Deoghar : बिहार के सुल्तानगंज से बाबाधाम तक का सफर बहुत कठिन माना जाता है. कांवरिए सुल्तानगंज में गंगा नदी में जल भरने के साथ ही संकल्प लेकर बाबाधाम के लिए प्रस्थान करते हैं. देवघर पहुंचने पर वही गंगाजल बाबा भोलेनाथ को चढ़ाया जाता है. रास्ते में कांवरिए को साधु का जीवन शैली अपनाना पड़ता है. पवित्रता का पालन करना कांवरिए के लिए अहम है. खानपान में सावधानी बरतनी पड़ती है. सात्विक आहार ग्रहण करना पड़ता है. रास्ते में किसी कांवरिए के नाम का उच्चारण करने पर मनाही रहती है. कांवरिए एक दूसरे को बम नाम से पुकारते हैं. बोलेबम के नारे लगाते हुए कांवरिए आगे बढ़ते रहते हैं. सुल्तानगंज से बाबाधाम तक रास्ता शिवमय रहता है. कांवरियों के हाथ में घूंघरू भी रहता है. भीड़-भाड़ वाले जगहों में कांवरिए घूंघरू बजाकर आगे बढ़ते हैं.
भगवान राम ने सपरिवार की थी कांवड़ यात्रा
कांवड़ यात्रा की कथा बहुत पुरानी है. रावण पर विजय प्राप्त करने के बाद भगवान राम ने पत्नी सीता और तीनों भाइयों के साथ सुल्तानगंज से जल भरकर बाबाधाम की कांवड़ यात्रा की थी. मान्यता है कि उसी समय से कांवड़ यात्रा का प्रचलन है. स्कन्द पुराण में वर्णित है कि कांवड़ यात्रा से अश्वमेघ यज्ञ आयोजन के बराबर फल की प्रप्ति होती है. सावन महीने में शिवलिंग पर जलाभिषेक का विशेष महत्व है. कुछ धार्मिक ग्रंथों में रावण के भी सुलत्नागंज से देवघर तक कांवड़ यात्रा का वर्णन है.
कांवड़ यात्रा तीन तरह की होती है. एक कांवड़ यात्रा वह होती है, जिसमें कांवरिए रुक-रुक कर चलते हैं. दूसरी यात्रा में दंड-प्रणाम देते हुए बाबाधाम पहुंचना पड़ता है. तीसरी यात्रा में कांवरिए रास्ते में बिना रुके दौड़ते हुए बाबाधाम पहुंचते हैं. इसे डाकबम भी कहा जाता है. तीनों में दंड प्रणाम और डाकबम कठिन है.
यह भी पढ़ें : देवघर : बाबा मंदिर को दान में मिले 39 लाख 81 हजार रुपए