Mithilesh Kumar
Dhanbad : धनबाद (Dhanbad) चिरकुंडा के थाना प्रभारी रह चुके सुदामा चौबे की रगों में बचपन से ही देशभक्ति हिलोरें मार रही थी. यही कारण है कि वर्ष 1945 में जब अंग्रेज देश को बांटने के साथ हिन्दू-मुसलमानों के बीच नफरत का बीज बो रहे थे, तो बिहार के कैमूर जिले का 19 साल का यह युवक ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ क्रांति का बिगुल बजा कर लोगों को सावधान कर रहा था. कैमूर के हर आंदोलन में वह शामिल होते और अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा बुलंद करते थे. उनकी आवाज को दबाने के लिये ब्रिटिश हुकूमत ने उन्हें गिरफ्तार कर बिहार के गया जेल में डाल दिया. महीनों जेल में रहने के बाद बाहर निकले तो फिर आंदोलन में शामिल हो गए. उन्हें फिर गिरफ्तार किया गया. इस बार उन्हें पटना जेल में रखा गया. जेल में उन्हें यातनाएं दी गई, भूखे रखा गया. फिर भी आजादी के प्रति उनकी दीवानगी कम नहीं हुई. आजादी मिलने दिन तक उन्होंने अंग्रोजों की मुखालफत की.
1949 में आए धनबाद, चिरकुंडा थाना के दारोगा बने
स्वतंत्रता सेनानी के पोते रवि चौबे ने बताया कि दादा जी आजादी के दो साल बाद यानी 1949 में धनबाद आये थे. चिरकुंडा थाना में सिपाही की नौकरी ज्वाइन की. बाद में यहीं थाना प्रभारी बन गए. बच्चों की पढ़ाई लिखाई को ध्यान में रखते हुए धनबाद के हीरापुर में स्थायी निवास बनाया. वर्ष 1985 में रिटायर हुए. तीनों बेटों की पढ़ाई लिखाई धनबाद में ही हुई. बड़ा होने के बाद बेटों को फ़ौज में भेजा. आज उनके बड़े बेटे चंदन चौबे फ़ौज से रिटायर भी हो चुके है. दादाजी का निधन वर्ष 2003 में 95 वर्ष की अवस्था में हो गया. वर्ष 2021 में उनकी पत्नी भी चल बसी.
परिवार में आज भी है देश भक्ति का जुनून
रवि चौबे ने बताया कि मेरे परदादा के चार पुत्र थे, जिसमें तीन ने अंग्रेजों के खिलाफ जंग छेड़ दी. अलग अलग स्थानों से लड़े और बाद में भी देश सेवा से जुड़े रहे. उसके बाद की पीढ़ी भी देश सेवा में जुटी हुई है. दादा जी को भारत सरकार से ताम्रपत्र मिला था. इसके अलावा उन्हें पेंशन, आवास और ट्रेन में फर्स्ट एसी का पास भी मिलता था. पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने उन्हें एक पेट्रोल पंप भी देने को कहा था, लेकिन दादा जी ने ना कर दी.
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