ने अपनी जानकारी में देश विरोधी गतिविधियों और आपराधिक कृत्यों के खुलासे के उद्देश्य से किया है तो, उसे यह बात संसद में स्वीकार करनी चाहिए. यदि यह जासूसी, सत्ता बनाये रखने, ब्लैकमेलिंग और डराने के उद्देश्य से की गयी है तो यह एक अपराध है. सरकार को संयुक्त संसदीय समिति गठित कर के इस प्रकरण की जांच करा लेनी चाहिए. जांच से भागने पर कदाचार का संदेह और अधिक मजबूत होगा.
सबसे हैरानी की बात है, सुप्रीम कोर्ट के जजों की निगरानी. इसका क्या उद्देश्य है, इसे राफेल और जज लोया से जुड़े मुकदमों के दौरान अदालत के फैसले से समझा जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट के जज और सीजेआई पर महिला उत्पीड़न का आरोप लगाने वाली सुप्रीम कोर्ट की क्लर्क और उससे जुड़े कुछ लोगों की जासूसी पर सुप्रीम कोर्ट को स्वतः संज्ञान लेकर एक न्यायिक जांच अथवा सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में, सीबीआई जांच करानी चाहिए.
डिस्क्लेमरः लेखक सेवानिवृत आइपीएस हैं और ये इनके निजी विचार हैं.