Dhanbad : गांव की महिलाएं भी अब चूल्हा-चौका के साथ पारिवार तो संभाल ही रही थीं, अब खुद को उद्यमी के रूप में भी स्थापित कर रही हैं. धनबाद जिले के जमाडोबा क्षेत्र के पटिया गांव की छाया कुमारी का पति जितेंद्र कुमार एक निजी कंपनी में अप्रेंटिसशिप पूरी करने के बाद पिछले साल से घर में बेकार बैठा है. पति की बेबसी को देखते हुए 24 वर्षीय छाया ने परिवार को संभालने का बीड़ा उठाया. वह पटिया में मां दुर्गा महिला स्वयं सहायता समूह के साथ जुड़ कर अपनी आमदनी बढ़ा रही है. वह गांव की सबसे शिक्षित महिलाओं में से एक है. कामकाज संभालते हुए अंग्रेजी में एमए भी कर रही है.
पहले पहल घर में हुआ था विरोध
छाया ने बताया कि इस क्षेत्र में ‘कामकाजी महिलाओं’ को लेकर कुछ वर्जनाएं हैं. हालांकि मुझे लगता है कि परिवार की मदद करने में कोई बुराई नहीं है. वास्तव में हमारी सास की पीढ़ी की महिलाओं ने ही परिवार का समर्थन करने की पहल की थी. शुरू में मेरे काम को लेकर घर में विरोध हुआ था. बाद में गांव की महिलाओं को देख मेरी सास ने समूह का हिस्सा बनने की अनुमति दी. 2020 से इस इस समूह के साथ काम कर रही हूं. समूह में 11 अन्य महिलाएं भी है.
15 साल से चल रहा है समूह
छाया ने बताया कि टाटा स्टील फाउंडेशन की मदद से गांव के सामुदायिक केंद्र में लगभग 15 साल पहले मां दुर्गा महिला स्वयं सहायता समूह की स्थापना हुई थी. शुरू में यहाँ ब्लैक-सोप और सर्फ बनाने का काम होता था. काम अच्छा चला. लेकिन मांग में कमी और उचित विपणन रणनीति की कमी के कारण बंद हो गया. जब से वह इस समूह से जुड़ी हैं, मशरूम की खेती हो रही है.
मशरूम की खेती से होता है अच्छा मुनाफा
छाया ने बताया कि कम खर्च में मशरूम की खेती अधिक फायदेमंद है. अभी ने 3 किलो कच्चे माल के लिए 1,500 रुपये का निवेश किया है, जिससे 120 किलो मशरूम का उत्पादन होगा. यह 400 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बेचा जाएगा. इस प्रकार, 48,000 रुपये की कुल अनुमानित बिक्री प्रारंभिक निवेश का 32 गुना है. जमाडोबा में सब्जी खुदरा विक्रेताओं के माध्यम से इसे बेचा जा सकता है. व्यवसाय ठीक होने से परिवार की स्थिति पहले से काफी बेहतर हो गई है.
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