Ranchi: सालों से बंद पड़े एस्सार पावर प्लांट की नीलामी में कई अचड़नें हैं. एस्सार ग्रुप का प्रोजेक्ट लातेहार चंदवा में स्थित है. 2800 करोड़ के इस प्रोजेक्ट के लिये अब खरीदार नहीं मिल रहे. एसबीआई ने एस्सार ग्रुप को इस प्रोजेक्ट के लिये लोन दिया था. 2015 में कंपनी के दिवालिया घोषित होने के बाद इस प्रोजेक्ट को बंद कर दिया गया.
फिलहाल पावर प्लांट बंद पड़ी है. साल 2019 में एसबीआई ने मदर कंपनी एसबीआई कैप्स को नीलामी की जिम्मेदारी दी थी. लेकिन लोन की राशि अधिक होने के कारण यह अब तक नीलाम नहीं हो पायी है. वहीं, प्लांट में जिन तकनीकों का इस्तेमाल हुआ था, वो भी आउटडेटेड हो चुके हैं. जिससे एसबीआई कैप्स को खरीदार नहीं मिल रहे. पिछले कुछ सालों में इसकी नीलामी में काफी तेजी लायी गयी थी, लेकिन अब मामला फिर से ठंडा है. बता दें पावर प्लांट शुरू होने से 1200 मेगावाट बिजली उत्पादन होता.
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कोल ब्लॉक रद्द होते दिवालिया हुई कंपनी
लातेहार में पावर प्लांट निर्माण के लिये 1993 में केंद्र सरकार ने अनुमति दी. यहां प्लांट बनाने के लिये कंपनी ने एसबीआई से 3300 करोड़ का लोन लिया. जिसके लिये केंद्र सरकार ने अशोका और चकला कोल ब्लॉक ग्रुप को आवंटित किया. साल 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने कोल ब्लॉक आवंटन रद्द कर दिया. इसके बाद कंपनी ने भी काम बंद कर दिया.
कंपनी लोन राशि वापस नहीं कर पायी. वहीं राष्ट्र स्तर पर भी इस कंपनी को दिवालिया घोषित किया गया. हालांकि मामला नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल में गया है. इसके बाद भी कंपनी लोन की राशि वापस नहीं कर पायी. जिसके बाद ट्रिब्यूनल ने एसबीआई कैप्स को नीलामी का आदेश दिया.
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छह करोड़ तक की बिजली बेचती कंपनी
लातेहार के चंदवा में प्रोजेक्ट शुरू होने के पहले जेबीवीएनएल अधिकारियों की बैठकें हुई. बैठक में एस्सार ग्रुप और एसबीआई के अधिकार भी रहें. जेबीवीएनएल अधिकारियों की मानें तो, इस प्लांट के शुरू होने से कंपनी महीने की साढ़े चार से पांच करोड़ रूपये की बिजली बेचती. एसबीआई के अधिकारियों ने जेबीवीएनएल से इसकी जानकारी ली थी. जिसके बाद कंपनी को 3300 करोड़ का लोन मिला. पिछले दिनों कुछ कंपनियों ने इस प्लांट और इसके सामानों की खरीदारी में रूचि दिखायी थी. लेकिन टेक्नोलॉजी की कमी के कारण बात आगे नहीं बढ़ी.
आठ महीने में शुरू करने की थी योजना
2018 में ऊर्जा विभाग की ओर से प्लांट का मूल्यांकन कराया गया. ऊर्जा विभाग के तत्कालीन सचिव नीतिन मदन कुलकर्णी ने ऊर्जा उत्पादन निगम को प्लांट सौंपने की योजना बनायी थी. साथ ही पतरातु थर्मल प्लांट से कोयला उपलब्ध कराने की रणनीति तैयार हुई. इस मूल्यांकन के अनुसार आठ महीने में प्लांट शुरू होता. लेकिन सचिव के तबादले के बाद इसके आगे काम नहीं हुआ.
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