M. Kumar
Jamshedpur / Chaibasa : पूर्व वरिष्ठ आईएएस अधिकारी अमित खरे एक बार फिर सुर्खियों में हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खरे को अपना सलाहकार नियुक्त किया है. वैसे तो झारखंड समेत केंद्र में वह कई अहम पदों पर रह चुके हैं. मगर, उनकी पहचान चारा घोटाले को उजागर करने वाले अफसर के रूप में सबसे ज्यादा चर्चित है. चाईबासा कोषागार (ट्रेजरी) से खरे ने इस घोटाले को लगभग 25 साल पहले उजागर किया था. 34 करोड़ रुपये से उजागर यह फर्जीवाड़ा बाद में 950 करोड़ रुपए के पार चला गया. इस घोटाले की परत- दर- परत खुलती गयी और फिर सियासी तूफान खड़ा हो गया. बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव को पद छोड़ना पड़ गया. तब किंग मेकर कहे जाने वाले लालू की सियासी रफ्तार को अचानक ब्रेक लग गई. लालू आज भी इस मामले में सजाफ्ता हैं. इस घोटाले में जगरनाथ मिश्रा, कई मंत्री समेत अफसरों और बाबुओं की गर्दन फंसी. बाद में लंबी कानूनी प्रक्रिया चली. इनमें कई छूट भी गए, कई को सजा मिली. अमित खरे की पैनी नजर इस बड़े घोटाले पर नहीं पड़ती तो शायद इसका खुलासा नहीं हो पाता.
कैसे हुआ चारा घोटाले का खुलासा
चाईबासा कोषागार से अचानक पैसों की निकासी बढ़ गयी. पहले माह बढ़ी निकासी पर ही तत्कालीन चाईबासा डीसी अमित खरे को शक हुआ. फिर दूसरे माह में पहले माह से अधिक निकासी या यूं कहें कि दोगुनी निकासी हुई. अब अमित खरे का शक यकीन में बदल गया. अमित खरे ने इसकी प्रारंभिक जांच पहले खुद की. इसमें पता चला कि पशुपालन विभाग से अप्रत्याशित तरीके से राशि की निकासी की जा रही है. अमित खरे इस फर्जीवाड़े को भांप गए.
क्या हुआ था छापेमारी के दिन
अमित खरे ने पशुपालन विभाग से अधिक मात्रा में राशि निकासी की जांच के लिए टीम गठित की. तब चाईबासा एसडीओ कार्यालय में तैनात दंडाधिकारी सुरेंद्र कुमार सिन्हा को जांच टीम का मजिस्ट्रेट बनाया गया. अमित खरे के आदेश पर सुरेंद्र कुमार ने एक साथ पशुपालन विभाग और पशुपालन पदाधिकारी के आवास तथा ट्रेजरी में छापेमारी की. फिर यहीं से इस घोटाले का खुलासा हुआ. अधिक राशि की निकासी घोटाले में तब्दील हो गई.
गुपचुप तरीके से दिया छापेमारी को अंजाम
यह घोटाला पूरी तरह दुनिया के सामने इस कारण भी आया कि इसके पीछे अमित खरे की कुशल कार्य योजना थी. अमित खरे ने छापेमारी की टीम खुद सेलेक्ट की. दो से तीन अधिकारियों को ही इसकी जानकारी थी. वो भी जिन अधिकारियों को इसकी जानकारी थी, उन्हें अमित खरे ने छापेमारी के दिन खुद अपने साथ बैठा रखा था. थाना को भी छापेमारी से महज कुछ समय पहले जानकारी दी गयी. पुलिस को रास्ते में ही बताया गया कि उन्हें कहां जाना है. इस तरह से अगर अमित खरे गुपचुप तरीके से इसे अंजाम नहीं देते तो इस छापेमारी की सूचना पहले ही आरोपियों और दोषियों को हो जाने का खतरा था. शायद तब इस घोटाले का इस स्तर पर खुलासा नहीं हो पाता.
ऐसे हुआ था गबन
छापेमारी का खुलासा 9999 रुपए के बिल वाउचरों से हुआ. अधिकांश बिल वाउचर 9999 रुपए के थे. तब 9999 रुपये के वाउचर का भुगतान कैश में होता था. दस हजार या इससे अधिक के वाउचर को बैंक खाते में भेजना पड़ता. इस कारण इससे बचने के लिए 9999 रुपए का ही वाउचर बनाया जाता था. फिर आगे की जांच शुरू हुई. तब स्कूटर पर चारा ढोने तक के चौकाने वाले तथ्य सामने आने लगे.
रातभर वाउचर का किया गया था मिलान
रातभर वाउचर का मिलान किया गया था. इस दौरान इस कार्य में लगे कर्मियों को बिना इजाजत कहीं जाने और किसी से बात करने की मनाही थी. चाईबासा परिसदन को पुलिस छावनी में तब्दील कर दिया गया था.
चुपचाप अमित खरे ने करा दी थी एफआईआर
मामला अब पूरी तरह से खुल गया था. बड़ा फर्जीवाड़ा पकड़ में आ गया था. फिर अमित खरे ने चुपचाप एफआईआर करा दी. यही इस घोटाले का टर्निंग प्वाइंट था. अगर चुपचाप अमित खरे इसमें केस नहीं कराते तो सियासी दबाव में यह मामला दब सकता था. फिर मामले की ग़ंभीरता को देखते हुए केस सीबीआई को सौंप दिया गया. उसके बाद की कहानी लालू समेत कई सियासतदानों के जेल जाने के रूप में हमारे सामने है.
ट्रेजरी के बाबुओं को एक साथ हटाया गया
मामला सामने आने के बाद ट्रेजरी के कर्मियों को एक साथ हटा दिया गया. तब के एकाउंटेंट चूनाराम हेम्ब्रम, सहदेव प्रसाद व श्री लाल को अमित खरे ने एक ही रात में हटा दिया था. इसमें कई पर प्राथमिकी दर्ज हुई, कई जेल भेजे गए. फिर एसडीओ और स्थापना शाखा के बाबुओं को ट्रेजरी में प्रतिनियुक्त किया गया.
वीसीआर पे ब्लू फिल्म देखता था पशुपालन पदाधिकारी
पशुपालन पदाधिकारी के आवास से खूब सारे रुपए मिले. फर्जी वाउचर पकड़ा गया. इन सबके बीच कई ब्लू फिल्म के वीडियो कैसेट मिले. तब वीसीआर का प्रचलन था. तमाम पोर्न कैसेट वीसीआर के थे.