Faisal Anurag
वैश्विक स्तर पर तमाम चर्चाओं के बावजूद अफगानिस्तान में न तो मानवाधिकारों की रक्षा हो पा रही है और न ही किसी एक ऐसी सरकार बनने की प्रक्रिया का प्रभावी दबाव बन रहा है, जो अफगानियों के समावेशी साझा प्रतिनिधित्व का प्रतीक बने. विकसित देश हों या फिर विकासशील समूह अफगान सवाल पर ज्यादा से ज्यादा देशों को जुटाने की प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं. दिल्ली हो या फिर इस्लामावाद या फिर मास्को ऐसी अनेक बैठकें आयोजित की जा चुकी है. इन तमाम बैठकों से उन देशों की चिंताएं तो प्रकट हो रही हैं जिनके हित किसी न किसी रूप में अफगानिस्तान से जुड़े रहे हैं. इन बैठकों का मूल स्वर सिर्फ इतना भर है कि अफगान धरती को किसी भी अन्य देश में आंतकवादी कार्रवाइयों के लिए इस्तेमाल नहीं करने देना चाहिए. अफगानियों की आंतरिक हालत क्या हैं और वहां किस तरह के लोगों खास कर महिलाओं के लोकतांत्रिक और मानवाधिकारों के हनन में किसी भी तरह के दखल का संकेत नहीं मिलता है. लंदन में इसी साल जून में हुए जी 7 देशों की बैठक में सबसे ज्यादा बातें तो लोकतंत्र और मानवाधिकार की ही की गयी थी और उसके लिए वैश्विक पहल की भी बात की गयी थी.
अगस्त में तालिबान के काबुल पर कब्जे और अमेरिका सेना की वापसी के बाद से ही दुनिया के ज्यादातर देशों की अफगान दुविधा बरकार है. अभी तक किसी भी देश ने तालिबान की सरकार को मान्यता नहीं दी है. लेकिन चीन और पाकिस्तान के दूतावास वहां कार्यरत हैं. रूस की दुविधा यह है कि वह न तो तालिबान के साथ पूरी तरह दिखना चाहता है और न ही दूरी बनाना. इसी सप्ताह दिल्ली और इस्लामाबाद की बैठकों की कामयाबी इतनी भर दिख रही है जहां दिल्ली में चीन और पाकिस्तान के अलावे क्षेत्रीय देश के सुरक्षा सलहकार जमा हुए. दिल्ली की बैठक में इस बैठक में इरान, रूस, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उजबेकिस्तान के एनएसए शामिल हुए. जबकि इस्लामावाद में चीन,रूस, अमेरिका,पाकिस्तान और अफगान प्रतिनिधि शामिल हैं. भारत ने तो चीन और पाकिस्तान के सुरक्षा सलाहकारों को आमंत्रित किया था लेकिन दोनों ही नहीं शामिल हुए.
इन दो बैठकों के पहले मास्को में भी एक बड़ी बैठक हुयी थी जिसमें क्षेत्रीय देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया था. द हिंदू की सुहासिनी हैदर के अनुसार ” पाकिस्तान को तालिबान नेतृत्व के साथ एक आवश्यक वार्ताकार और अफगानिस्तान से व्यापार और संपर्क के एक महत्वपूर्ण ट्रांजिट बिंदु के रूप में देखा जाता है. नतीजतन, सीपीईसी और अमेरिका और उज्बेकिस्तान के साथ चीन ने इस्लामाबाद के साथ सभी ट्रांजिट यानी पारगमन व्यापार समझौतों पर बातचीत की है. तुर्कमेनिस्तान की सरकार ने टीएपीआई गैस पाइपलाइन पर चर्चा के लिए प्रतिनिधि काबुल भेजा है और उज्बेकिस्तान की सरकार ने पिछले महीने तालिबान के डिप्टी पीएम को यात्रा के लिए आमंत्रित किया था.” भारत इस क्षेत्र की एक बड़ी ताकत है आतंकवाद को लेकर उसकी चिंता बेमानी नहीं है. पाकिस्तान ने ही तालिबान को कतर की राजधानी दोहा में अमेरिका के साथ बातचीत के लिए तैयार किया था. लेकिन हक्कानी समूह के तालिबान पर प्रभाव को देखते हुए क्षेत्रीय देशों की चिंता अहम है. चीन भी एक ओर जहां अफागान में अपने सिल्क रूट की चिंताओं और खदानों को लेकर प्रभाव चाहता है तो साथ ही वह उइगरों के अलग देश की मांग को संभावित मदद को लेकर चिंतित भी है.
इन तमाम हालातों के बावजूद अफगान नागरिक बेहद तकलीफ से गुजर रहे हैं और 20 सालों के लोकतंत्र को छीन लिए जाने के कारण परेशान है. अफगानी महिलाओं को शरिया के नाम पर उनके आधुनिक अधिकारों से वंचित कर दिया गया है. यहां तक कि शिक्षा के दरवाजे भी सीमित हो गए हैं. अफगान नागरिक आर्थिक तौर पर भी सबसे बुरे दौर को देख रहे हैं. महिलाओं के विरोध प्रदर्शनों को न तो कोई वैश्विक मदद मिल रही है और न ही अफगान आइएस खुरसान के आतंकी हमलों को रोक पा रहा है. तालिबान के भीतर भी सत्ता की जंग जारी है. पाकिस्तान को भी अफगानी तालिबान के दबाव में तालिबान पाकिस्तान के साथ बतचीत के लिए तैयार होना पड़ा है. जबकि तालिबान पाकिस्तान भी एक लोकतंत्र विरोधी समूह है और उसने अनेक आतंकी घटनाओं को पाकिस्तान में अंजाम दिया है.
सवाल तो यह है कि आखिर तालिबान की असली शक्ति स्रोत कौन सी ताकत है जो उसे आधुनिक और लोकतांत्रिक बनाने के लिए दबाव बना रहा है. ड्रग्स की ताकत का अंदाजा दुनिया को है. ”समावेशी दृष्टिकोण” पर काम करने और “एक समावेशी राजनीतिक संरचना की दिशा में एक नई राजनीतिक प्रक्रिया और रोडमैप शुरू करने के लिए अफगान क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय हितधारकों को एक साथ लाने की जरूरत सबसे ज्यादा है. विशेषज्ञ तो यह भी मानते हैं कि इसके लिए तालिबान के विभिन्न समूहों को भी बातचीत में शामिल किए जाने की जरूरत है. यही नहीं अफगानिस्तान में समावेशी प्रक्रिया के लिए तालिबान पर वैश्विक दबाव के नए तरीके की जरूरत भी है.