LagatarDesk : कोरोना के खिलाफ लड़ाई में वैज्ञानिकों को बड़ी सफलता मिली है. वैज्ञानिकों ने कोरोना की इलाज का दवा बनाने में सफलता हासिल किया है. महाराष्ट्र के कोल्हापुर की एक बायोसाइंस कंपनी एक नयी दवा की टेस्टिंग कर रही है. यह दवा कोरोना मरीजों के लिए भारत की पहली स्वदेशी दवा के रूप से विकसित इलाज बन सकती है. यह दवा हल्के और मध्यम कोरोना संक्रमित मरीजों पर कारगर होगा. पहले टेस्ट में ही यह दावा किया गया है कि कोरोना संक्रमित मरीजों की आरटी-पीसीआर 72 से 90 घंटों में नेगेटिव हो जायेगी. फिलहाल इस दवा को इंसानों में परीक्षण किया जा रहा है. अभी फेज वन की टेस्टिंग चल रही है. कंपनी ने अनुमान लगाया है कि यह दवा अगस्त के अंत तक कोरोना को मात देने में कारगर साबित होगी.
इसे भी पढ़े : CM ने सलीमा टेटे-निक्की प्रधान को किया सम्मानित, 50-50 लाख का चेक, स्कूटी, स्मार्टफोन और लैपटॉप दिया
सीरम इंस्टीट्यूट की मदद से कंपनी ने बनाया कॉकटेल
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक आईसेरा बायोलॉजिकल ने वैक्सीन निर्माता सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की मदद से एक शक्तिशाली कॉकटेल बनाया है. यह एंटीबॉडी हल्के या मध्यम कोरोना संक्रमितों को दिये जाने पर यह इसे फैलने से रोकता है और वायरस को बेअसर करता है. आईसेरा बायोलॉजिकल कंपनी चार साल पुरानी है. यह एंटीसेरम प्रोडक्ट्स बनाती है जो मुख्य रूप से सांप के काटने, रेबीज और डिप्थीरिया में इस्तेमाल किया जाता है.
ट्रायल हुआ सफल तो दवा होगी भारत के लिए कारगर साबित
भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के पूर्व महानिदेशक प्रो एन के गांगुली ने कहा कि अभी तक यह एक आशाजनक दवा लग रहा है. फिलहाल हमें इंसानों पर ट्रायल की गयी रिजल्ट का इंतजार करना होगा. यदि प्रभावी पाया गया तो यह दवा भारत के लिए बहुत कारगर साबित होगी. गांगुली ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय दवाओं की तुलना में यह बहुत सस्ती दवा होगी.
इसे भी पढ़े : लाठीचार्ज का विरोध और रोजगार की मांग को लेकर भाकपा माले और मासस का महाधरना
कॉकटेल में शामिल है कोविड-19 न्यूट्रलाइजिंग एंटीबॉडी
आईसेरा बायोलॉजिकल के निदेशक नंदकुमार कदम ने कहा कि कॉकटेल में कोविड-19 न्यूट्रलाइजिंग एंटीबॉडी शामिल हैं. जो बाहर की सारी कैमिकल को हटाती है. घोड़ों को इंजेक्शन लगाकर इस एंटीबॉडी को बनाया गया है. सीरम इंस्टीट्यूट ने सही एंटीजन को चुनने में कंपनी की मदद की है. नंदकुमार कदम ने बताया कि एंटीबॉडी को बनाने के लिए घोड़े को चुना गया क्योंकि बड़े जानवर बड़ी मात्रा में एंटीबॉडी का उत्पादन करते हैं.
एंटीजन के साथ इंजेक्शन लगाकर बनाया गया एंटीबॉडी
घोड़ों को एंटीजन के साथ इंजेक्शन लगाया जाता है ताकि वे एंटीबॉडी विकसित कर सकें. एंटीबॉडी वही हैं जो मानव शरीर को कोविड-19 वायरस से लड़ने के लिए बनता है. कदम ने बताया कि एंटीबॉडी को घोड़ों से निकाला जाता है और फिर इसे शुद्ध प्रक्रिया के माध्यम से रखा जाता है. ताकि अंत में जो एंटीबॉडी विकसित हो वो कम से कम 95 फीसदी शुद्ध हो.
इसे भी पढ़े : 6 से 11 अक्टूबर तक होगी UGC-NET परीक्षा, जान लें जरूरी बातें
बीमारी से लड़ने के लिए अलग-अलग प्रक्रिया को आजमाया गया
कोरोना संक्रमितों को इस बीमारी से लड़ने में मदद करने के लिए एंटीबॉडी को शरीर में इंजेक्ट किया जाता है. इस प्रक्रिया को अलग-अलग तरीके से आजमाया जा चुका है. प्लाज्मा थेरेपी में मिश्रित परिणाम आये थे. प्लाज्मा थैरेपी में ठीक हुए मरीज से निकाले गये रक्त प्लाज्मा की गुणवत्ता हर व्यक्ति में अलग-अलग होती है. इसके अलावा प्लाज्मा में एंटीबॉडी के अलावा कई अन्य रसायन होते हैं. इनमें से कुछ संभावित रूप से संक्रमित व्यक्ति में प्रतिकूल प्रतिक्रिया कर सकते हैं.
साल के अंत तक आ सकती है दवा
कंपनी योजना बना रही है कि सितंबर और अक्टूबर में कमबाइंड स्टे 2 और स्टेज 3 ट्रायल करेगी. यदि अगर सब कुछ ठीक रहा, तो इस साल के अंत तक दवा उपलब्ध होने की उम्मीद है.
इसे भी पढ़े : खरसावां : 47 लाख के भुगतान के बाद भी दितसाही पीएचसी का निर्माण ढाई साल से ठप