दीपक अम्बष्ठ
झारखंड में उद्योग धंधों का विस्तार और पूंजी निवेश के उद्देश्य से हेमंत सोरेन सरकार ने नयी दिल्ली में दो दिवसीय इमर्जिंग झारखंड का आयोजन किया. आयोजन में अगले 3 वर्षों में 10 हजार करोड़ रुपये के निवेश की सहमति बनी है, इससे 1.5 लाख से अधिक प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार के अवसर की भी उम्मीद है.
डालमिया कंपनी सीमेंट ग्राइंडिंग यूनिट, सोलर पावर प्लांट और सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट इकाई स्थापित करने की बात कह रही है. जिस पर 758 करोड़ रुपए का पूंजी निवेश किया जाना है. टाटा स्टील भी 3 वर्षों में 3000 करोड़ रुपए निवेश करने का मन बना रही है. इसी तरह अन्य औद्योगिक घराने भी हैं जिसमें आधुनिक पावर लिमिटेड उन्नीस सौ करोड़ के निवेश की बात कही है.
उम्मीद की जानी चाहिए कि इमर्जिंग झारखंड एक सफल आयोजन साबित हो क्योंकि विनिवेश को लेकर राज्य का रिकॉर्ड बहुत अच्छा नहीं रहा है. यही वजह है कि निवेशक और राज्य की जनता दोनों कुछ हद तक असमंजस की स्थिति में आ जाते हैं. पूर्ववर्ती सरकारों ने पूंजी निवेश के नाम पर विशाल आयोजन किए, लाखों करोड़ के निवेश की बात कही गयी, लेकिन हुआ कुछ भी नहीं. यह समझना जरूरी है कि उद्योग धंधों की स्थापना उनका विकास और उनकी आवश्यकताओं को ध्यान में रखे बिना कोई सरकार राज्य का विकास नहीं कर सकती है, लेकिन दुर्भाग्य है कि झारखंड की सरकारें घोषणाओं का शंख फूंकने के अलावा कुछ कर नहीं पाई हैं. झारखंड में पूंजी निवेश के नाम पर रघुवर दास सरकार का उड़ता हुआ हाथी क्या कोई भूल सकता है कि वह ऐतिहासिक आयोजन कितना बड़ा सफेद हाथी साबित हुआ था और फिर घपले घोटाले उसकी कहानी फिर कभी.
पूंजी निवेश और उद्योग धंधे के विकास को लेकर झारखंड की सरकारों पर भरोसा नहीं जमता है तो इसके बहुत सारे उचित कारण हैं. झारखंड में पहले से ही ढेर सारे कल कारखाने हैं जो मरणासन्न हैं, सरकारों के पास इनके पुनरुत्थान की ना कोई योजना है ना ही नजरिया, हेमंत सरकार को भी इसका अपवाद नहीं कहा जा सकता है. सत्ता में 2 वर्ष की अवधि के दौरान इस सरकार ने बंद पड़े या बंद होने की कगार पर खड़े कल कारखानों को जीवन दान देने की ना तो कोई योजना बनाई और ना ही इसकी कोई संभावना दिखती है? ऐसा क्यों है कि राज्य में पहले से स्थापित उद्योग धंधों की उपेक्षा और नए उद्योग धंधे स्थापित करने की ओर ध्यान बार-बार जाता है लेकिन इसका कोई जवाब ना तो वर्तमान सरकार और ना ही पूर्ववर्ती सरकारों के पास रहा है. बावजूद इसके ऐसा भी मानना उचित नहीं होगा कि इमर्जिंग झारखंड भी एक तमाशा बनकर रह जाएगा, यह बात ध्यान देने योग्य है कि इस कार्यक्रम में सरकार ने पूर्ववर्ती सरकारों की तुलना में कम तामझाम के साथ छोटा लक्ष्य रखा है जिसे हासिल करना कठिन नहीं है इससे उम्मीद बनती है कि हेमंत सरकार संभवतः छोटे लेकिन मजबूत कदमों से आगे बढ़ना चाहती है जो स्वागत योग्य बात है.
कल कारखाने लगाने की बात हो या पूंजी निवेश की झारखंड में सिंगल विंडो सिस्टम की बात तो खूब होती है लेकिन लालफीताशाही और नौकरशाही पर नकेल कसने में कोई सरकार कामयाब नहीं हुई है. इस पर यदि अंकुश लगाया जा सके तो हेमंत सोरेन सरकार राज्य की औद्योगिक दशा में बड़ा बदलाव ला सकती है और इसकी उम्मीद की जानी भी चाहिए , झारखंड गठन के 20 वर्ष हो चुके हैं चीजों को संभालने में और कितना समय चाहिए, माना जाए कि इस सरकार ने एक नई शुरुआत की है जिसकी जरूरत वर्षों से महसूस की जाती रही है. इमर्जिंग झारखंड कार्यक्रम के दौरान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने लैंड बैंक की बात उठाई है और निवेशकों को भरोसा दिलाया है कि उन्हें जमीन और जमीन पर आराम से काम करने में कोई समस्या नहीं आने दी जाएगी. आशा की जानी चाहिए कि मुख्यमंत्री का आश्वासन सिर्फ आश्वासन न रहकर हकीकत में बदलेगा और यदि यह हकीकत में बदला तो इसके साथ ही बदलने लगेगी झारखंड की तकदीर, जिसका इसे बरसों से इंतजार है. अभी तक लैंड बैंक शिथिल है, लेकिन अगर राज्य का विकास चाहिए तो इसे कारगर और असरदार बनाना अनिवार्य है, बिजली पानी की समस्या जो किसी भी उद्योग धंधे के लिए सबसे बड़ी चुनौती है, उसका समाधान भी सरकार को सोचना ही पड़ेगा, जमीन आवंटन में विसंगतियां हैं. राज्य में अफसरशाही हावी रही है. उद्योगपतियों की सुनने वाला कोई नहीं है. हेमंत सरकार यदि जमीनी हकीकत से रूबरू हो, इनका निराकरण करे, तो कोई कारण नहीं है कि राज्य में पूंजी निवेश का सकारात्मक माहौल ना बने.
एक अच्छी बात है कि इमर्जिंग झारखंड के आयोजन से पूर्व सरकार ने अपनी उद्योग नीति के लिए उद्योगपतियों से सुझाव मांगे और उम्मीद की जानी चाहिए कि जो सुझाव आए होंगे सरकार उन पर ध्यान देकर अपना आगे का रास्ता तय करेगी तो कोई कारण नहीं है कि राज्य में पूंजी निवेश ना बढ़े, कल कारखाने ना फले फूलें और जो सपना है वह हकीकत में ना बदले.