Mumbai : एल्गार परिषद मामले में जेल में बंद प्रोफेसर हनी बाबू और कार्यकर्ता गौतम नवलखा व सुधा भारद्वाज को पढ़ने के लिए किताबें नहीं मिल रही हैं. तीनों को पिछले कुछ माह से जेल में पढ़ने के लिए किताबें मुहैया नहीं करायी जा रही है. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार पिछले मंगलवार को विशेष कोर्ट के समक्ष दायर एक आवेदन में दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हनी बाबू और कार्यकर्ता गौतम नवलखा ने कहा कि पिछले चार महीने से उनके लिए भेजी जा रहीं किताबें तलोजा जेल प्रशासन (नवी मुंबई) द्वारा वापस कर दी जा रही हैं.
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छह महीने से अखबार भी नहीं मिल रहा है
साथ ही कहा कि पिछले छह महीने से अखबार भी नहीं मिल रहा है. बायकला जेल (मुंबई) में बंद वकील सुधा भारद्वाज ने भी यही बात कही है. हालांकि उन्हें अखबार मिल रहा है. पर भारद्वाज ने कहा कि जेल की लाइब्रेरी में पर्याप्त किताबें नहीं हैं और उनके लिए बाहर से जो किताबें आ रही हैं उसे जेल प्रशासन वापस कर दे रहा है. तलोजा जेल अधीक्षक कौस्तुभ कुरलेकर ने कहा कि डाक द्वारा भेजी गयी पुस्तकों को अस्वीकार नहीं किया जा रहा है.
उन्होंने कहा, ‘हम कैदियों के लिए पुस्तकों से इनकार नहीं कर रहे हैं. हम उन्हें सैनिटाइज करते हैं और कैदियों को देते हैं. हम जेल में समाचार पत्रों के वितरण पर निर्णय लेने की प्रक्रिया में हैं, क्योंकि जेल की वर्तमान आबादी 5,000 से अधिक है, जबकि इसकी क्षमता 2,124 कैदियों की है और वायरस की दूसरी लहर की आशंका भी है.
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जेल के अधिकारियों ने उनके आरोपों को नकारा
जेल के अधिकारियों ने उनके आरोपों को नकारते हुए दावा किया है कि कैदियों को किताबें मुहैया कराने से रोका नहीं जा रहा है. तलोजा जेल अधिकारियों ने बताया कि कोविड-19 के मद्देनजर अखबारों की आपूर्ति बहाल करने पर सावधानी बरती जा रही है और जल्द ही इस संबंध में निर्णय लिया जायेगा. कार्यकर्ताओं ने अपनी याचिका में कहा है कि लेखक और शिक्षाविद के रूप में उन्होंने अपना जीवन पठन-पाठन के कार्य में व्यतीत किया है, इसलिए मनमाने तरीके से उनकी किताबें अस्वीकार नहीं की जा सकती हैं.
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महीने में पांच किताबें देने की मांग की
राज्य की जेल नियमावली का हवाला देते हुए उन्होंने उनके परिवार और वकीलों द्वारा भेजी गयी पुस्तकों को स्वीकार करने के लिए जेल अधिकारियों को निर्देश देने के साथ महीने में पांच किताबें देने की मांग की है. विशेष न्यायाधीश डीई कोठालीकर ने उल्लेख किया कि महाराष्ट्र जेल नियमावली का नियम 13 इस तरह के मामलों में निर्णय करने की शक्ति जेल अधीक्षकों को देता है.
न्यायाधीश ने कोई आदेश पारित करने से पहले याचिकाकर्ताओं की वकील चांदनी चावला से कहा कि वह इस बारे में शपथ-पत्र दायर करें कि उन्होंने जेल अधिकारियों से संपर्क किया था, जिन्होंने किताब उपलब्ध कराने का आग्रह नहीं माना. मामले में अगली सुनवाई 12 जनवरी को होगी.
मालूम हो कि जनवरी 2018 में भीमा-कोरेगांव में हुई हिंसा और माओवादियों से कथित संबंधों के आरोप में नवलखा, बाबू, भारद्वाज समेत कई कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया था.