Mithilesh Kumar
Dhanbad : देश की आजादी के लिए झरिया के 21 साल के युवा प्रभात चंद्र बोस ने अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति का बिगुल बजाया था. लोगों को एकजुट कर हर आंदोलन में अपनी सक्रिय भूमिका निभाई. अंग्रेज उनकी आवाज दबाने की जितनी कोशिश करते, उतनी ही मजबूती के साथ वे उनका सामना करते. 4 सितंबर 1920 को उन्होंने महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में धनबाद जिले का नेतृत्व किया था. इसके बाद अलग-अलग आंदोलनों में सक्रिय रहे और कई बार जेल भी गए. 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान उन्हें गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया. लगातार तीन साल तक जेल में रहे थे.
1946 में शुरू हुआ राजनीतिक सफर
प्रभात चंद्र बोस स्वतंत्रा आंदोलन से पहले मजदूर नेता थे. कोयला क्षेत्र के मजदूरों के साथ शोषण के खिलाफ आवाज उठाते थे. 1946 में उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की. धनबाद से बिहार विधानसभा के लिए चुने गए. 1952 में पहली बार धनबाद सीट से जीतकर लोकसभा में पहुंचे. 1957 में हुए चुनाव में भी धनबाद से सांसद बने. दूसरा कार्यकाल पूरा करने से पहले ही वर्ष 1959 में उनका निधन हो गया.
पिता बांग्लादेश से आकर झरिया में बस गए
प्रभातचंद्र बोस का जन्म 17 अगस्त 1899 को बांग्लादेश के जेसोर जिले के खासियाल गांव में हुआ था. जब वे छोटे थे तभी उनके पिता प्रियनाथ बोस काम की तलाश में झरिया पहुंचे और यहीं पर स्थाई रूप से बस गए. प्रभातचंद्र की प्राम्भिक शिक्षा झरिया के राज हाई स्कूल में हुई, जबकि उच्च शिक्षा कलकत्ता (अब कोलकाता) विश्वविद्यालय से पूरी की. 1917 में मृणालिनी बोस से शादी हुई. दोनों से तीन पुत्रियां और दो पुत्र हुए.
बड़े बेटे का भी राजनीति से रहा जुड़ाव
बोस परिवार को करीब से जानने वाले प्रद्युम्न चौबे बताते हैं कि प्रभातचंद्र बोस के बड़े बेटे पेशे से वकील थे. वे इंटक और आरसीएमएस से भी जुड़े रहे और अपने पिता की तरह मजदूरों की लड़ाई लड़ी. 2021 में उनका निधन हो गया. प्रभातचंद्र बोस के छोटे बेटे कृषि पदाधिकारी थे, अब एकांत जीवन बिता रहे हैं. एक पुत्री का निधन हो चुका है, जबकि दो बेटियां अविवाहित हैं और झरिया में ही रहती हैं.
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