Dhanbad : धनबाद (Dhanbad) आईआईटी-आईएसएम और बीसीसीएल के शोधकर्ताओं ने कोलवाशरी में कोयले की धुलाई के दौरान महीन कणों और भारी धातुओं को हटाने की कम खर्चीली और पर्यावरण के अनुकूल तकनीक विकसित की है. इस तकनीक से कोयला साफ करने पर अंडरग्राउंड वाटर, जीवों और मिट्टी पर बुरा प्रभाव कम पड़ता है. इस तकनीक में बायो कागैलेंट (कोयला धोने की प्रक्रिया में उपयोग होने वाले तत्व) के रूप में सरसों और मोरिंगा के बीजों का उपयोग किया गया है. अब तक भारतीय उपमहाद्वीप में अधिकतर प्लांट में कोयले की धुलाई के लिए पारंपरिक तकनीक ( फ्लोक्यूलेशन) का उपयोग होता रहा है, जिसमें कई तरह के रसायनों का उपयोग होता है.
अंडरग्राउंड वाटर, मिट्टी और जीवों के लिए भी लाभकारी
शोधकर्ताओं का नेतृत्व कर रहे वैज्ञानिक प्रो सुखा रंजन समद्दर ने बताया कि यह बायो कागैलेंट बायोग्रेडेबल होने के साथ ही पर्यावरण के अनुकूल है. इस प्रकिया में कम मात्रा में कीचड़ पैदा होती है. इस प्रकिया में उपयोग होने वाला पानी अच्छी गुणवत्ता का होता है, जिससे इसका उपयोग दोबारा कोल वाशरी में किया जा सकता है. रिसर्च में प्रो समद्दर के साथ बीसीसीएल के पर्यावरण विभाग के प्रमुख चीफ मैनेजर (माइनिंग) कुमार राजीव, और पर्यावरण विभाग के डेप्युटी मैनेजर अमृतांशु श्रीवास्तव के अलावा रिसर्च एसोसिएट खालिद अंसारी शामिल हैं.