Mukti Shahdev
डॉ सिद्धनाथ कुमार अपने बहुमुखी लेखन के साथ-साथ अपनी शालीन, शांत व प्रखर छवि के लिए जाने जाते हैं. रांची विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग से प्रोफेसर पद से सेवानिवृत्त डॉ सिद्धनाथ कुमार ने आकाशवाणी, पटना में पांच वर्षों तक नाटक लेखक व कार्यक्रम अधिशासी के रूप में कार्य किया और फिर अध्यापन के क्षेत्र में सक्रिय रहे.
जब वे रांची विश्वविद्यालय में प्रोफेसर थे, अपने छात्र-छात्राओं के बीच बेहद लोकप्रिय थे. उनके विश्वविद्यालय के लेक्चर सुनने का सौभाग्य तो नहीं मिला पर संभवतः 1998-99 में रांची कादम्बिनी क्लब के वार्षिक समारोह में जब वे बतौर मुख्य अतिथि उपस्थित हुए थे, उन्हें सुनने का सौभाग्य मिला. सफेद बाल, सफेद सफारी सूट और अत्यंत शालीनता से मुस्कुराते हुए उन्होंने कादम्बिनी क्लब के युवा, सक्रिय, साहित्य प्रेमियों का उत्साह वर्धन किया था.
डॉ सिद्धनाथ कुमार लगातार लेखन में सक्रिय रहे इसका प्रमाण है, उनका बहुमुखी लेखन. साहित्य की विविध विधाओं में समान अधिकार रखने वाले डॉ सिद्धनाथ का नाटक लेखन के क्षेत्र में विशेष योगदान रहा. साथ ही समालोचना लेखन उनके लेखन का प्रिय क्षेत्र रहा, जो हिंदी साहित्य के लिए अनमोल देन है.
उनके प्रकाशित आलोचना पुस्तकों में प्रसाद के नाटकों का पुनर्मूल्यांकन (प्रसाद के नाटक), हिंदी एकांकी की शिल्प विधि का विकास ,हिंदी एकांकी ,रेडियो नाट्य शिल्प, रेडियो वार्ता शिल्प , रेडियो नाटक की कला , हिंदी पद्यनाटक : सिद्धांत और इतिहास ,संवेदना और शिल्प सीरीज में अंधेर नगरी ,भारत दुर्दशा , स्कंद गुप्त, चंद्रगुप्त ,आधे अधूरे ,आषाढ़ का एक दिन की समीक्षा प्रमुख हैं.
उन्होंने अपनी कलम काव्य लेखन में भी आजमाया. उनके दो काव्य संग्रह प्रकाशित हैं ,टूटा हुआ आदमी और
जिंदगी तुम कहां हो . उनके द्वारा लिखे नााटक विशेष रूप से सराहे गए. प्रमुख प्रकाशित नाटक हैं. सृष्टि की सांझ और अन्य काव्य नाटक ,रंग और रूप, वे अभी कुंवारी हैं, आदमी है नहीं है ,मुर्दे जिएंगे ,रास्ता बंद है और आतंक . व्यंग्य लिखते हुए उनकी कलम की धार देखते ही बनती है. उनके चर्चित व्यंग्य हैं-कमाल कुर्सी का ,चमचे वही रहे ,मिले सुर मेरा तुम्हारा ,देश भक्ति की जय और मियां बीवी राजी . उनका साहित्य सृजन समय- समय पर सम्मानित भी होता रहा.
उन्हें कई प्रतिष्ठित सम्मान प्राप्त हुए
बिहार राष्ट्रभाषा परिषद पुरस्कार ,
राधाकृष्ण पुरस्कार
बेनीपुरी पुरस्कार
भारतेंदु हरिश्चंद्र पुरस्कार ,
2007 में व्यंग्य लेखन के लिए नई धारा रचना पुरस्कार.
डॉ सिद्धनाथ कुमार के सुपुत्र डॉ कुमार संजय एक प्रसिद्ध शिक्षा विद व संवेदनशील नाटककार हैं. साथ ही पिता के लेखन विरासत को संभालने, संवर्धित करने वाले योग्य वारिस. उनके द्वारा प्रतिवर्ष शहर में दिया जाने वाला “डॉ सिद्धनाथ कुमार स्मृति सम्मान” एक प्रतिष्ठित साहित्यिक सम्मान है, जो सभी साहित्यानुरागियों को डॉ सिद्धनाथ कुमार की बरबस याद दिला देता है.
डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं.