Ghatshila: बहरागोड़ा के साकरा के पास एक होटल में पुटूश और अमोरी फूलों की माला पहने जमुरे किसी से झगड़ा करते हुए कह रहा था. सुनो बाबू! पेंशन का पैसा है. देसी, मुर्गा भात और फुल की बात मत करो. सादा भोजन से काम चला लो. वर्ना अपने घर चले जाओ. हमार माथा खा कर रखा है. और तभी उस्ताद आ पहुंचे और बोले- अरे जमुरे! इ वोट के टाइम में तुम झगड़ा काहे कर रहा है?
जमुरे बोला- देखिए ना गुरु. इ लोग को देसी मुर्गा और भात खिलाते- खिलाते और फुल देते-देते परेशान हो गया हूं. चुनाव में हमार क्या होगा कवनो ओर और छोर नहीं बुझा रहा है. इ लोग हमरा से देसी मुर्गा और भात तथा फुल मांग रहा है. जमुरे बोला- गुरु जानते हैं. हम आपन पेंशन के पैसा से चुनाव लड़ रहा हूं. गुरु हम तो कवनो आल-जाल आदमी नहीं हूं. सीधा-साधा आदमी हूं. अरे इ तो हमार मति मारी गई थी कि हम चुनाव में बिना जाने और समझे बहकावे में आकर कूद पड़ा. अब बुझा रहा है कि हमको फंसा दिया है.
जमुरे बोला- जानते हैं गुरु. हमको कुछ लोगों ने हुचका दिया. साथ देने का वायदा करके चुनाव मैदान में उतार दिया और अब आगे पीछे कोई नजर नहीं आ रहा है. हम अकेला पड़ गया हूं. चुनाव में क्या होगा? हमको अच्छी तरह से समझ में आ गई है और इ लोग हमरा से देसी मुर्गा और भात तथा फुल की फरमाइश कर रहे हैं.
उस्ताद बोले- तो इसमें झगड़ा करने की क्या बात है? जब तुम्हारा यह हाल है तो अपने घर चले जाओ. ताकि पेंशन का पैसा बर्बाद नहीं हो. जमुरे बोला-गुरु, आप ठीक कहते हैं और अपने घर की ओर चल पड़ा.
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