New Delhi : भारत सरकार द्वारा गेहूं के निर्यात पर लगाई रोक का असर अब विश्व के बाजारो में दिखने लगा है. सोमवार को यूरोपीय बाजार में गेहूं की कीमतें रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गई. प्रमुख गेहूं निर्यातक यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के मद्देनजर कीमत (जो पहले से ही अधिक थी) यूरोपीय बाजार के खुलने के साथ ही 435 यूरो ($ 453) (35,282.73 भारतीय रुपये) प्रति टन हो गई. इधर, जी-7 देश भारत सरकार द्वारा गेहूं के निर्यात पर लगाई रोक की आलोचना कर चुके हैं. सात औद्योगीकृत देशों के समूह के कृषि मंत्रियों ने भारत के इस फैसले की निंदा की. जर्मन कृषि मंत्री केम ओजडेमिर ने स्टटगार्ट में कहा, “अगर हर कोई निर्यात प्रतिबंध या बाजार बंद करना शुरू कर देगा, तो इससे संकट और खराब हो जाएगा.” उन्होंने कहा, “हम भारत से G20 सदस्य के रूप में अपनी जिम्मेदारी संभालने का आह्वान करते हैं.”
भारत, दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक
बता दें भारत ने घरेलू स्तर पर बढ़ती कीमतों को नियंत्रित करने के उपायों के तहत गेहूं के निर्यात पर तत्काल प्रभाव से प्रतिबंध लगा दिया है. हालांकि, विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) ने 13 मई को जारी अधिसूचना में कहा, “इस अधिसूचना की तारीख या उससे पहले जिस खेप के लिए अपरिवर्तनीय ऋण पत्र (एलओसी) जारी किए गए हैं, उसके निर्यात की अनुमति होगी.” डीजीएफटी ने यह भी स्पष्ट किया कि भारत सरकार द्वारा अन्य देशों को उनकी खाद्य सुरक्षा जरूरतों को पूरा करने के लिए और उनकी सरकारों के अनुरोध के आधार पर दी गई अनुमति के आधार पर गेहूं के निर्यात की अनुमति दी जाएगी. गौरतलब है कि भारत, दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक है.
अब किसान क्यों कर रहे विरोध?
गेहूं के बढ़ते दामों को काबू में लाने के लिए सरकार ने ये फैसला लिया है. तर्क दिया जा रहा है कि इस कदम की वजह से बढ़ती महंगाई से राहत मिल सकती है. गेहूं की कीमतों में गिरावट देखने को मिल सकती है. लेकिन जिस फैसले का सरकार और कुछ व्यापारी संगठन स्वागत कर रहे हैं, कई किसान उसी फैसले से खुश नहीं हैं.
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किसानों को कैसे नुकसान हो रहा?
किसानों की नजरों में गेहूं के निर्यात पर लगाए गए बैन की वजह से उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ेगा. इसके अलावा क्योंकि सरकार ने अब गेहूं खरीद के नियमों में ढील देने का फैसला किया है, कई किसान इसे भी अपने लिए नुकसान मान रहे हैं. किसानों का मानना है कि गेहूं पर लगाए गए निर्यात बैन की वजह से अब वे कम दामों में अपनी उपज बेचने को मजबूर होंगे, वहीं दूसरी तरफ सरकार ने खरीद के नियमों में जो ढील दी है, उसका फायदा किसानों से ज्यादा उन निजी प्लेयर्स को होने वाला है जिन्होंने उनसे काफी पहले ही गेहूं खरीद लिया था.
निजी खिलाड़ियों को ज्यादा छूट देना गलत?
कुछ अर्थशास्त्री भी सरकार के इस फैसले को तर्कसंगत नहीं मान रहे हैं. उनकी नजरों में सरकार ने निजी प्लेयर्स को जरूरत से ज्यादा छूट दे रखी है. उनका किसानों से सीधे फसल का खरीदना भी थोड़ा नुकसान दे गया है. इस बारे में अर्थशास्त्री देविंदर शर्मा बताते हैं कि रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से किसानों को कुछ मुनाफा हो सकता था, लेकिन असल फायदा कुछ प्राइवेट प्लेयर्स ले गए.
एक साल में गेहूं और आटे की कीमतों में 20 फीसदी तक बढ़ोतरी
लेकिन सरकार इस आलोचना को ज्यादा गंभीरता से नहीं ले रही है. उनकी नजरों में देश में गेहूं की कमी ना हो, ये पहली प्राथमिकता है. इसके अलावा आर्थिक संकट से जूझ रहे श्रीलंका और कुछ दूसरे देशों तक भी समय रहते गहूं की सप्लाई होती रहे, इसलिए भी निर्यात पर रोक लगाई गई है. सरकार इस बात पर भी जोर दे रही है कि पिछले एक साल में गेहूं और आटे की कीमतों में 14 से 20 फीसदी तक की बढ़ोतरी हुई है, वहीं उत्पादन में कमी देखने को मिली है. एक आंकड़ा ये भी जारी किया गया है कि सालाना हो रहे गेहूं उत्पादन में 42 फीसदी तक की कमी दर्ज हो सकती है. वहीं क्योंकि किसान भी दाम बढ़ने की वजह से फसल बेचने से बच रहे हैं, इस कारण भी उत्पादन में कमी रह सकती है.
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