- मुस्लिम समुदाय के सैंकड़ों लोग बनाते हैं रामनवमी के पताके, सिर्फ हीरापुर में 70 कारोबारी
- दशकों से पताकाओं की सिलाई से लेकर आकर्षक सजावट तक का करते हैं काम
- 35 सालों से पताका के कारोबार से जुड़ा है मोहम्मद असगर
- पताकाओं में पहले श्रीराम और हनुमान जी को विराजमान कराते हैं, फिर करते हैं पताकाओं की आकर्षक सजावट
Ranjit Kumar Singh
Dhanbad : रामनवमी 17 को है, प्रभु श्रीराम के पताके हर घर पर लहराएंगे, अखाड़ों की शोभा बढ़ाएंगे और हाथों में लेकर श्रीराम के भक्त उनका जयकारा भी लगाएंगे. कोयलांचल में इन पताकों को बनाने का काम कई दशकों से मुस्लिम समुदाय करता आ रहा है. पताकाओं पर विराजमान प्रभु श्री राम हों, हनुमान जी हों, या फिर दूसरी अन्य सजावट बखूबी करते हैं. कारोबारी होली के बाद से ही पताकाओं को बनाने में जुट जाते हैं. इन पताकाओं की सिलाई करने वाला मोहम्मद असगर हो या मोहम्मद अशरफ… पताकाओं से ही इनकी रोजी-रोटी जुड़ी है, इसलिए पताकाओं को भव्य और आकर्षक बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ते. अब मोहम्मद असगर जैसे सैंकड़ों मुस्लिमों द्वारा सिलाई किए गए प्रभु श्रीराम के पताके पूरी शान से हर घर लहराने को तैयार हैं.
पेट के आगे कोई मजहब नहीं : असगर
पिछले 30 वर्षों से श्रीराम ध्वज बना कर बिक्री कर रहे रांगाटांड़ के रहने वाले मोहम्मद असगर बताते हैं कि पेट के आगे कोई मजहब या धर्म नहीं होता है. यह हमारा रोजगार है. हम पताके को इतना आकर्षक साज- सज्जा करते हैं कि श्रीराम के भक्तों को काफी पसंद पलभर में आ जाए. खरीदार भी भेदभाव नहीं करते हैं. यह रोजगार हमारे पूर्वजों से ही चलता आ रहा है. यूं तो ध्वजों की बिक्री सालों भर होती है, लेकिन रामनवमी में इसकी बिक्री कई गुणा बढ़ जाती है. इस वजह से ध्वज बनाने वाले कारीगर होली के बाद से इस कार्य में जुट जाते हैं.
राजस्थान व गुजरात से आता है कपड़ा
कारीगरों ने बताया कि ध्वज बनाने में इस्तेमाल होने वाले कपड़ों की आवक राजस्थान व गुजरात से होती है. कारीगरों को प्रति थान कपड़ा उपलब्ध कराया जाता है. जिसे कारीगर ध्वज के आकार में काट कर उस पर गोटा व सितारा लगा इसका निर्माण करते हैं. इसके बाद राम जी और हनुमान जी की छपी आकृति को ध्वज में लगाकर सुंदर और आकर्षक रूप देते हैं. बाजार में ध्वज की कीमत 30 रुपये से 2000 तक है और धनबाद, झरिया, फुसबंगला, डिगवाडीह, पाथरडीह, सुदामडीह, जामाडोबा, सिंदरी, कतरास, गोविंदपुर, निरसा आदि क्षेत्रों में इसकी बिक्री होती है.
पताके का बांस भी मुस्लिमों के आंगन का
श्रीराम के पताके तो मुस्लिम बनाते ही हैं, पताकाओं में लगने वाले अधिकांश बांस भी मुस्लिमों के आंगन में उगाये जाते हैं. गोविंदपुर, बलियापुर आदि इलाकों में इन बांसों की खेती होती है और इन्हें रामनवमी के मौके पर बेचने के लिए सहेज कर रखा जाता है. गोविंदपुर के रहने वाले बशीरूद्दीन अंसारी और एजाज अंसारी बताते हैं कि रोजी रोजगार में अगर मजहब देखा जाएगा तो खुद का और परिवार का भरण पोषण करना काफी मुश्किल हो जाएगा. उन्होंने कहा कि वह रामनवमी के अवसर पर जिले के विभिन्न क्षेत्रों के साथ-साथ धनबाद के हीरापुर से बांस लाकर बिक्री करते हैं. 100 रुपये से 500 रुपये तक के बांस है. रामनवमी में बांस की अच्छी बिक्री होती है. साल भर बांस की खेती करते हैं.
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