Mithilesh Kumar
Dhanbad : धनबाद (Dhanbad) केंद्र और राज्य सरकार हर साल गरीबों के लिये कल्याणकारी योजनाएं बनाती है. परंतु क्या ये सभी योजनाएं सचमुच धरती पर उतर पाती हैं. यह भी देखना दिलचस्प होगा कि इन योजनाओं का शतप्रतिशत फायदा गरीब व वंचित लोगों को मिल पाता है या नहीं. कुछ तो अधिकारियों की लापरवाही व कुछ जागरुकता के अभाव में योजनाएं असली मुकाम तक पहुंच ही नहीं पाती है.
धराशायी हो गई पेट्रोल सब्सिडी योजना
एक साल पहले यानी 26 जनवरी 2022 को राज्य सरकार द्वारा शुरू की गई पेट्रोल सब्सिडी योजना की कहानी कुछ ऐसी ही है. जिले में 5 लाख से अधिक ऐसे गरीब हैं, जिनके पास अलग अलग राशन कार्ड है. बावजूद पेट्रोल सब्सिडी का लाभ हर माह मात्र 700 लोग ही ले पा रहे हैं. मनरेगा की तर्ज पर शुरू की गई मुख्यमंत्री श्रमिक योजना, मुद्रा लोन, उज्ज्वला योजना, बेबी केयर योजना, जननी शिशु सुरक्षा योजना की भी कमोबेश यही स्थिति है.
कोई लाभ लेनेवाला भी तो हो : अपर समाहर्ता
अपर समाहर्ता नंद किशोर गुप्ता कहते हैं कि योजना का लाभ जरूरतमंदों को देने के लिये तैयार हैं और दिया भी जा रहा है. समय समय पर प्रचार प्रसार भी किया जाता है. जो कुछ भी त्रुटियां सामने आती हैं, उसे दूर भी किया जाता है. परंतु कोई यह लाभ लेने के लिये ही तैयार न हो तो कोई क्या कर सकता है.
हर माह 250 रुपया देने की हुई थी घोषणा
पिछले साल आसमान छूती पेट्रोल की कीमतों के मद्देनजर राज्य सरकार ने लाल, पीला, हरा कार्डधारियों को 10 लीटर पेट्रोल की खरीद पर हर माह 250 सब्सिडी देने की घोषणा की थी. शुरू में 18 हजार लोगों ने आवेदन दिया. उन्हें इस योजना का लाभ भी मिला. मगर दूसरे माह से ही लाभ लेनेवाले पीचे हटने लगे. सरकार ने लोगों को जागरूक करने का काम शुरू किया. फिर भी लोग योजना का फायदा उठाने के लिए फिक्रमंद नहीं हुए. हर माह सब्सिडी के लिये आवेदन और पेट्रोल का हिसाब देने के झंझट के कारण यह योजना फेल हो गई. कई लोग इस भ्रम के भी शिकार हो गए कि सब्सिडी के चक्कर में कहीं राशन कार्ड ही न रद्द हो जाए.
मुख्यमंत्री श्रमिक योजना भी विफल
कोरोना काल में प्रवासी मजदूरों के लिये राज्य में मुख्यमंत्री श्रमिक योजना शुरू की गई. प्रारंभ में धनबाद नगर निगम कार्यालय को 11 हजार से अधिक आवेदन मिले. एमबीए, बीएड पास युवाओं ने भी आवेदन किया. ज्यादातर ने जॉब कार्ड भी बनवाया. परंतु मजदूरी का नाम सुनते ही युवा गायब हो गए. निगम के अधिकारियों का कहना है कि उनके पास मुख्यतः सफाई का काम है. शुरू में 300 लोगों को काम भी दिया गया. लेकिन कोई करने के लिये ही तैयार नहीं है तो क्या करें. अब इस योजना के तहत मात्र 20-25 लोग ही काम कर रहे हैं. कम वेतन और पूरे साल शहरी क्षेत्र में काम नहीं मिलने की वजह से यह योजना भी विफल रही. युवा फिर से मुंबई, दिल्ली जैसे बड़े शहरों की खाक चानने को विवश हैं..
बेबी केयर योजना में किसी को नहीं मिला किट
राज्य में बेटियों की जन्म दर में सुधार लाने के लिये राज्य सरकार ने बेबी केयर योजना शुरू की है. इस योजना के तहत नवजात बेटियों की देख भाल के लिये सरकार बेबी केयर किट उपलब्ध कराती है. जिले में 12 हजार किट उपलब्ध भी कराये गए. परंतु यह योजना भी आकाओं की लापरवाही की शिकार हो गई. एक भी किट बेटियों के परिवार को नहीं मिला.
प्रसूताओं को नहीं मिल रही सरकारी सुविधा
गर्भवती महिलाओं की बेहतर देख भाल के लिये राज्य सरकार ने जननी शिशु सुरक्षा योजना शुरू की है. इस योजना के तहत प्रसूताओं को मुफ्त दवा और स्वास्थ्य जांच की व्यवस्था करनी है. परंतु यह काम भी आधा अधूरा चल रहा है. ज्यादातर सरकारी अस्पतालों में प्रसूताओं को यह सुविधा नसीब नहीं हो रही.
रसोई घर में फिर धुएं ने जमाया डेरा
उज्ज्वला योजना के तहत केंद्र सरकार ने महिलाओं को गैस चूल्हा और सिलिंडर उपलब्ध कराया है. प्रायः हर घर तक इस योजना का लाभ तो पहुंचा, लेकिन धनबाद में आज भी ज्यादतर गरीबों के घर कोयले पर ही खाना पक रहा है. गैस सिलिंडर किसी कोने में पड़ा है. महंगी गैस रिफिलिंग इस योजना के फेल होने का सबसे बड़ा कारण रहा. 1110.50 रुपये में भला कौन गरीब गैस भराएगा. सब्सिडी के नाम पर भी गरीबों के खाते में मात्र 37 रुपये पहुंचते हैं. यही कारण है कि 1.8 लाख लाभुकों में मात्र कुछ लोग ही हर माह गैस सिलेंडर भरवा पा रहे हैं.
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