Jamshedpur : गोलमुरी टुइलाडुंगरी के टर्बनेटर राजकमल जीत सिंह ने आंख में पट्टी बांधकर पगड़ी बांधने का रिकॉर्ड बनाया है. अब तक पंजाब के मंजीत सिंह फिरोजपुरिया व इक्का-दुक्का युवा ही ऐसी मिसाल दे चुके हैं. राजकमल का दावा है कि पूर्वी भारत में तो वे ऐसा कर पाने वाले इकलौते सिख हैं. आंख पर पट्टी बांधकर पगड़ी बांधने का उद्देश्य सिर्फ इतना है कि जब आंख बंद करके सिखी की शान को बरकरार रखा जा सकता है तो फिर आंख रहते हुए क्यों नहीं.
ट्यूटोरियल क्लास लेते हुए पगड़ी बांधने में लगे 17 मिनट
173 तरीकों की पगड़ी बांधने वाले राजकमल वैसे तो हर पगड़ी चंद मिनट में ही बांध लेते हैं. लेकिन इस क्रिएटिविटी के लिए 17 मिनट लगे. क्योंकि वे खुद भी पगड़ी बांध रहे थे और पगड़ी सीखने के शौकीन युवाओं को यू-ट्यूब पर ऑनलाइन कक्षा भी ले रहे थे. उन्होंने कहा कि अगर क्लास नहीं होती तो सात से आठ मिनट में शान-ए-पग बांधी जा सकती थी.
मदर्स डे पर 101 भाषाओं में लिखा मां
पगड़ी को अलग-अलग क्रिएटिविटी देने में माहिर टर्बनेटर राजकमलजीत सिंह ने पिछले दिनों मई माह में मदर्स डे पर 101 अलग-अलग भाषाओं में मां शब्द दर्ज किया था. यह स्टाइल सिख युवाओं को खूब पसंद आया था. इसके साथ ही उन्होंने युवाओं में यह जागृति पैदा करने की कोशिश की थी कि हर धर्म के लिए मां पूजनीय है.
पगड़ी में दिखेगी देश प्रेम की ललक
विभिन्न क्रिएटिविटी के साथ पगड़ी बांधने के शौकीन राजकमलजीत सिंह आगामी स्वतंत्रता दिवस पर पगड़ी पर तिरंगा की डिजाइन कर रहे हैं. इसके साथ ही तिरंगे के कलर में पगड़ी के पेच तैयार कर रहे हैं. इसका मतलब यह है कि देश प्रेम की ललक हर किसी में है.
पगड़ी सिखाने व बांधने का कोई शुल्क नहीं
किसी खास ओकेजन में राजकमल से पगड़ी बंधाने के लिए युवाओं में होड़ मच जाती है. तब युवा पगड़ी बांधने वाले को सगुन के तौर पर रुपए देते हैं. शादी ब्याह में पगड़ी बांधने पर मुंह बोली रकम ली जाती है. लेकिन राजकमल ने अपने गुरुओं की बख्शीश को बिजनेस नहीं बनाया. 2014 से पगड़ी बांधने के शौकीन बने जमशेदपुर के टर्बनेटर हर गुरुद्वारा में निरूशुल्क पगड़ी क्लास चलाते रहे. महामारी के दौरान यू-ट्यूब व फेसबुक पेज पर स्टूडेंटस को पगड़ी बांधने की ट्रेनिंग दे रहे हैं.
ढाई साल की बेटी को भी सजा रहे दस्तार
युवाओं में धर्म की अलख जगाने और सिखी का प्रचार करने के साथ-साथ अपने घर में भी राजकमल धर्म की शिक्षा दे रहे हैं. 2014 में शादी के बाद खुद गुरु के सिंह सजे. अब अपनी ढाई साल की बच्ची मेहर को भी दस्तार बांध रहे हैं कि बड़ी होकर उसे सिर में यह बोझ नहीं लगे, बल्कि वह गर्व महसूस करे.