Neeraj kumar
Dhanbad : धनबाद (Dhanbad) स्वतंत्रता सेनानी स्वर्गीय बालेश्वर प्रसाद सिंह उर्फ़ बालू दा ने अंग्रेजों के दांत खट्टे करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. आजादी के इस दिवाने के कारनामों से घबरा कर अंग्रेज सरकार ने उनके खिलाफ शूट एंड साइट का वारंट जारी कर रखा था. परंतु कोई भी दमनकारी चक्र उनके जोश को नहीं रौंद सका. वर्ष 1942-43 में वह देश की स्वतंत्रता के लिए मर मिटनेवाले संगठन के एरिया कमांडर थे. यह संगठन भागलपुर जिले में सक्रिय था. बालू दा मुख्यतः खगड़िया के सन्हौली गांव के रहने वाले थे. बाद में धनबाद के श्रीराम वाटिका में शिफ्ट हो गए.
अंग्रेज ने बूट से पूजा का प्रसाद गिराया, घर को लगा दी आग
बालू दा की 95 वर्षीय पत्नी रुक्मिणी देवी बताती हैं कि उनके पति के सिर पर अंग्रेजों ने इनाम की घोषणा कर रखी थी. जहां देखो, वहीं पर गोली मारने का वारंट जारी किया था. फिर भी वह छिप-छुपा कर परिजनों से मिलने घर आते थे. एक बार उनके आने की सूचना डीएसपी रैंक के एक अंग्रेज अधिकारी को लग गई. अंग्रेज अधिकारी घर पहुंचा तो बालू दा ने स्वयं अंग्रेज अधिकारी को छकाते हुए बताया कि बालेश्वर अभी यहीं था और उस दिशा में भागा है. अंग्रेज अधिकारी न्हें खोजने निकल पड़ा तो वह स्वयं वहां से खिसक गए. गए. अंग्रेज अधिकारी फिर उनके घर पहुंचा और एक बड़ी सी “देगची” में चढ़े प्रसाद को लात मारकर गिरा दिया. इसके बाद वह (रुक्मिणी देवी) गुस्सा हो गई और अंग्रेज अधिकारी का कॉलर पकड़कर ऐसी लटकी कि उसकी वर्दी फट गई. उसने अंग्रेज अधिकारी को पूजा का प्रसाद को बूट मारकर गिराने के लिए माफी मांगने पर मजबूर कर दिया. उससे गुस्साए अंग्रेज अधिकारी 2 घंटे बाद लौटे और पूरे घर को बारूद लगाकर जला दिया. लगभग 2 वर्षों तक घर के सभी लोग पॉलिथीन से बनी छावनी में रहे.
कई बार लूटा अंग्रेजों का खजाना
पुत्र डॉ कृष्ण मुरारी सिंह बताते हैं कि उनके पिता बताते थे कि उनकी स्वतंत्रता आंदोलन की टोली के लोग भागलपुर क्षेत्र में अंग्रेजों के किसी भी कार्यक्रम को सफल नहीं होने देते थे. कई बार उन्होंने सरकारी खजाने से भरे ट्रक व अन्य वाहन भी लूटे थे. इन बातों से खफा होकर अंग्रेजों ने उन पर शूट एंड साइट का वारंट जारी किया था.
सिर को छूती हुई निकली गोली
स्वतंत्रता सेनानी के पुत्र बताते हैं कि वर्ष 1942 के दौरान एक बार पकड़े जाने पर अंग्रेज अधिकारी ने बालू दा के सर पर बंदूक सटा दी थी, जिसे उन्होंने झटके से हटा दिया था. इसी क्रम में चली गोली उनके सिर के ऊपरी भाग में छूती हुई पार हो गई. बावजूद वह अंग्रेज अधिकारी को मात देकर फरार हो गए थे.
खिड़की का ग्रिल तोड़कर हुए थे फरार
बालू दा को पहलवानी का शौक था. इससे जुड़ी एक घटना को साझा करते हुए बताते हैं कि 1936-37 के दौरान अंग्रेजों को सूचना मिलने पर उन्होंने बालू दा को छपरा कॉलेज छपरा (वर्तमान में राजेंद्र कॉलेज छपरा) में घेर लिया था. कॉलेज के अंग्रेज प्राचार्य ने उन्हें भाग जाने को कहा तो वह खिड़की का ग्रिल तोड़कर बाहर निकले. लेकिन छत से गिरने के कारण उनका दाहिना पैर टूट गया. फिर वह पूरी जिंदगी ठीक से चल नहीं पाए.
जामुन के पेड़ पर बिताए 7 दिन-रात
बालू दा के पुत्र डॉ केएम सिंह ने याद करते हुए बताया कि एक बार अंग्रेजों ने उनके पिता का पीछा किया तो बचने के लिए वह जामुन के पेड़ पर चढ़ गए और अंग्रेजों की घेरा बंदी के बीच उसी पेड़ पर 7 दिन और 7 रातें गुजार दी. अंग्रेजों की घेराबंदी समाप्त होने के बाद वह सकुशल वहां से निकल गए.
जीवन परिचय
स्वर्गीय बालेश्वर प्रसाद सिंह का जन्म वर्ष 1916 में हुआ था. वर्ष 1998 में उनकी मृत्यु हुई. उनकी पत्नी रुक्मिणी देवी भी स्वतंत्रता सेनानी थी. बहनोई स्वर्गीय बंगाली सिंह ने स्वतंत्रता आंदोलन के लिए घोड़ा और हाथी दान किया था.
भारतीय रेलवे ने दिया सम्मान : 18 जुलाई 2022 को भारतीय रेलवे ने उन्हें सम्मान देते हुए नेता जी सुभाष चंद्र बोस जंक्शन गोमो से खुली कालका मेल को हरी झंडी दिखाकर नेताजी एक्सप्रेस के रूप में नामकरण करने का सम्मान दिया. बता दें कि इसी ट्रेन से 18 जनवरी 1941 को नेताजी सुभाष चंद्र बोस गोमोह से लाहौर के लिए रवाना हुए थे. अब रेलवे की वेबसाइट पर कालका मेल का नाम नेताजी एक्सप्रेस के नाम पर दर्ज हो चुका है. इसके पहले भी जिला प्रशासन और बिहार सरकार बालेश्वर प्रसाद सिंह और उनकी पत्नी रुक्मिणी देवी को कई बार सम्मानित कर चुकी है.
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