Faisal Anurag
इटली के मशहूर दार्शनिक और क्रांतिकारी अंतोनियो ग्राम्सी की एक प्रसिद्ध उक्ति है History teaches, but it has no pupils.” यानी इतिहास सिखाता है, लेकिन उसका कोई शिष्य नहीं होता. संसदीय इतिहास में लंबे समय बाद इतिहास,राष्ट्रवाद,भारतीय बहुलतावादी संस्कृति और संविधान की मूल स्थापना के संघात्मक यानी फेडरलिज्म के सवाल को गंभीरता से उठाया. ये सवाल भारत के दो नजरिए यानी यूनियन आफ फेडरल स्टेट बनाम एकाधिकारवादी प्रवृतियों को संबोधित है. भारतीय संसद में बहसों और तर्कों की वापसी का एक सुखद पहलू है. बावजूद इसके विपक्ष के बोलने से तो खलबली और तिलमिलाहट पैदा होती है,
उसे संसद के बाहर से जिस भाषा में जबाव दिया जाता है वह संसद में बोलने के अधिकार की गरिमा का एक तरह से हनन ही करता है.राहुल गांधी के इस भाषण ने सोशल मीडिया पर एक किस्म की बहस को तेज कर दिया है. भारतीय संसद ने गरिमापूर्ण बहस और तर्क के अनेक ऐसे दौर भी देखे हैं जब उसे सत्तापक्ष आलोचना से कहीं ज्यादा संवदेना के साथ ग्रहण करता था और आत्मपरीक्षण को उसे एक प्रयास मानता था.भारतीय संसदीय इतिहास में उन बहसों को मील का पत्थर माना जाता है.
राहुल गांधी ने जिन गंभीर सवालों को उठाया है उसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है.’1947 में जिस राजशाही को कांग्रेस ने खत्म किया था वो शहंशाही का आइडिया वापस आ गया है’ लोकसभा में कही गयी यह उक्ति विश्व स्तर पर डेमोक्रेसी,मानाधिकार और मानव विकास सूचकांक की हकीकतों की ही अभिव्यक्ति का हिस्सा है. राहुल गांधी ने दो हिंदुस्तान का उल्लेख कर आर्थिक सामाजिक विषमता की बढ़ती खायी से पैदा होने वाले संकटों के प्रति भी आगाह किया. हाल ही में आक्सफेम की एक रिपार्ट विषमता को लेकर आयी है.
यह रिपोर्ट भारत का वह आईना है जिन के राजनैतिक और समाजिक असंतोष के निहितार्थ को समझा जा सकता है. भारत की संपत्ति सिमट कर 111 घरानों और उसमें भी बड़ा हिस्स केवल तीन घरानों में सीमित हो रही है. इससे जाहिर है कि भारत में एक ऐसी असमानता को बढ़ने का अवसर दिया जा रहा है, जो भारत के राष्ट्र राज्य की अवधारणा के लिए घातक साबित हो सकता है. दो बड़े घरानों का उल्लेख कर नीतियों को कुछ ही लोगों के लिए उपयोगी बताया.राहुल गांधी एक तरह से अनेक स्वरों को संसद में आवाज दे रहे थे ’46 प्रतिशत गरीब हिंदुस्तान चुप नहीं बैठेगा.
राहुल ने कहा कि इन लोगों को दिख रहा है कि हिंदुस्तान के 100 सबसे अमीर लोगों के पास 55 प्रतिशत हिंदुस्तान का धन है और 10 लोगों के पास 40 प्रतिशत धन है. ये दो हिंदुस्तान आप बना रहे हैं, उसे जोड़ने का काम कीजिए.’
जवाहर लाले नेहरू के जमाने में डॉ. राम मनोहर लोहिया ने तीन आना बनाम तेरह आना का प्रश्न लोकसभा में उठा कर भारत में जिस असमानता के खतरे के प्रति अगाह किया था. लोहिया ने 1993 में यह सवाल उठा कर नेहरू की नीतियों को घेरा था.डॉ. लोहिया ने कहा था कि यह आंकड़ा सुधार लिया जाए. भारत की साठ फीसदी जनता की प्रति व्यक्ति आय महज तीन आने रोजाना है.
उन्होंने इसके पीछे के तथ्यों और सूत्रों का हवाला देते हुए उन्होंने बेहद लंबा और रोचक भाषण दिया था, जिसके बाद संसद में नेहरू मंत्रिमंडल के समक्ष काफी बौद्धिक चर्चा हुई, जिसे संसद में अब तक का सबसे स्वस्थ बहस माना जाता है. लेकिन राहुल गांधी के भाषण के बाद तर्कसंगत और रोचक बहस के बजाय संसद के बाहर उन पर हमला करने के लिए दर्जन भर मंत्रियों को उतार दिया गया. सरकार के मंत्री इतिहास पढ़ने की नसीहत दे रहे हैं.
दरअसल भाजपा के मंत्रियों और पूरी सरकार के रोष का एक बड़ा कारण यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तो अक्सर सहकारी संघवाद का उल्लेख करते रहते हैं. वे खुद को इस सहकारी संघवाद का चैंपियन भी बताने से गुरेज नहीं करते. लेकिन दक्षिण भारत और पूर्वत्तर भारत की सरकारों की आवाज को अनसुना करने की बात कह कर प्रधान मंत्री की इस मूल अवधारणा पर ही राहुल गांधी ने चोट किया. राहुल एक दूसरे के विरोधी नजरिए का उल्लेख करते हुए भारत के संविधान का उल्लेख करते हुए कहा कि भारत राज्यों के संघ का जहां बातचीत और बातचीत के माध्यम से निर्णय लिए जाते हैं.
सविधान बराबरी की साझेदारी और संवाद की बात करता है. लेकिन नरेंद्र मोदी की सरकार इस सहकार पर निरंतर हमले कर रही है. इतिहास का हवाला देते हुए राहुल ने कहा कि पिछले तीन हजार सालों के इतिहास में कोई भी साम्राज्य सहकार और संवाद से ही टिका रहा. महान अशोक सहित बाद के सम्राटों का हवाला देते हुए और इस संवाद,सहकार और विमर्श की भारतीय चेतना को फोकस किया. जाहिर है भारतीय सांस्कृतिक चेतना अपनी विविधता,बहुलता और डिसकोर्स यानी वादविवाद की शिक्षा देती है. एक भारत बनाने के क्रम में भारत की इस मूल चेतना तो अवरुद्ध हो रही है, साथ ही राज्यों, आम लोगों और जनसंघर्षो से संवाद के बजाय दिल्ली से नीतियों को थोपने की प्रवृति हावी है.
डॉ अंबेडकर ने तो यहां तक कहा है “हमारा संविधान एक संघीय संविधान है…संघ(सेंटर) राज्यों की एक लीग नहीं है…न ही राज्य सेंटर की एजेंसियां हैं, जो इससे शक्तियां प्राप्त करती हैं.”भारत का संविधान भी हम भारत के लोगों की संप्रभुता की गारंटी देता है. इन सवालों को लेकर यदि संसद गंभीर और संजीदा बहस करे तो लोकतांत्रिक संस्थानों की गरिमा की फिर से बहाली की राह सुगम हो सकती है. अंहकार की सत्ता लोकतंत्र विरोधी है. होना तो यह चाहिए कि संसद में दिए गए भाषण का जबाव संसद में ही दिया जाए न कि संसद से बाहर मंत्रीमंडल के सदस्यों द्वारा अपमानजनक भाषा में प्रतिक्रिया दिया जाए. लोकतंत्र में संसद के महत्व में कमी और वैचारिक असहमति के निजी दुश्मनी की हद तक चले जाना एक खतरनाक संदेश हैं.