Surat : गुजरात के सूरत में एक हीरा व्यापारी की आठ साल की बेटी संन्यासी बन गई. बुधवार सुबह छह बजे से धनेश सांघवी की बेटी देवांशी की दीक्षा शुरू हो गई. हजारों लोगों की मौजूदगी में देवांशी जैनाचार्य कीर्तियशसूरीश्वर महाराज से दीक्षा ली. देवांशी के परिवार के ही स्व. ताराचंद का भी धर्म के क्षेत्र में एक विशेष स्थान था. उन्होंने श्री सम्मेदशिखर का भव्य संघ निकाला और आबू की पहाडिय़ों के नीचे संघवी भेरूतारक तीर्थ का निर्माण करवाया था.
भरतनाट्यम और योगा भी सीख चुकी है
देवांशी सिरोही जिले के मालगांव की रहने वाली हैं और महज आठ साल की हैं. वह क्विज में गोल्ड मेडल जीत चुकी है. इसके अलावा संगीत के सभी राग में गाना, भरतनाट्यम और योगा भी सीख चुकी हैं. देवांशी ने कभी टीवी नहीं देखा. वह हिंदी, अग्रेजी, संस्कृत, जारवाड़ी और गुजराती सहित कुछ अन्य भाषाएं भी जानती हैं. देवांशी के जन्म पर उनके परिजनों ने नवकार महांमत्र श्रवण कराने के साथ ही ओगे का दर्शन कराया था. 25 दिन की आयु में नवकारशी का पच्चखाण लेना और चार महीने में रात का भोजन त्याग शुरू किया. आठ महीने में त्रिकाल पूजन की शुरुआत की. एक साल की होने पर नवकार मंत्र का जाप भी शुरू कर दिया. एक साल तीन महीने की आयु में दीक्षा दर्शन शुरू किए.
250 साधु-साध्वी भगवंतों का गुरु पूजन किया
चार साल तीन महीने की उम्र में देवांशी ने गुरु भगवंतों के साथ रहना शुरू कर दिया. वे हर महीने में दस दिन गुरु भगवंतों के साथ रहती थीं. इस दौरान 37 बड़ी दीक्षा, 13 बड़ी दीक्षा और 250 साधु-साध्वी भगवंतों का गुरु पूजन किया. इसके दो महीने बाद चार साल पांच महीने की उम्र में देवांशी ने ह्रदय प्रदीप और कर्मग्रंथ का वाचन शुरू कर दिया था. पांच वर्ष की आयु में प्रवेश करने पर दीक्षा विधि कंठस्थ की और फिर आराधना भी शुरू कर दी. पांच साल चार महीने का होने पर देवांशी ने एक ही दिन में आठ सामायिक, दो प्रतिक्रमण और एकासणा शुरू कर दिया था. सात साल की आयु में आते ही उन्होंने पौषध व्रत शुरू कर दिया था.
साधारण जीवन जीता है परिवार
देवांशी के पिता धनेश सांघवी हीरा कारोबारी हैं. उनकी सूरत में संघवी एंड संस नाम की हीरा कंपनी है, जो दुनिया की सबसे पुरानी हीरा कंपनियों में से एक है. धनेश और उनकी पत्नी अमी के दो बेटियां हैं. देवांशी उनकी बड़ी बेटी हैं. करोड़ों की संपत्ति होने के बाद भी हीरा कारोबारी का परिवार साधारण जीवन जीता है. कई साल के त्याग के बाद देवांशी ने संन्यास की राह पर चलने का फैसला किया.
संगीत और स्केटिंग में एक्सपर्ट हैं देवांशी
सूरत में ही देवांशी की वर्षीदान यात्रा निकाली गई थी. इसमें 4 हाथी, 20 घोड़े, 11 ऊंट थे. इससे पहले मुंबई और एंट्वर्प में भी देवांशी की वर्षीदान यात्रा निकली थी. देवांशी 5 भाषाओं की जानकार है. वह संगीत, स्केटिंग, मेंटल मैथ्स और भरतनाट्यम में एक्सपर्ट है. देवांशी को वैराग्य शतक और तत्वार्थ के अध्याय जैसे महाग्रंथ कंठस्थ हैं.
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