Ranchi : रांची विश्वविद्यालय के जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग में ईस्ट एंड वेस्ट यूनिवर्सिटी नीदरलैंड के पूर्व चांसलर प्रोफेसर डॉ मोहन कांत गौतम ने कहा कि दूसरे देशों में आदिवासियों की भाषा कैसे बढ़ी, इस पर शोध करना चाहिए. शुक्रवार को भाषाओं की अतीत, वर्तमान एवं भविष्य विश्व परिदृश्य में विषय पर व्याख्यान में कहा कि जिस बोली का साहित्य नहीं है, तो वह भाषा नहीं हो सकती, ऐसी बात नहीं है. वह भी एक भाषा है. सबसे बड़ी बात यह है कि हम अपने परिवार को समझें और आपसी संप्रेषण को कायम रखें. हम अपनी भाषा को अंतरराष्ट्रीय स्तर तक कैसे पहुंचायें, इस दिशा में काम करना चाहिए. भाषा के प्रति जो भावनाएं आपके अंदर है, उसे प्रगाढ़ बनाने के लिए आदिवासियों के साथ सहयोगात्मक रवैया रखें.
भारत में पांच पारिवारिक भाषाएं बोली जाती हैं
उन्होंने कहा कि हमें दूसरी भाषाओं का भी ज्ञान रखना चाहिए. चूंकि संस्कृति की रिफ्लेक्सन ही सभ्यता है. इसलिए भाषा की दृष्टि से दूसरे देशों में आदिवासियों की भाषा कैसे बढ़ी, इस पर बात पर शोध होनी चाहिए. उन्होंने कहा कि संसार की लगभग 3000 भाषाएं समाप्त हो गयीं. ऐसी स्थिति में हम अपनी भाषा को कैसे बढ़ायें, कैसे समृद्ध करें, इस दिशा में पहल करनी चाहिए. अपनी भाषा को बोलना और लिखना सीखें. उन्होंने कहा कि भारत में पांच पारिवारिक भाषाएं बोली जाती हैं. आदिवासियों की भाषा में जो मिलता है, वह हिंदी संस्कृति में नहीं पाया जाता है. अंग्रेजी भाषा को जाने बगैर हम अपनी भाषा को अंतररा्ष्ट्रीय भाषा नहीं बना सकते. इस मौके पर मुंडारी विभाग के विभागाध्यक्ष नलय राय, मनय मुंडा, डॉ सविता केसरी, डॉ राम किशोर भगत, कुमारी शशि, डॉ गीता कुमारी सिंह, डॉ. बीरेन्द्र कुमार महतो और डॉ रीझू नायक उपस्थित रहे.
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