Simdega / Kolebira : सिमडेगा जिला के कोलेबिरा प्रखंड के कल्हाटोली स्थित मां बाघचंडी मंदिर के वार्षिक उत्सव के अवसर पर भव्य कलश यात्रा निकाली गई. यह कलश यात्रा देव नदी से जल भरकर कल्हाटोली स्थित मां बाघ चंडी परिसर पहुंची. लगभग 5000 महिलाएं और बच्चियां इस कलश यात्रा में शामिल हुईं. कलश यात्रा के पश्चात मंदिर पर वैदिक मंत्र उच्चारण कर पंडित जी ने कलश को स्थापित किया. इस कलश यात्रा में कोलेबिरा, बानो जलडेगा के साथ-साथ गुमला, पालकोट, बसिया, कोनबीर एवं अन्य क्षेत्रों से भी महिलाएं शामिल हुईंं.
मान्यता है कि हर किसी की मनोकामना होती है पूरी
मां बाघचंडी धाम की आस्था दूर-दूर तक फैली हुई है. लोग बहुत दूर-दूर से यहां पर पूजा-अर्चना करने आते हैं. मान्यता है कि मां बाघचंडी से लोग जो भी मन्नत मांगते हैं, मां उसे पूरा करती हैं. इस मंदिर पर सालों भर भक्तों की भीड़ रहती है. झारखंड के अलावे अन्य राज्य से भी लोग मां बाघचंडी की पूजा-अर्चना करने पहुंचते हैं. हर वर्ष वार्षिक उत्सव के रूप में 12, 13 एवं 14 फरवरी तक 3 दिवसीय उत्सव का आयोजन किया जाता है. इस उत्सव में बड़ी से बड़ी संख्या में लोग विभिन्न क्षेत्रों से पहुंचते हैं और इस उत्सव में भागीदारी हो जाते हैं. इस 3 दिवसीय उत्सव पर मेला का भी आयोजन किया जाता है.
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सैंकड़ों वर्ष पहले एक शिला पर मिला था बाघ के पंजे का निशान
मां बाघचंडी मंदिर के मुख्य पुजारी पंचम सिंह और छत्रपति सिंह ने बताया कि आज से सैकड़ों साल पहले की बात है- कलहाटोली में कोलेबिरा मनोहरपुर मुख्य पथ पर मां जगदंबा रूपी चंडी का एक शीला देखा गया. उस शिला पर बाघ के पंजे का निशान है. यह पुरातन है, जिस समय यहां पर घनघोर जंगल हुआ करता था. आवागमन की सुविधा बिल्कुल नहीं थी, तब यहां पर एक छोटी सी पगडंडी हुआ करती थी. गोधूलि बेला में उस समय बाघ इस जगह पर आर पार होता था. ऐसी मान्यता थी कि जिस किसी को मां का दर्शन होता था, बाघ उसके सामने स्वयं प्रकट हो जाता था और उन्हें दर्शन देता था. तब धीरे-धीरे लोगों में आस्था बढ़ने लगी. पूरे क्षेत्र में इसकी चर्चा होने लगी. हमारे पूर्वज सैकड़ों वर्ष से मां की पूजा सेवा करते आ रहे हैं.
स्व. बहचरन सिंह ने की थी सबसे पहले मां की पूजा-अर्चना
यहां के सर्वप्रथम पुजारी के रूप में स्व. बहचरन सिंह आल्हा टोली निवासी ने पूजा-पाठ की थी, वह कुंभ वंश के थे. बहुचरन सिंह के निधन के बाद उत्तराधिकारी के रूप में उनका बड़ा बेटा स्व. नाथू सिंह इस देवी रूपी शीला (मां-बाघ चंडी) की पूजा-अर्चना करने लगे. उन्होंने बहुत ही भक्तिभाव और श्रद्धा पूर्वक मां की 80-90 साल तक सेवा की. नादू सिंह के निधन के बाद उनके तीसरे बेटे स्व. लग्न सिंह मां की पूजा सेवा करने लगे. इन्हीं के समय में मां बाघचंडी का नाम विख्यात होने लगा और धीरे-धीरे यहां पर परिवर्तन भी होने लगा. जब लोगों में इनकी आस्था बढ़ने लगी तो स्व. लगन सिंह के मन में विचार हुआ कि एक मंदिर बनाया जाए. सभी के सहयोग से मंदिर बनाकर 12 फरवरी 2012 को मां-बाघचंडी को स्थापित किया गया.
इसके बाद से प्रतिवर्ष मंदिर स्थापना वर्ष के रूप में 12,13 और 14 फरवरी को कलश यात्रा, अखंड हरिकीर्तन किया जाता है और मेला भी लगता है. लगन सिंह ने भी अपने जीवन काल में पूरे भक्ति भाव और श्रद्धापूर्वक मां-बाघचंडी की पूजा की. 24 दिसंबर 2021 को जब उनका निधन हो गया तब मां की सेवा के लिए उनके दोनों बेटों पंचम सिंह और छत्रपति सिंह को नियुक्त किया गया. तब से पंचम सिंह और छत्रपति सिंह पुजारी के रूप में मां की सेवा करते आ रहे हैं.
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