Soumitra Roy
कल बेंगलुरु से आए एक पीएचडी स्कॉलर मित्र के साथ बाज़ार गया. गुत्थमगुत्था भीड़. सजी-धजी दुकानों के बजाय खोमचों पर मंडराते लोग. दर्जन भर ऐसे दुकानदार भी मिले, जिनकी कभी आलीशान दुकानें हुआ करती थीं. आज वे रेहड़ियों पर आ चुके हैं.
माथे पर धार्मिक वर्चस्व का तिलक लगाए एक बीजेपी नेता भी मिले. बोले- दादा, आप बेकार सरकार को कोसते हैं. भीड़ देखिये. मैं उसकी मूर्खता पर मुस्कुरा कर निकल लिया. 130 करोड़ भारतीयों में से 11.4 करोड़ भरपेट लोगों के लिए भीड़ भी गौरव का विषय है. भारत को अपनी प्रजनन शक्ति पर इतना गौरव कभी नहीं रहा, जितना आज है.
इसके अलावा भारतीयों के पास आत्म गौरव और राष्ट्र गौरव के दो ही विषय बचते हैं- क्रिकेट और पाकिस्तान. इस्लामोफोबिया ने हमें चमत्कृत कर रखा है. क्रिकेट में कल भारत हारा तो मोदी और योगी के भाषणों ने सीना चौड़ा कर दिया. वरना, टूटी सड़कें, चरमराती व्यवस्था, ग़ैर ज़िम्मेदार राजनीति और भ्रष्ट सिस्टम कोई गर्व करने लायक नहीं.
बहरहाल, वर्ष 2016 के बाद से देश की असंगठित अर्थव्यवस्था की कमर अब पूरी तरह टूट चुकी है. इस पर बिज़नेस स्टैण्डर्ड ने आज अच्छी रिपोर्ट पेश की है. मित्र को कुछ कपड़े खरीदने थे. एक दुकान पर पहुंचे तो वहां बहस चल रही थी – अमेज़न पर इतने में मिल रहा है. आप इस पर 50 रुपये से ज़्यादा मार्जिन ले रहे. डिजिटल और गिग इकॉनमी ने संगठित अर्थव्यवस्था को तो मज़बूत किया है, लेकिन बेरोज़गारी भी बढ़ाई है.
आज धनतेरस पर अखबारों के इश्तेहार देखकर उस असमानता का अहसास होना चाहिए, जो भुखमरी सूचकांक के हालिया शर्म पर बहस कर रहे थे. भारत अब उस दिशा में चल पड़ा है. जिसे एकाधिकारवादी अर्थव्यवस्था कहते हैं. यानी 11 करोड़ करदाता जब सरकार को 75 लाख करोड़ उगाकर दे रहे हों तो भूखे-नंगों को क्यों पूछना?
यह निजी उपभोग का 65% है. वर्ष 2011-12 में इनफॉर्मल सेक्टर 54% पर था. वर्ष 2017-18 में 52% पर आया और अब इसमें 20% तक गिरावट आई है. यानी यह 32% पर आ चुका है.
करोड़ों नौकरियां चली गईं. करोड़ों भूखे पेट. लेकिन कोई बात नहीं करता, क्योंकि राष्ट्र गौरव आहत होता है.
मोदी सरकार को सिर्फ़ पैसा चाहिए. देश का विकास तो सिर्फ छलावा है. असल मकसद कुर्सी खरीदना है. सरकार के लिए एजेंट के तौर पर ये काम कॉर्पोरेट कर रहा है, लेकिन उन्हीं 11 करोड़ या सब मिलाकर 20 करोड़ मध्यवर्ग को.
आज से दिल्ली में कमर्शियल एलपीजी सिलेंडर 2000 रुपए का हो गया है. एक अराजक लोकतंत्र में लूटतंत्र की यह एक बानगी है. पेट्रोल-डीजल रोज़ विकास कर रहे हैं. पिछले दिनों एक वरिष्ठ पत्रकार मित्र से बात हो रही थी. बोले-लोगों की खुशियां छिन गई हैं.
तो लीजिए- पेडिग्री मीडिया और मैनेजमेंट गुरुओं के पास इसके हज़ारों मंत्र हैं. कल राष्ट्र गौरव की होली जलाने वाले भारतीय कप्तान के पास भी. अगले कुछ साल तक भारत ऐसे ही झूठे राष्ट्र गौरव में जीएगा, जब तक उसे बड़ा झटका न लगे. शायद, वे दिन नज़दीक ही हैं. लाज़िम है कि हम देखेंगे.
डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं.