अंग्रेजों के जमाने के पंपू तालाब पर एक हजार से अधिक लोग काबिज
धूल फांक रही 13.5 करोड़ की विकास योजना
Mithilesh Kumar
Dhanbad : धनबाद के पॉलिटेक्निक रोड स्थित पंपू तालाब का अस्तित्व खतरे में है. 22 एकड़ में फैला तालाब अब मात्र 4 एकड़ में सिकुड़ गया है. अंग्रेजों के जमाने से आस्तिव में आए इस तालाब की का जिस तरीके से अतिक्रमण हुआ और हो रहा है, उससे तालाब अब खत्म होने के कगार पर है. तालाब का आधा हिस्सा पिछले पांच साल से सूखा है. इस सूखे हिस्से पर भी अतिक्रमण जारी है. तालाब के आगे के हिस्से में सड़क है. सड़क की दोनों ओर का छह फीट के हिस्से पर कब्जा हो चुका है. वहां दर्जनों दुकानें खुल चुकी हैं. तालाब के पिछले हिस्से में पांडरपाला के लोग तालाब को ढकते हुए काफी आगे आ चुके हैं. दोनों हिस्सों पर खटाल, मकान, अपार्टमेंट, वाहन पार्किंग के जरिए कब्जा कर लिया गया है. बचे हुए हिस्से पर भी अतिक्रमण जारी है. इतने बड़े तालाब के चारों ओर लगभग एक हजार से अधिक लोगों का कब्जा हो चुका है. ये सबकुछ धीरे-धीरे जिला प्रशासन और रेलवे की नाक के नीचे हुआ है. लेकिन जिम्मेदारों को इसका तनिक भी अफसोस नहीं है. अभी तक तालाब के बचे हुए हिस्से को डेवलप करने के सिर्फ सपने दिखाए जा रहे हैं.
कभी रेलवे कॉलोनियों में होती थी पानी की आपूर्ति
जानकारों का कहना है कि पंपू तालाब शुरू से लेकर अभी तक रेलवे के अधीन है. अभी भी तालाब में रेलवे के दो पंप लगे हुए हैं. इन पंपों से पहले पानी को फिल्टर कर रेलवे कॉलोनियों में सप्लाई किया जाता था. रेलवे प्लेटफॉर्म की सफाई में भी इसका इस्तेमाल होता था. कभी यह तालाब पूरे शहर की शान था. यहां का चमकता पानी सबका मन मोह लेता था. आज हालात बदल गए हैं. तालाब नाला बन गया है और गंदगी से बजबजा रहा है. घरों का गंदा पानी तालाब में बहाया जाता है. आसपास बने अस्पतालों का मेडिकल वेस्ट भी इसी में गिरता है.
यूं होता रहा है तालाब पर कब्जा : मुन्ना ठाकुर
स्थानीय निवासी मुन्ना ठाकुर कहते हैं कि यहां अवैध कब्जे का खेल होशियारी से खेला जा रहा है. पहले अतिक्रमणकारी अपने घरों का कूड़ा-कचरा इसके किनारे डालते हैं. फिर अपनी जमीन बताकर निर्माण करते हैं. तालाब के अधिकतर हिस्से पर अतिक्रमण हो चुका है. पिछले पांच साल से तालाब का आधा से अधिक पानी सूख चुका है. बचे हिस्से में अब चंद लोग ही छठ पूजा करने आते हैं. इसके पहले बहुत भीड़ होती थी.
2019 में बनी थी तालाब के सौंदर्यीकरण की योजना
तत्कालीन मेयर चंद्रशेखर अग्रवाल के कार्यकाल में पंपू तालाब के सौंदर्यीकरण की योजना बनी थी. कुछ ही महीने बाद इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया. वर्ष 2021 में डीसी की अध्यक्षता में रेलवे और नगर निगम अधिकारियों के साथ बैठक हुई. रेलवे एनओसी भी देने के लिए तैयार हो गया. इसके बाद तालाब के चारों ओर ट्रैक बनाने, लोगों के बैठने के लिए बेंच, प्रवेश और निकास द्वार के साथ पार्किंग करने, फूल-पौधे लगाने व तालाब का पानी शुद्ध करने की योजना बनी. 13.5 करोड़ रुपया का बजट भी बना, लेकिन मामला नगर विकास एवं आवास विभाग में जाकर फंस गया.
रेलवे और जिला प्रशासन के कारण यह स्थिति : अशोक पाल
समाजसेवी और वार्ड 20 के निवर्तमान पार्षद अशोक पाल ने बताया कि पांपू तालाब इस इलाके का कभी रौनक हुआ करता था. लेकिन रेलवे की अनदेखी और जिला प्रशासन की लापरवाही के कारण अतिक्रमण की भेंट चढ़ गया. रही सही कसर राजकीय पॉलिटेक्निक के लोगों ने पूरी कर दी. जमीन दलालों के साथ मिलकर तालाब की जमीन बेच डाली. अब तालाब बचा कहां है, चारों ओर तो अतिक्रमण हो चुका है. जहा तक पानी सूखने की बात है, तो अंग्रेजो के समय में ही रेलवे ने तालाब का पानी रोकने के लिए एक दीवार बनवाई थी. 27 साल पहले गजलीटांड़ खान दुर्घटना के समय दीवार गिर गई. तभी से तालाब का पानी सूखने लगा, अब तो आधा से अधिक सुख चुका है.
अब मुश्किल है तालाब से अतिक्रमण हटाना : ब्रजेंद्र सिंह
प्रदेश कांग्रेस के उपाध्यक्ष ब्रजेंद्र सिंह ने बताया कि यह तालाब 70-80 साल पुराना है. मेरे घर के सामने ही है. जमीन रेलवे की है और ज्यादातर हिस्से पर कब्जा हो चुका है. अतिक्रमण हटाना तो अब मुश्किल है. तालाब का जो हिस्सा सूख गया है, निगम उसे समतल कर पार्क बना दे या पानी की व्यवस्था कर इसका सौंदर्यकरण हो जाए तो अच्छा रहेगा.
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