Bhootnath
झारखंड का सचिवालय लगभग खाली है, क्योंकि सचिवालय कर्मियों ने सेल्फ लॉकडाउन ले लिया है. यानी सरकार ने उन्हें छुट्टी नहीं दी है. लॉकडाउन भी नहीं किया है. लेकिन सचिवालय कर्मी दहशत में हैं. उनके 200 से ज्यादा साथी संक्रमित हैं. 10 सहकर्मियों को वे खो चुके हैं. लेकिन ऐसा नहीं है कि सिर्फ सचिवालय के कर्मचारी ही दहशत में हैं. हर तरफ यही हाल है.
पेयजल स्वच्छता विभाग के कई वरिष्ठ अधिकारी और अभियंता संक्रमण की चपेट में है. 4 से ज्यादा अधिकारियों की जान चली गई है. झारखंड प्रशासनिक सेवा के दो अधिकारी इस बीमारी की चपेट में आकर असमय काल के गाल में समा चुके हैं. दर्जनों बीमार पड़े हैं. न्यायालय के कर्मचारी संक्रमित हैं. विश्वविद्यालय के कर्मचारी बीमार हैं. मर रहे हैं. पुलिस बल तो इस बीमारी के बोझ से चौतरफा कराह रहा है. कई सांसद, विधायक और सीनियर आईएएस भी कोरोना की चपेट में हैं.
संक्रमण का खतरा हर जगह है. हर तरफ से लॉकडाउन की मांग उठ रही है. यहां तक कि सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा भी राज्य में 2 हफ्ते के लॉकडाउन को जरूरी बता रहा है. राज्य में व्यापारियों के सबसे बड़े संगठन फेडरेशन चेंबर ऑफ कॉमर्स ने लॉकडाउन लगाने की मांग की है. जगह-जगह दुकानदार अपनी दुकानें खुद ही बंद कर रहे हैं. कंपनियां वर्क फ्रॉम होम दे रही हैं. इंडियन मेडिकल एसोसिएशन लॉकडाउन लगाने की सलाह दे चुका है. लोगबाग अब खुद भी सड़कों पर कम निकल रहे हैं. यहां तक की झारखंड की सत्ता में भागीदार कांग्रेस के अंदर से ही लॉकडाउन लगाने की आवाज आ रही है. कांग्रेस की मुखर विधायक दीपिका पांडे सिंह और कार्यकारी अध्यक्ष राजेश ठाकुर लगातार सार्वजनिक बयान दे रहे हैं कि कोरोना के संक्रमण के विभीषका को देखते हुए राज्य में तत्काल लॉकडाउन लगाना चाहिए. मीडिया की खबरों को सच माने तो मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन खुद भी लॉकडाउन लगाने के पक्ष में हैं, लेकिन लॉकडाउन नहीं लग रहा है. आखिर वे कौन लोग हैं जो नहीं चाहते कि लॉकडाउन लगे.
मीडिया रिपोर्टों से तो यही लगता है कि कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष और सरकार में वित्त खाद्य आपूर्ति मंत्री रामेश्वर उरांव लॉकडाउन के बरखिलाफ हैं. वे लगातार अर्थव्यवस्था की दुहाई दे रहे हैं. उन्हें लगता है कि लॉकडाउन लगाने से रोज कमाने खाने-वाले लोग संकट में आ जाएंगे. उनका यह भी कहना है कि कि पहले चरण में हमें कोरोना के बारे में पूरी जानकारी नहीं थी. लेकिन अब हमारे पास मुकम्मल जानकारी और तैयारी है और हम इसके फैलाव को रोक सकते हैं.
रामेश्वर उरांव बहुत सुलझे हुए और संवेदनशील लीडर हैं. लंबे समय तक भारतीय पुलिस सेवा में रहे. केंद्र में मंत्री भी रहे. उन्हें हालात की गंभीरता का पूरा अंदाजा होगा. उन्हें रोज कमाने-खाने वालों की चिंता है, इसे भी समझा जा सकता है, लेकिन जो हालात हैं, उसमें तो सब कुछ खुद ब खुद ठप हो जायेगा. और नहीं होगा तो लाशें गिनने के सिवा सरकार के पास कोई काम नहीं बचेगा.
एक और बात, बकौल रामेश्वर उरांव, जब सरकार के पास पहले चरण के आधार पर कोरोना की पूरी जानकारी और इससे निबटने की पूरी तैयारी है, तो कोरोना को रोक क्यों नहीं पा रहे. क्यों अस्पताल भरे पड़े हैं. बेड, दवाओं और ऑक्सीजन की कमी क्यों है. क्यों मौतों का आंकड़ा लगातार बढ़ रहा है. क्यों लाशों का अंतिम संस्कार कराने के लिए लोगों को सड़क जाम करनी पड़ रही है और क्यों श्मशान में लकड़ियां कम पड़ रही हैं?
राज्य के डॉक्टर, व्यापारी या अन्य लोग लॉक डाउन की मांग कर रहा है, तो क्या इन्हें अपनी रोजी की चिंता नहीं है. या वे सचिवालय कर्मी, जो आपके ना चाहते हुए भी सेल्फ लॉकडाउन पर चले गये हैं, अपनी नौकरी के प्रति कम प्रतिबद्धता रखते हैं. सरकार के खिलाफ जाकर कौन अपनी नौकरी को दांव पर लगाना चाहता है. लेकिन वह लगा रहे हैं. आज सचिवालय कर्मी ऐसा कर रहे हैं. कल अभियंता संघ चला जाएगा. परसों प्रशासनिक सेवा संघ के लोग चले जाएंगे और फिर कोई और!
अर्थव्यवस्था की दुहाई किसी काम नहीं आएगी. लोग बचे रहेंगे तो अर्थव्यवस्था फिर खड़ी हो जाएगी. लॉकडाउन का विरोध करनेवालों को पता है क्या कि अब लोगों के बच्चे उन्हें पैर पकड़ पकड़ कर बाहर निकलने से रोक रहे हैं. माएं और पत्नियां दुहाई दे रही हैं कि बाहर मत जाइए. भूखे रह लेंगे लेकिन आपको कुछ हो जाएगा, तो कैसे जिएंगे?
सरकार की सहमति के बगैर सचिवालय कर्मियों का सेल्फ लॉकडाउन पर जाना बहुतों की नजर में सरकार के खिलाफ बगावत हो सकता है, लेकिन दरअसल यह वक्त की नजाकत है, जिसका सियासत से कोई लेना देना नहीं है.