Amarnath Pathak
हजारीबाग समेत झारखंड के विभिन्न जिलों के देवी मंडपों में दशहरा की अष्टमी के दौरान संधि बलि की परंपरा में परिवर्तन हुए हैं. कई देवी मंडपों में जहां पशुओं की बलि देने का रिवाज था, वहां की माता वैष्णवी बन गईं. अब उन मंडपों में पशुओं की बलि नहीं दी जाती है. वहां श्रद्धालुओं ने वक्त के साथ अहिंसा परमोधर्म: का नारा बुलंद कर दिया. संधि बलि में बकरे और भैंसे की जगह भथुए और ईख के चढ़ाने ने ले ली है. पदमा मातु भुवनेश्वरी मंदिर के पुरोहित विद्वान पंडित परमानंद शर्मा कहते हैं कि जो माता जन्म देती हैं, वह अपने संतान की बलि कभी नहीं मांगती.
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बानाहप्पा देवी मंडप में बदली परंपरा
हजारीबाग के सदर प्रखंड स्थित बानाहप्पा देवी मंडप में करीब डेढ़ सौ साल पहले नवरात्र की अष्टमी में बकरे की बलि देने की परंपरा थी. वहां माता के अनन्य भक्त कुंवर नागेश्वर प्रसाद सिंह को देवी ने सपने में बलि बंद करने की बात कही थी. मटवारी निवासी कुंवर नागेश्वर के भतीजे किशोरी वल्लभ सिंह बताते हैं कि देवी के सपने के बाद उनके चाचा की आंखों से अविरल अश्रुधार फूट पड़े और फिर वहां देवी मंउप में बलिप्रथा बंद कर दी गई.
केरेडारी कंडाबेर मंदिर में भी बलि देने पर रोक
पुजारियों और ग्रामीणों के निर्णय के बाद केरेडारी के प्रसिद्ध कंडाबेर मंदिर में करीब सवा सौ साल पहले बलि के रिवाज पर विराम लगा दिया गया. वहां पहले बकरे की बलि दी जाती थी. बाद में माता विशुद्ध वैष्णवी हो गईं. हजारीबाग लाखे में भगवान मिश्र के घर में बने देवी मंदिर में पहले बकरे की बलि दी जाती थी. भावी पीढ़ी ने यह प्रथा बंद करा दी.
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दूसरे कई मंदिरों में बंद हुआ बलि प्रथा
चतरा के सार्वजनिक टाल दुर्गा पूजा में भैंसे की बलि देने की प्रथा थी. रघुनायक लाल बताते हैं कि करीब 50 वर्ष पूर्व से यहां अष्टमी को अब ईख और भथुए का चढ़ावा होने लगा. रामगढ़ स्थित गोला के बाबू दुर्गा मंदिर में पागल राघवानंद बाबा ने जीव बलि का रिवाज बंद करा दिया था. पं. देवदत्त कार्यालय के ज्योतिषाचार्य पं. भास्कर मिश्र बताते हैं कि डेढ़ सौ साल पहले वहां बकरे की बलि पड़ती थी. एक औघड़ पागल राघवानंद बाबा ने वहां पशुबलि बंद करने की बात कही. ग्रामीणों के नहीं मानने पर पहले वह अनशन पर बैठे और फिर आत्मदाह की चेतावनी दे डाली. आखिरकार ग्रामीणों ने सार्वजनिक रूप से बलिप्रथा बंद करने की सहमति दे दी. इसी तरह भले ही रजरप्पा में बकरे की बलि दी जाती है, लेकिन वह स्थल अलग है. मां छिन्नमस्तिके के दरबार में दोनों वक्त खीर का महाभोग लगता है और माता विशुद्ध वैष्णवी मानी जाती हैं.