• टॉपर्स में सर्वाधिक छोटे शहरों से आते हैं
• अमेरिका उनका सबसे पसंदीदा गंतव्य है
• IIT टॉपर्स के बीच सबसे लोकप्रिय संस्थान
• टॉपरों में अल्पसंख्यक, SC / STs विद्यार्थी नगण्य,
Lagatar Desk : ये सभी 86 लोग 20 वर्षों के दौरान भारत के विभिन्न राष्ट्रीय स्कूल बोर्ड्स के टॉपर रहे हैं. इसलिए यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि इनमें से एक न्यूयॉर्क में कैंसर चिकित्सक है, एक MIT में पीएचडी शोधार्थी; एक हार्वर्ड में प्रोफेसर है, एक सिंगापुर में हेज फंड मैनेजर हैं और 11 से अधिक टॉपर्स Google के लिए काम कर रहे हैं. इनमें से हर टॉपर की कहानी उसकी व्यक्तिगत प्रतिभा और प्रयास, उत्कृष्टता और उपलब्धि की दास्तान है.
लेकिन द इंडियन एक्सप्रेस का यह अन्वेषण 1990 के बाद दुनिया के बाजार के लिए खुले भारत की पीढ़ी की जिंदगी के अलग-अलग पहलू और उनके करियर की सार्थक कहानियां बयां करता है कि कैसे कुछ की आकांक्षाएं पूरी हो गयीं और कुछ की नहीं. कैसे कुछ टूटकर बिखर गये और कुछ हमेशा की तरह अजेय बने रहे. आधे से अधिक टॉपर्स आज विदेशों में रहते हैं. यूएस उनका सबसे फेवरेट गंतव्य स्थान है. अधिकांश लोग आइआइटी से निकल कर विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में कार्यरत हैं. आधे से अधिक टॉपर्स महानगरों के बाहर टीयर 2 और टीयर 3 शहरों में बड़े हुए. इनमें केवल एक अल्पसंख्यक है और दलित या आदिवासी तो एक भी नहीं. और हां, अगर आप एक टॉपर छात्रा हैं, तो लड़का होने की तुलना में आपके विदेशों में स्थानांतरित होने की बहुत कम संभावना है.
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इंडियन एक्सप्रेस ने 4 महीने तक किया अनुसंधान
ऊपर बताये गये तथ्य “द इंडियन एक्सप्रेस” द्वारा चार महीने तक चले अनुसंधान के प्रमुख निष्कर्षों में से हैं, जिसमें उन 86 टॉपरों की खोज की गयी, जो 1996 से 2015 के बीच केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) और भारतीय विद्यालय प्रमाणपत्र परीक्षा परिषद (ICSC) द्वारा आयोजित 10वीं और 12वीं की परीक्षाओं में देशभर में प्रथम स्थान पर रहे. यह अनुसंधान ऐसे समय में किया गया है.
![1996-2015 के बीच 20 वर्ष के 86 CBSE, ICSE, ISC टॉपर्स बता रहे परिवर्तन की दास्तान, पढ़ें द इंडियन एक्सप्रेस की खबर का अनुवाद](https://lagatar.in/wp-content/uploads/2020/12/Arkya.jpg)
जब 12वीं के बाद एडमिशन के लिए बढ़ते कट-ऑफ मार्क्स का दबाव है और नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति के आलोक में सरकार ने उच्च शिक्षा संस्थानों में दाखिले के लिए एक राष्ट्रीय परीक्षा आयोजित करने की संभावनाएं तलाशने के लिए एक पैनल गठित किया है. अखबार द्वारा कराये गये इस शोध के निष्कर्ष भविष्य की कई चुनौतियों की ओर इशारा करते हैं.
आधे से अधिक टॉपर्स विदेशों में, सबसे ज्यादा गूगल में
इस शोध में पता चला कि 21 से 42 वर्ष की आयु के आधे से अधिक टॉपर्स दूसरे देशों में चले गये हैं. ज्यादातर वहां नौकरी कर रहे हैं. एक-चौथाई ऊंची डिग्रियां लेने में जुटे हैं. अमेरिका इन टॉपरों का पसंदीदा स्थान है और विदेश में रहने वाले हर चार में से तीन छात्र-छात्राएं अमेरिका में हैं. बाकी ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर, चीन, कनाडा, बांग्लादेश और यूएइ जैसे देशों में बसे हैं. विदेश में नौकरी करनेवालों में से अधिकांश टेक्नोलॉजी सेक्टर में कार्यरत हैं, इसके बाद मेडिसिन और फाइनांस का स्थान आता है.
बिश्वनाथ पांडा की तरह, जिन्होंने 1999 में जमशेदपुर के लिटिल फ्लावर स्कूल से 12वीं में टॉप किया और अब सैन फ्रांसिस्को में Google में इंजीनियरिंग के वरिष्ठ निदेशक हैं. अमेरिका में कार्यरत 10 में से चार टॉपर्स सिलिकॉन वैली में काम कर रहे हैं. दरअसल, गूगल 11 टॉपर्स का घर है, जो किसी एक कंपनी में सर्वाधिक है.
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37 साल की करुणा गणेश ने 1999 में अंतरराष्ट्रीय बोर्डिंग स्कूल यूनाइटेड वर्ल्ड कॉलेज (UWC) में दाखिले के लिए ICSE की परीक्षा 10वीं की परीक्षा में टॉप करने के बाद देश छोड़ दिया. UWC एक ऐसा संस्थान है, जहां दुनिया के 80 देशों के चुनिंदा 200 छात्रों को ही दाखिला मिल पाता है. करुणा अब न्यूयॉर्क में मेमोरियल स्लोन केटरिंग कैंसर सेंटर में एक चिकित्सक-वैज्ञानिक हैं. बायोकेमिस्ट्री में ग्रेजुएशन, मेडिसिन में एमए और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से मॉलिक्यूलर बायोलॉजी में पीएचडी करनेवाली करुणा कहती हैं- “मेरे माता-पिता मेरे विदेश जाने के पक्ष में थे, क्योंकि UWC के पास दुनिया के शीर्ष विश्वविद्यालयों में अपने छात्रों को भेजने का मजबूत ट्रैक रिकॉर्ड है. इसके अलावा यह वैश्विक और बहुसांस्कृतिक शिक्षा भी प्रदान करता है.
अधिकांश बेहतर माहौल और अध्ययन के लिए विदेश गये
टॉपर्स के देश छोड़ने का सबसे पहला कारण विदेशों में उच्च शिक्षा के लिए बेहतर माहौल का होना है. विदेश में रहने वालों में से 70 प्रतिशत से अधिक टॉपर्स ने अपने ग्रेजुएशन या पोस्ट ग्रेजुएशन की बेहतर शिक्षा के लिए भारत छोड़ा. 86 टॉपर्स में से मात्र एक दर्जन ही नौकरी के सिलसिले में देश से बाहर गये. जैसे 40 वर्षीय सोमनाथ बोस ने 2008 में कोलकाता मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस और एम्स से एमडी करने के बाद क्लीनिकल केयर की पढ़ाई करने के वास्ते देश छोड़ दिया.
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आज वह बोस्टन के हार्वर्ड मेडिकल स्कूल में असिस्टेंट प्रोफेसर और इससे जुड़े बेथ इजराइल डेकोनेस मेडिकल सेंटर में एनेस्थेसियोलॉजिस्ट हैं. बोस कहते हैं कि जब मैंने भारत छोड़ा, तो क्लीनिकल केयर संबंधी पाठ्यक्रम अभी शुरू ही हो रहे थे. जबकि अमेरिका में इसके प्रशिक्षण के सुव्यवस्थित सुविधा थी. साथ ही डॉक्टरी का काम करते हुए रिसर्च जारी रखने के अवसर भी वहां उपलब्ध थे.
अमेरिका में विज्ञान को नीतियों का भरपूर समर्थन
2008 में जानकी शेठ (28) ने ठाणे के एक स्कूल से 98.6 फीसदी अंकों के साथ आईसीएसई बोर्ड की 10वीं परीक्षा में देश में टॉप किया था. आईआईटी बॉम्बे से इंजीनियरिंग फिजिक्स में बीटेक करने के बाद वह 2014 में कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय से भौतिकी में पीएचडी के लिए अमेरिका चली गयीं. विदेश में अध्ययन करने का फैसला क्यों किया, इसपर पेंसिलवेनिया यूनिवर्सिटी की पोस्ट डॉक्टोरल स्कॉलर शेठ कहती हैं. छह-सात साल पहले भारत में वैज्ञानिक अनुसंधान से लिए फंडिंग की पर्याप्त व्यवस्था नहीं थी. इसलिए जब मैंने आईआईटी में कुछ अमूल्य अनुभव हासिल किया, तो वहां पीएचडी के लिए पर्याप्त वित्तीय इंतजाम नहीं थे. अमेरिका में विज्ञान को नीतियों का भरपूर समर्थन मिलता है. यानी वहां अच्छा काम करने के लिए ज्यादा स्थान और अवसर हैं और टेक्नोलॉजी में लगातार प्रगति होती रहती है.
शिक्षक-छात्र के बीच समीकरण बेहतर
इंजीनियरिंग फिजिक्स में IIT- बॉम्बे से बीटेक करने से पहले 2015 में कोलकाता के एक स्कूल से कक्षा 12वीं की ISC परीक्षा में टॉप करनेवाले 24 साल के आरक्य चटर्जी ने अमेरिका जाने के एक दूसरे ही पहलू का खुलासा किया. यह था शिक्षक-छात्र समीकरण. चटर्जी ने बताया -“वहां आपसी सहयोग को लेकर ईमानदारी अधिक है. प्रोफेसर छात्रों को एक-दूसरे से बात करने और एक साथ होमवर्क करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं. इससे अकादमिक बेईमानी की शंकाएं कम हो जाती हैं. चटर्जी ने कहा कि इस तरह का भरोसा भारत में जहां से मैंने स्नातक किया, अधिकांश समय नदारद था. “चटर्जी, अब एमआईटी में पीएचडी शोधार्थी हैं.
आधे से अधिक टॉपर्स इंजीनियरिंग में गये
आधे से अधिक टॉपर्स (86 में से 48) ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई को अपनी स्नातक की डिग्री लेने के लिए चुना. केवल 12 ने डॉक्टरी को चुना. इंजीनियरिंग की पढ़ाई करनेवालों में 10 में से छह लोगों ने किसी न किसी IIT से यह डिग्री ली. हालांकि इनमें कई ने माना कि उनके इस निर्णय के पीछे इंजीनियरिंग में रुचि ही एकमात्र प्रेरणा नहीं थी, बल्कि इसके और भी कारण थे. आईआईटी-रुड़की में मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने से पहले 2004 में सीबीएसई की 10वीं परीक्षा में टॉप करनेवाले 32 वर्षीय सुंदरेश नागेश्वरन ने कहा कि उस समय समाज में यह नियम जैसा था कि स्कूली शिक्षा में बेहतर प्रदर्शन करनेवाले बच्चे आगे चलकर इंजीनियर बनें और वह भी खासतौर पर IIT से.
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मुझे बाद में एहसास हुआ कि मुझे इंजीनियरिंग में दिलचस्पी नहीं है और मैं अन्य क्षेत्रों में चला गया. सुंदरेश ने बाद में इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस, हैदराबाद से एमबीए किया और सितंबर 2020 तक वह सी6 एनर्जी में महाप्रबंधक (बिजनेस डेवलपमेंट) थे. सी6 एनर्जी एक ऐसा मंच है, जो महासागरों की क्षमता का दोहन करता है. वह मानते हैं कि उनकी पिछली कंपनी में उनकी जो भूमिका थी, उसमें उनकी मैकेनिकल इंजीनियरिंग की डिग्री का कोई उपयोग नहीं था. सुंदरेश अब अपने उद्यम पर काम कर रहे हैं.
कुछ टॉपरों को इंजीनियरिंग डिग्री पर पछतावा
आप यकीन नहीं करेंगे, लेकिन कुछ टॉपरों को इंजीनियरिंग की अपनी डिग्री पर पछतावा भी है. हालांकि, कई लोगों की तमन्ना है कि उस वक्त उन्हें करियर काउंसलिंग या दूसरे व्यवसायों में जाने का भी विकल्प मिलता, तो ज्यादा बेहतर होता. 29 साल की लक्ष्मी वैद्येश्वरन, जिन्होंने 2007 में 99% के साथ CBSE की कक्षा 10 की परीक्षा में टॉप किया था और फिलहाल मुंबई में ICICI प्रूडेंशियल लाइफ इंश्योरेंस में एक वरिष्ठ उत्पाद प्रबंधक हैं.
उन्होंने कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग त्रिवेंद्रम से एप्लायड इलेक्ट्रॉनिक्स और इंस्ट्रूमेंटेशन में बीटेक की डिग्री हासिल की है. लक्ष्मी कहती हैं कि मेरा परिवार चाहता था कि मैं कॉमर्स लूं, लेकिन मैंने इंजीनियरिंग पर जोर दिया, क्योंकि उस समय यही धारणा थी कि दूसरे विषयों में वही लोग जाते हैं, जो इंजीनियरिंग के लिए नहीं चुने जाते. लक्ष्मी आज मानती हैं कि उन्हें कॉमर्स चुनना चाहिए था और आगे चार्टर्ड एकाउंटेंसी के लिए जाना चाहिए था.
स्कूल में कैरियर सलाह की कमी खलती है टॉपर्स को
2009 में कोलकाता के एक स्कूल से 99.25 प्रतिशत अंकों के साथ ISC की 12वीं परीक्षा में टॉप करने वाले 29 वर्षीय सुभोजीत घोष ने IIT कानपुर से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में बीटेक किया है. बाद में उन्होंने हार्वर्ड बिजनेस स्कूल से एमबीए किया और सिएटल में अमेजॉन में वरिष्ठ उत्पाद प्रबंधक के रूप में काम कर रहे हैं. कहते हैं- “आईआईटी ब्रांड निश्चित रूप से एक कारक था. मुझपर कोई पारिवारिक दबाव नहीं था.
मुझे गणित और विज्ञान पसंद था और मैं सहमत हूं कि मुझे उस समय अन्य गैर-आईआईटी विकल्पों के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी. शायद इसका कारण स्कूल में कैरियर सलाह की कमी भी थी. लेकिन इस बात के प्रति जागरूकता कि कैसे आपकी स्नातक डिग्री भविष्य की करियर संबंधी भूमिकाओं से जुड़ती है. उन्होंने मैकेनिकल इंजीनियरिंग को चुनने के मेरे निर्णय को बदल दिया.
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उनका क्या, जो भारत में रहे या लौट आये
भारत में ही उच्च अध्ययन करने वाले अथवा अध्ययन के बाद भारत लौटने वाले टॉपर्स में से अधिकांश ने वित्तीय क्षेत्र को अपना करियर चुना. इसके बाद के क्षेत्रों में टेक्नोलॉजी सेक्टर,परामर्श और अपना उद्यम शामिल हैं. जबकि विदेशों में बसे लोगों ने ज्यादातर तकनीकी क्षेत्र को काम करने के लिए चुना. 27 वर्षीय परनील सिंह विशाखापत्तनम के एक स्कूल से 2009 के सीबीएसई कक्षा 10 की टॉपर थीं.
वह कहती हैं, उस वक्त मैनेजमेंट में स्नातकोत्तर की पढ़ाई के लिए विदेश जाने को लेकर ज्यादा उत्साह नहीं था. भारत के प्रमुख बिजनेस स्कूल उस समय कम पैसे में अधिक गुणवत्तायुक्त शिक्षा दे रहे थे. आईआईएम-कलकत्ता से एमबीए करने के बाद वैश्विक प्रबंधन परामर्शदाता किर्नी ने सिंह को नौकरी की पेशकश की और इसी महीने उन्होंने दिल्ली में सलाहकार के रूप में योगदान दिया. वह कहती हैं- विदेशों में एमबीए के अपने फायदे हैं, लेकिन यह बहुत महंगा है. आज भारत में निजी क्षेत्र में बहुत सारी शानदार नौकरियां और अवसर हैं.
टॉपर्स में एक भी दलित या आदिवासी नहीं
इन 86 टॉपर्स में से केवल एक ही अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) श्रेणी का था. इस सूची में कोई भी दलित या आदिवासी नहीं था. इस अखबार की प्रश्नावली का जवाब देने वाले 76 टॉपर्स में से सिर्फ पांच ऐसे थे, जिन्होंने अपने परिवार में पहली बार कॉलेज की सीढ़ियां चढ़ी थीं.
इम्फाल,मणिपुर के 29 वर्षीय मोहम्मद इस्मत ने 2012 में कक्षा 12 सीबीएसई परीक्षा में टॉप किया था. इस्मत कहते हैं कि उनके शिक्षक एसएम सिंह ने उनके बोर्ड परीक्षा शुल्क का भुगतान किया, क्योंकि उनका परिवार इसे बर्दाश्त नहीं कर सकता था. इस्मत ने एक कॉर्पोरेट घराने की मदद से दिल्ली के सेंट स्टीफन कॉलेज से बीएससी (ऑनर्स) भौतिकी का अध्ययन किया. घर पर एक व्यक्तिगत संकट के कारण इस्मत को दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक डिग्री लेने के बाद अगले लगभग चार साल तक अपने करियर की आकांक्षाओं को रोकना पड़ा. इसी साल उन्होंने यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी शुरू की है.
74 ने पारिवारिक आय बतायी, BPL से मात्र 1
द इंडियन एक्सप्रेस के साथ अपनी पारिवारिक आय को साझा करने वाले 74 टॉपर्स में से केवल एक ऐसा था, जो अत्यंत निर्धन वर्ग से आता है. अपनी पहचान सार्वजनिक नहीं करने की शर्त पर उसने कहा कि जब उसने बोर्ड की परीक्षा टॉप की, उस वक्त उसके माता-पिता की सालाना आय 1 लाख रुपये से भी कम थी. लगभग तीन-चौथाई टॉपर्स ने कहा कि उनकी बोर्ड परीक्षा के समय उनके अभिभावकों की सालाना 5 लाख रुपये से अधिक थी. शेष की वार्षिक पारिवारिक आय एक लाख रुपये से 5 लाख रुपये के बीच थी.
आधे से अधिक टॉपर्स धनबाद, जमशेदपुर, आसनसोल जैसे शहरों के
आधे से अधिक टॉपर्स देहरादून, धनबाद, आसनसोल,जमशेदपुर,त्रिवेंद्रम,लखनऊ और मेरठ जैसे टीयर-2 और टीयर-3 के शहरों से हैं. जहां अंग्रेजी-माध्यम के आईसीएसई और सीबीएसई स्कूल बच्चों के बेहतर भविष्य की महत्वाकांक्षा और आकांक्षा का भारी बोझ ढो रहे हैं. ये ही वो शहर हैं, जो महामारी के कारण नौकरियों के छूटने और ड्रापआउट की आशंका से सर्वाधिक प्रभावित भी रहे.
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ऐसे तलाश हुई टॉपर्स की
इंडियन एक्सप्रेस ने काउंसिल ऑफ इंडियन स्कूल सर्टिफिकेट एग्जामिनेशन (CISCE) और सेंट्रल बोर्ड ऑफ सेकेंडरी एजुकेशन (CBSE) द्वारा आयोजित कक्षा 10 और 12 वीं की परीक्षा के 86 टॉपर्स के नाम हासिल किये. 86 में से 62 ने 1996 से 2015 के बीच CISCE बोर्ड से संबद्ध स्कूलों से पढ़ाई की थी और 24 विद्यार्थी 2004 से 2015 तक राष्ट्रीय सीबीएसई टॉपर थे. कुछ वर्षों में, बोर्ड में तीन या चार बच्चे संयुक्त रूप से राष्ट्रीय टॉपर रहे थे.
सीबीएसई कक्षा 10 में 2010 से 2015 तक कोई टॉपर नहीं था,क्योंकि बोर्ड ने अंकों की बजाय ग्रेड प्रणाली अपनायी थी. टॉपर्स को ट्रैक करने के लिए इंडियन एक्सप्रेस ने समाचार पत्र अभिलेखागार, सोशल मीडिया साइटों, स्कूल प्रिंसिपलों, शिक्षकों और पूर्व छात्रों के संगठनों से संपर्क किया. एक मामले में यूपी में एक बैंक यूनियन से मदद मिली, जिसने अपने नेटवर्क को एक सेवानिवृत्त कर्मचारी का पता लगाने के लिए इस्तेमाल किया, जो एक आईसीएसई नेशनल टॉपर का पिता है. 86 टॉपर्स में से प्रत्येक को एक विस्तृत गुणात्मक प्रश्नावली भेजी गयी थी.
दस ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, लेकिन उनकी कहानियां इस श्रृंखला का हिस्सा हैं. 86 में से 74 कक्षा 12 में विज्ञान के छात्र थे, 12 ने वाणिज्य किया. कोई भी टॉपर आर्ट्स/ह्यूमैनिटीज स्ट्रीम से नहीं था. वर्ष 2015 को कट-ऑफ ईयर के रूप में चुना गया था ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सभी छात्र 2020 तक अपनी पहली स्नातक की डिग्री पूरी करने के करीब थे.
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