नगर निगम और जिला परिषद मौन, तो फिर कौन ?
कहां गई लाइट, कहां गया फव्वारा, कह रहे शहरवासी-लाखों का हुआ है न्यारा-वारा
Vishmay Alankar
Hazaribagh : हजारीबाग शहर के मध्य में सात बड़े तालाबों की शृंखला जिसे हजारीबाग झील के नाम से हम सब जानते हैं. इसकी अपनी नैसर्गिक सुंदरता रही है. अब कंक्रीट के कई निर्माण के कारण इसकी रौनक धूमिल हो रही है. पिछले एक दशक से इस झील परिसर में काफी तामझाम हो रहे हैं. लेकिन जब कई साजो सामान पर चर्चा की जाती है, तो नगर निगम और जिला परिषद की ओर से मौन साध लिया जाता है. अगर इन दोनों विभागों ने साज-सज्जा नहीं कराई, तो किस विभाग से बेकार हो चुकी लाइट और फव्वारे पर इतनी राशि खर्च की गई. इसका जवाब शहरवासी वर्षों से जानना चाह रहे हैं. लेकिन जब जिम्मेवारों से माकूल जवाब नहीं मिलता है, तो लोगों की जुबां पर खुलेआम सुना जा सकता है कि झील के सौंदर्यीकरण के नाम पर लाखों के न्यारे-वारे किए जा रहे हैं.
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कुछ दिन के बाद ही फव्वारा हुआ खराब
केस-1 : नगर निगम की ओर से संरक्षित इस परिसर स्थित मुख्य झील में 21.7 लाख की राशि से 50 फीट की ऊंचाई तक पानी फेंकने वाला एक फव्वारा लगाया गया था. यह महज कुछ दिन चलने के बाद ही खराब हो गया. उसकी सुधार के लिए किसी ने भी इसकी सुध नहीं ली और आज भी इसे बेकार हालत में पड़े बीच झील में देखा जा सकता है.
पोल से बल्ब गायब
केस-2 : सात वर्ष पहले पूरे झील परिसर में नगर निगम की ओर से यह विद्युत सज्जा की गई. इसमें करीब 10 लाख रुपए खर्च हुए थे. नगर निगम ने पुराने सभी बिजली के खंभों को हटाकर नए पोल लगाए गए थे. यह व्यवस्था भी महज आठ से नौ माह चलने के बाद खराब हो गई. धीरे-धीरे पोल पर लगे सभी बल्व चोरी चले गए और सिर्फ खड़े पोल झील की खूबसूरती पर धब्बे लगा रहे हैं.
करीब दो करोड़ की लागत से वीड हार्वेस्टर खरीदा गया
केस-3 : नगर निगम ने हजारीबाग झील एवं निगम क्षेत्र के अन्य जलस्रोतों में फैले जलकुंभियों और अन्य गंदगी को साफ करने के लिए करीब दो करोड़ की लागत से वीड हार्वेस्टर खरीदा गया. इसे महाराष्ट्र की कंपनी से खरीदा गया था. इसकी लागत पर सवाल उठते रहे हैं. वहीं इसे एक झील से दूसरे झील तक ले जाने में हाइड्रा और बड़े ट्रक का इस्तेमाल किया जाता है, जो सुविधाजनक नहीं है. इसी कारण एक झील के साफ हो जाने के बाद भी महीनों हार्वेस्टर उसी में पडा रहता है.
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नगर निगम की ओर से झील में एक दशक में पांच करोड़ से अधिक के कराये गए कार्य
झील परिसर में पिछले 10 वर्षों में पांच करोड़ से अधिक की राशि खर्च की गई. इसमें करीब 10 लाख से स्पाइरल लाइट, यूनियन बैंक के सीएसआर से करीब 40 हजार के सेल्फी प्वाइंट ‘मुस्कुराइए आप हजारीबाग में हैं’ और 16 लाख से वेंडर जोन बनाया गया. इसे मछली विक्रेताओं को देना था. साथ ही उसी जगह पर ठेला और अन्य वेंडरों के लिए स्थान मुहैया कराना था. निर्माण में 16 लाख लगे हैं. ओपन जिम 4.5 लाख में बनाया जा रहा है. ग्रीनरी डेवलपमेंट लगभग 45 लाख में बनाया जा रहा है. नौ लाख रुपए में छह यात्री शेड बनाए गए हैं. वहीं जिला परिषद की ओर से 20 लाख की राशि से एम्फी थियेटर बनाया जा रहा है, जिसकी लागत अब एक करोड़ की हो गई है. जलकुम्भी निकलने के लिए विड हार्वेस्टर खरीदा गया है, जिसकी कीमत लगभग दो करोड़ है. एक बास्केटबॉल कोर्ट चार लाख में सीएसआर के तहत बनवाया गया है. गांधी स्मारक लगभग 10 लाख में बनाया गया था, जबकि 600 फीट लंबा गांधी स्मारक झील में बैठने की जगह के निर्माण में 45 लाख खर्च किये गए हैं.
किसने लगाई लाइट नगर निगम को नहीं पता
झील परिसर में पहले से ही बिजली के पोल लगे थे. उसके बावजूद 100 से अधिक बिजली के खंभे लगाकर उसमें डिजायनर बल्व लगाए गए. लेकिन यह किस विभाग से लगे या किस योजना से लगी, इसकी कोई सूचना नगर निगम को नहीं है. नगर निगम खुद हैरान है कि आखिर झील परिसर में इसे किसने लगाया है. ना तो जिला परिषद् को इसका पता है, न ही मत्स्य विभाग को इसकी जानकारी है. झील की देखरेख की जिम्मेदारी नगर निगम की है. ऐसे में झील में कोई भी निर्माण बिना नगर निगम को संज्ञान में दिए नहीं किया जा सकता. ऐसे में इस बात की पूरी संभावना है कि किसी योजना की राशि को किसी तरह जैसे-तैसे करा कर राशि निकाल ली गई है, चूंकि लगी लाइट कभी जली ही नहीं.
ऐसे एक-दूसरे पर थोपी जा रही जिम्मेदारी
पूर्व नगर आयुक्त प्रेरणा दीक्षित से पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि अब उनसे यह सवाल न करें, चूंकि नए नगर आयुक्त ने अपना पद्भार संभाल लिया है. वहीं नए नगर आयुक्त शैलेंद्र कुमार लाल ने कहा कि अभी उनके आए कुछ ही घंटे हुए हैं. अभी जानकारी लेने के बाद ही कुछ बता पाएंगे.