Amarnath Pathak
Hazaribagh: गिने-चुने ही सही, लेकिन अब देश में आनुवंशिक बीमारियों से बचाव के लिए काउंसलर तैयार हैं. लेकिन उनकी राह में आड़े आ रहे हैं संसाधन और असहयोग की भावना. इन चुनौतियों को पार कर ही काउंसलर अपने मकसद में कामयाब हो सकते हैं. इस बीच एक खुशखबरी यह भी है कि झारखंड में एक स्वयंसेवी संस्था ‘अनुवंश फाउंडेशन’ ने जरूरतमंदों के लिए मुफ्त सेवा का बीड़ा उठाया है. आनुवंशिक पीड़ितों के इलाज में काफी खर्च आते हैं, जिसका वहन करना गरीब और मध्यमवर्गीय परिवार के लिए काफी कठिन है. यह जानकारी ‘शुभम संदेश’ से बातचीत करते हुए देते हुए देश की चुनिंदा और झारखंड की एकमात्र जेनेटिक काउंसलर याचना च्रक्रवर्ती ने दी.
उन्होंने कहा कि झारखंड से लेकर देश के विभिन्न राज्यों और पूरे विश्व में जेनेटिक डिजीज से लाखों लोग पीड़ित हैं. लेकिन इन बीमारियों की रोकथाम के लिए खासकर भारत में अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाए जा सके हैं. न तो इस बीमारी के प्रति लोग सचेत हैं और न सरकार या डॉक्टर गंभीर हैं. सीएमसी वेल्लोर में ट्रेनिंग के दौरान जब उन्होंने ऐसे मरीजों को देखा, तो उनके मन में इस बीमारी से लोगों को बचाने की इच्छा जागृत हुई. उन्होंने इस बीमारी और उसके बचाव पर रिसर्च के लिए स्विटजरलैंड की राह पकड़ी. रिसर्च के बाद सेवा करने अपने वतन लौट गईं.
वह कहती हैं कि उचित मार्गदर्शन के अभाव में अजीबोगरीब और लाइलाज आनुवंशिक बीमारियों के प्रति लोग सचेत नहीं हैं. उनमें इस बीमारी के प्रति तनिक भी जागरुकता नहीं है. ऐसे में लोग इन बीमारियों से परेशान होकर इधर-उधर भटकते रहते हैं. पहले लोगों को जेनेटिक बीमारियों के बारे में जानना होगा कि वह कितना घातक हो सकता है. आगे की पीढ़ियों पर इसका क्या फर्क पड़ेगा. इस बीमारी के होने के क्या कारण हैं और इसकी रोकथाम के क्या उपाय हैं.
दुखद पहलू यह है कि खुद डॉक्टर जेनेटिक काउंसलर के समर्थन को तैयार नहीं हैं. डॉक्टरों का कहना है कि जेनेटिक बीमारी के इलाज के लिए काउंसलर की कोई जगह नहीं होनी चाहिए, यह तो चिकित्सकों से जुड़ा मामला है. लेकिन हकीकत इससे कोसों परे है. सच्चाई यह है कि डॉक्टरों के पास न तो जेनेटिक पीड़ितों के इलाज का वक्त है और न इसमें बेहतर भूमिका निभा सकते हैं. चूंकि इस बीमारी के बारे में उनकी जानकारी भी नगण्य है और न ही इसका उन्हें प्रशिक्षण मिला है.
याचना चक्रवर्ती कहती हैं कि थैलीसीमिया, हीमोफीलिया, सिकलसेल एनीमिया, अल्जाइमर, पार्किंसन, कुछ प्रकार के कैंसर (साधारण कैंसर से ज्यादा) और गर्भपात जैसी जेनेटिक बीमारियां लाइलाज हैं. कई बार परिवार के अन्य सदस्यों या फिर पीढ़ी-दर-पीढ़ी लोग इन बीमारियों की चपेट में आ जाते हैं. इन बीमारियों की वजह से न सिर्फ पारिवारिक, बल्कि कई बार सामाजिक परेशानियां भी आती हैं. घर-परिवार टूटने के कगार पर पहुंच जाता है.
सामाजिक बहिष्कार की नौबत तक आ जाती है. ऐसे में काउंसलर इन जेनेटिक बीमारियों से पीड़ित मरीजों की न सिर्फ सेहत के बारे में जानकारी लेते हैं, बल्कि उनके स्वभाव और सोशल स्टेट्स पर भी बात करते हैं. इस तरह उन मरीजों के इलाज में साइको सोशल काउंसिलिंग की भी जरूरत पड़ती है. यहीं जेनेटिक काउंसलर की भूमिका बढ़ जाती है, जो डॉक्टर नहीं कर पाते हैं.
हर साल के बर्थ में चार से पांच लाख जेनेटिक डिजीज के मामले
झारखंड की इकलौती जेनेटिक काउंसलर हजारीबाग की याचना चक्रवर्ती कहती हैं कि देशभर में हर साल के बर्थ में चार से पांच लाख जेनेटिक डिजीज के मामले रहते हैं. इनमें कुछ ही बच्चे अस्पताल तक पहुंच पाते हैं. कितनों की तो बीमारियां तक पता नहीं चल पाती हैं कि उन्हें हुआ क्या है. जेनेटिक बीमारियों के टेस्ट में 20,000 से लेकर 80,000 रुपए तक के खर्च आते हैं. सिर्फ काउंसिलिंग का चार्ज 2000 से लेकर 3000 रुपए तक है. ऐसे में उनका प्रयास है कि ‘अनुवंश फाउंडेशन’ कुछ बाहर के एनजीओ के सहयोग से पीड़ितों का जांच कर पाए.
झारखंड के मॉडल सेंटर में विशेषज्ञ ही नहीं
केंद्र सरकार ने जेनेटिक बीमारियों के इलाज और काउंसलर की ट्रेनिंग के लिए डिपार्टमेंट ऑफ बायोटेक्नोलॉजी (डीबीटी) के माध्यम से पांच मॉडल सेंटर बनाए. इनमें झारखंड में एक मॉडल सेंटर खुले. उसमें विशेषज्ञ ही नहीं हैं. इस वजह से सेंटर बंद पड़ा है. वहीं रिम्स में क्लिनिकल जेनेटिक्स प्रोग्राम के लिए अपना विभाग भी है. लेकिन इसमें काउंसलर के लिए कभी वैकेंसी ही नहीं निकाली गई. ऐसे में सेंटर का लाभ मरीजों को नहीं मिल पा रहा है. याचना चक्रवर्ती कहती हैं कि रिम्स में काउंसलर की बहाली होती, तो उसका लाभ यहां के जेनेटिक मरीजों को मिल पाता.
वर्ष 2014 से हैदराबाद की एनी हसन कर रहीं संघर्ष
हैदराबाद के एक अस्पताल से जुड़ी जेनेटिक काउंसलर एनी हसन आनुवंशिक पीड़ितों को सही चिकित्सकीय परामर्श दिलाने के लिए संघर्ष कर रही हैं. वह जेनेटिक काउंसलर को स्थापित कराने के लिए लीड कर रही हैं. देश के गिने-चुने अस्पतालों में ही क्लिनिकल जेनेटिसिस्ट की सुविधाएं मौजूद हैं. दिल्ली के एम्स में ऐसी सुविधा है. यहां एक से दो सीट मौजूद हैं. झारखंड समेत अधिकांश राज्यों में एक भी नहीं है. देशभर में जेनेटिक काउंसलर की पढ़ाई के लिए 25 से 30 ही क्लिनिकल जेनेटिसिस्ट मौजूद हैं और 50 के आसपास एक्सपर्ट जेनेटिक काउंसलर हैं.
कौन हैं जेनेटिक काउंसलर याचना चक्रवर्ती
याचना चक्रवर्ती हजारीबाग के फेमस एथलीट कोच तापस चक्रवर्ती और कटकमसांडी हाईस्कूल की प्रधानाध्यापिका डॉ शिखा खाखा की बेटी हैं. उन्होंने वर्ष 2020-21 में जवाहरलाल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च पांडिचेरी से जेनेटिक कांउसलर की ट्रेनिंग लीं. जेनेटिक इंजीनियरिंग में बीटेक एसआरएम यूनिवर्सिटी चेन्नई से किया. वह नुपूर मेहरोत्रा और रोहित राय के साथ रांची स्थित बरियातू हाउसिंग कॉलोनी में अनुवंश फाउंडेशन से जुड़कर जेनेटिक मरीजों की काउंसिलिंग करती हैं. उनकी 12वीं तक की पढ़ाई हजारीबाग विवेकानंद सेंट्रल स्कूल से हुई है.
इसे भी पढ़ें– मोकामा के पूर्व विधायक अनंत सिंह की बिगड़ी तबीयत, पटना के PMCH के ICU में कराया गया भर्ती